Yogini Ekadashi Vart 2024 | योगिनी एकादशी व्रत कब है? जाने शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और व्रत कथा

योगिनी एकादशी व्रत (Yogini Ekadashi Vart) हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण व्रत है, यह एकादशी व्रत निर्जला एकादशी के बाद और देवशयनी एकादशी से पहले आती है । जो हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को आता है । यह व्रत भगवान विष्णु और माँ योगिनी को समर्पित है । इन्हीं की कृपा से साधक के जीवन में शुभ फल प्राप्त होते हैं । इस व्रत को करने से मनुष्य के जीवन से अहंकार, अज्ञानता, आशक्ति के अंधकार से मुक्ति मिलती है, तथा सुख शांति व समृद्धि की ओर निरन्तर बढ़ता रहता है ।

सत्य सनातन हिन्दू धर्म जो त्याग, बलिदान, परोपकार, विनम्रता तथा मर्यादाओं द्वारा धर्म व सत्य का रक्षक है, व्रत के अनुसरण से सहज, सुखद दीर्घकालिक, पवित्र, उत्तम गुणों मे वृद्धि, जिससे कर्मबंधन के चैरासी लाख योनि द्वार में भटकते हुए जीव का उद्धार होता है । उसका साक्षात्कार परम शक्ति से हो जाता है । अर्थात् एकादशी का व्रत सम्पूर्ण पापों का नाश कर व्रती को आवागम (जन्म-मृत्यु) के बंधनों से मुक्ति दिलाती है । जिस प्रकार छः ऋतुओं मे वसंत ऋतु को ऋतुराज कहा जाता हैं, उसी प्रकार एकादशी व्रत को व्रतो का राज कहा जाता हैं ।

योगिनी एकादशी व्रत (Yogini Ekadashi Vart) के दिन सुबह से लेकर संध्या तक उपवास किया जाता है । इसके अलावा, व्रती भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए उनकी आराधना करते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं । विशेष रूप से योगिनी माँ की पूजा की जाती है, जिन्हें विष्णु की सहायिका माना जाता है ।

इस व्रत को करने से व्रती के पाप समाप्त होते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है, जैसा कि पुराणों में वर्णित है । इस दिन का पावन पर्व व्रती के जीवन में आशीर्वाद, आध्यात्मिक प्रगति, समृद्धि और शांति लाता है । यह व्रत धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग दिखाता है और व्रती को मानवीय गुणों का विकास करने में सहायक होता है ।

योगिनी एकादशी का इतिहास: (History of The Yogini Ekadashi Vart)

पुराणों के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी भक्त को योगिनी एकादशी व्रत (Yogini Ekadashi Vart) की महिमा का वर्णन किया था । उन्होंने बताया कि योगिनी एकादशी के दिन उपवास करने और भगवान की पूजा करने से उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वह मोक्ष की प्राप्ति पाता है । इस प्रकार, योगिनी एकादशी का पावन पर्व हिंदू समाज में बहुत महत्वपूर्ण हो गया ।

योगिनी एकादशी 2024 व्रत शुभ मुहूर्त (Yogini Ekadashi Vart Subha Muhurat)

ज्योतिषियों की मानें तो आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 01 जुलाई को सुबह 10 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 02 जुलाई को सुबह 08 बजकर 42 मिनट पर समाप्त होगी । उदया तिथि के अनुसार, साधक 02 जुलाई को एकादशी व्रत रख सकते हैं । इसके अगले दिन 03 जुलाई को पारण का समय सुबह 05 बजकर 28 मिनट से लेकर 07 बजकर 10 मिनट तक है । इस दौरान साधक पूजा-पाठ कर व्रत खोल सकते हैं ।

योगिनी एकादशी व्रत कब है? (Yogini Ekadashi Vart Kab hai)

Ekadashi Event
एकादशी तिथि
Date and Timing
तिथि और समय
Yogini Ekadashi
योगिनी एकादशी
July 01, 2024, Monday
01 जुलाई 2024, सोमवार
Yogini Ekadashi starts on
योगिनी एकादशी तिथि आरंभ
10:26 AM on July 01, 2024
01 जुलाई 2024 को सुबह 10:26 बजे
Yogini Ekadashi ends on
योगिनी एकादशी तिथि समाप्त
08:42 AM on July 02, 2024
02 जुलाई 2024 को सुबह 08:42 बजे
Yogini Ekadashi Udaya Tithi on
योगिनी एकादशी उदया तिथि
July 02, 2024
02 जुलाई, 2024
Yogini Ekadashi Paran
योगिनी एकादशी पारण
05:28 Am to 07:10 Am on July 03, 2024
03 जुलाई, 2024 को सुबह 05:28 से 07:10 बजे तक

एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है । एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है । यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है । 

एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिये । जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिये । हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है । व्रत तोड़ने के लिये सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है । व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिये । कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिये ।

कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिये हो जाता है । जब एकादशी व्रत दो दिन होता है, तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिये । दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं ।

सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिये । जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं । भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है ।

योगिनी एकादशी 2024 व्रत पूजा विधि (Yogini Ekadashi Vart Puja Vidhi)

  • इस व्रत के नियम एक दिन पूर्व शुरू हो जाते है । दशमी तिथि की रात्रि में ही व्यक्ति को तामसिक भोजन (जौं, गेहूं और मूंग की दाल से बना भोजन) त्याग कर सादा भोजन ग्रहण करना चाहिए ।
  • ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें । जमीन पर ही सोएं ।
  • वहीं व्रत वाले दिन नमक युक्त भोजन नहीं करना चाहिए, इसलिए दशमी तिथि की रात्रि में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए ।
  • एकादशी तिथि के दिन प्रात:काल उठकर नित्यकर्म से निजात पाकर स्नानादि के पश्चात व्रत का संकल्प लें ।
  • इसके बाद कलश स्थापना की जाती है, कलश के ऊपर भगवान विष्णु की प्रतिमा रख कर पूजा की जाती है । 
  • भगवान नारायण की मूर्ति को स्नानादि करवाकर भोग लगायें ।
  • पुष्प, धूप, दीप आदि से आरती उतारें ।
  • दिन में योगिनी एकादशी की कथा जरूर सुननी चाहिये । 
  • इस दिन दान कर्म करना भी बहुत कल्याणकारी रहता है ।
  • पीपल के पेड़ की पूजा भी इस दिन अवश्य करनी चाहिये । रात्रि में जागरण करना अवश्य करना चाहिये । इस दिन दुर्व्यसनों से भी दूर रहना चाहिए और सात्विक जीवन जीना चाहिये ।

योगिनी एकादशी के दिन की महत्वपूर्ण पूजाएं:

योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi Vart) के दिन विशेष रूप से योगिनी माँ की पूजा भी की जाती है । व्रती लोग इस दिन माँ योगिनी को विशेष रूप से समर्पित करते हैं और उनके प्रति श्रद्धा भाव से पूजा करते हैं ।

योगिनी एकादशी का धार्मिक और सामाजिक महत्व: (Yogini Ekadashi Vart Importance)

हिंदू धर्म ग्रंथों में हर एकादशी का अपना अलग महत्व बताया गया है । इन्हीं अलग-अलग विशेषताओं के कारण इनके नाम भी भिन्न-भिन्न रखे गये हैं । प्रत्येक वर्ष में 24 एकादशियां होती हैं, परंतु जब मलमास आता हैं तो इनकी संख्या 26 हो जाती है ।

इन्हीं एकादशियों में एक एकादशी आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसे योगिनी एकादशी कहते हैं । योगिनी एकादशी को मनाने से व्रती के जीवन में न केवल धार्मिक उन्नति होती है, बल्कि इससे समाज में भी एकता और समरसता का संदेश फैलता है । व्रती लोग इस दिन ध्यान और त्याग की भावना से उपवास करते हैं, जिससे उनका मन शुद्ध होता है और वे अपने आपको भगवान के समर्पित करते हैं । इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और माँ योगिनी की पूजा की जाती है, जिन्हें विष्णु की सहायिका माना जाता है । इस प्रकार, योगिनी एकादशी का व्रत व्यक्ति को सम्पूर्णता की ओर ले जाता है ।

भगवान श्रीकृष्ण से जब युधिष्ठिर ने आषाढ़ कृष्ण एकादशी के महत्व के बारे में पूछा तो श्रीकृष्ण ने कहा कि इस एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं । इस व्रत को करने से व्यक्ति पृथ्वी पर समस्त भोग प्राप्त करता है, और परलोक में उसे मुक्ति मिलती है । इस व्रत को करने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश हो जाता है । मृत्यु के बाद उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है ।

योगिनी एकादशी व्रत कथा (Yogini Ekadashi Vart Katha)

महाभारत काल की बात है कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण कहा: हे त्रिलोकीनाथ! मैंने ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी की कथा सुनी । अब आप कृपा करके आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनाइये । इस एकादशी का नाम तथा माहात्म्य क्या है? सो अब मुझे विस्तारपूर्वक बतायें ।

श्रीकृष्ण ने कहा: हे पाण्डु पुत्र! आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है । इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं । यह व्रत इस लोक में भोग तथा परलोक में मुक्ति देने वाला है ।

हे धर्मराज! यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है । इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं । तुम्हें मैं पुराण में कही हुई कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो- 

कुबेर नाम का एक राजा अलकापुरी नाम की नगरी में राज्य करता था । वह एक सच्चा शिव-भक्त था । उसका हेममाली नामक एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिए हर रोज फूल लाया करता था । हेममाली की विशालाक्षी नाम की अति सुन्दर स्त्री थी ।

एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प लेकर आया, किन्तु कामासक्त होने के कारण पुष्पों को रखकर अपनी स्त्री के साथ रमण करने लगा । इस भोग-विलास में दोपहर हो गई ।

हेममाली की राह देखते-देखते जब राजा कुबेर को दोपहर हो गई तो उसने क्रोधपूर्वक अपने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर पता लगाओ कि हेममाली अभी तक पुष्प लेकर क्यों नहीं आया । जब सेवकों ने उसका पता लगा लिया तो राजा के पास जाकर बताया- हे राजन! वह हेममाली अपनी स्त्री के साथ रमण कर रहा है ।

इस बात को सुन राजा कुबेर ने हेममाली को बुलाने की आज्ञा दी । डर से काँपता हुआ हेममाली राजा के सामने उपस्थित हुआ । उसे देखकर कुबेर को अत्यन्त क्रोध आया और उसके होंठ फड़फड़ाने लगे ।

राजा ने कहा: अरे अधम! तूने मेरे परम पूजनीय देवों के भी देव भगवान शिव जी का अपमान किया है । मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तू स्त्री के वियोग में तड़पे और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी का जीवन व्यतीत करे ।

कुबेर के श्राप से वह तत्क्षण स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरा और कोढ़ी हो गया । उसकी स्त्री भी उससे बिछड़ गई । मृत्युलोक में आकर उसने अनेक भयंकर कष्ट भोगे, किन्तु शिव की कृपा से उसकी बुद्धि मलिन न हुई और उसे पूर्व जन्म की भी सुध रही । अनेक कष्टों को भोगता हुआ तथा अपने पूर्व जन्म के कुकर्मो को याद करता हुआ वह हिमालय पर्वत की तरफ चल पड़ा ।

चलते-चलते वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुँचा । वह ऋषि अत्यन्त वृद्ध तपस्वी थे । वह दूसरे ब्रह्मा के समान प्रतीत हो रहे थे और उनका वह आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान शोभा दे रहा था । ऋषि को देखकर हेममाली वहाँ गया और उन्हें प्रणाम करके उनके चरणों में गिर पड़ा ।

हेममाली को देखकर मार्कण्डेय ऋषि ने कहा: तूने कौन-से निकृष्ट कर्म किये हैं, जिससे तू कोढ़ी हुआ और भयानक कष्ट भोग रहा है ।

महर्षि की बात सुनकर हेममाली बोला: हे मुनिश्रेष्ठ! मैं राजा कुबेर का अनुचर था । मेरा नाम हेममाली है । मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर शिव पूजा के समय राजा कुबेर को दिया करता था । एक दिन पत्नी सहवास के सुख में फँस जाने के कारण मुझे समय का ज्ञान ही नहीं रहा और दोपहर तक पुष्प न पहुँचा सका । तब उन्होंने मुझे शाप श्राप दिया कि तू अपनी स्त्री का वियोग और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी बनकर दुख भोग । इस कारण मैं कोढ़ी हो गया हूँ तथा पृथ्वी पर आकर भयंकर कष्ट भोग रहा हूँ, अतः कृपा करके आप कोई ऐसा उपाय बतलाये, जिससे मेरी मुक्ति हो ।

मार्कण्डेय ऋषि ने कहा: हे हेममाली! तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए मैं तेरे उद्धार के लिए एक व्रत बताता हूँ । यदि तू आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सभी पाप नष्ट हो जाएँगे ।

महर्षि के वचन सुन हेममाली अति प्रसन्न हुआ और उनके वचनों के अनुसार योगिनी एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करने लगा । इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आ गया और अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा ।

भगवान श्री कृष्ण ने कहा: हे राजन! इस योगिनी एकादशी की कथा का फल 88000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है । इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में मोक्ष प्राप्त करके प्राणी स्वर्ग का अधिकारी बनता है ।

योगिनी एकादशी के दिन के उपाय:

योगिनी एकादशी के दिन व्रती लोग निम्नलिखित उपाय करते हैं:-
  1. उपवास: सुबह से लेकर संध्या तक अनाज और तामसिक भोजन से दूर रहते हैं । यह उपासक के आत्मीय संगठन को भगवान के प्रति समर्पित करता है ।
  2. पूजा-अर्चना: व्रती भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, और उनकी आराधना में लगे रहते हैं । इससे उनका मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता है ।
  3. भजन-कीर्तन: योगिनी एकादशी के दिन व्रती भजन-कीर्तन करते हैं और भगवान के गुणगान में लगे रहते हैं । इससे उनका मन शांत और प्रसन्न रहता है ।
  4. दान: कुछ व्रती योगिनी एकादशी के दिन दान भी करते हैं, जैसे अन्न, वस्त्र, धन आदि । इससे उनका धार्मिक कर्तव्य पूरा होता है और वे पुण्य का भागीदार बनते हैं ।

योगिनी एकादशी के अन्य धार्मिक पहलू:

  1. ध्यान और मन्त्र जाप: सभी व्रती योगिनी एकादशी के दिन ध्यान और मन्त्रो का जाप करते हैं, जिससे उनका मानसिक स्थिति में स्थिरता और संतुलन आता है । ध्यान करने से उनका मन भगवान की तरफ अधिक लगता है और मन में शांति की अनुभूति होती है ।
  2. सत्संग: कुछ व्रती योगिनी एकादशी के दिन सत्संग में भाग लेते हैं, या अपने घर मे सत्संग करते है, जिससे उनका आत्मा कोई पुण्य और ज्ञान प्राप्त करता है । सत्संग में उन्हें समाज के उत्तम गुणों का अनुभव होता है और वे धार्मिकता की ओर अधिक प्रेरित होते हैं ।
  3. सेवा और दान: योगिनी एकादशी के दिन कुछ व्रती अल्पाहार सेवा और दान करते हैं । इससे उनका धार्मिक कर्तव्य पूरा होता है और वे धार्मिक भावना में स्थिर रहते हैं ।
  4. पर्व का सामाजिक महत्व: योगिनी एकादशी का पावन पर्व समाज में एकता और समरसता का संदेश भी देता है । इस दिन सभी लोग एक-दूसरे के साथ धार्मिक और सामाजिक रूप से जुड़ते हैं और एक-दूसरे के पास धार्मिकता के संदेश भी भेजते हैं ।

इस प्रकार, योगिनी एकादशी के व्रत का अद्भुत महत्व है जो व्रती को धार्मिक, आध्यात्मिक, और सामाजिक उन्नति की दिशा में अग्रसर करता है । यह व्रत भगवान विष्णु के प्रति श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है और व्रती को उसके जीवन में सुख शांति, समृद्धि, सफलता और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होता है । इस व्रत को करने से मनुष्य के जीवन से पापों का नाश कर व्रती को आवागम (जन्म-मृत्यु) के बंधनों से, अहंकार, अज्ञानता, आशक्ति के अंधकार से मुक्ति मिलती है, तथा सुखद दीर्घकालिक, पवित्र, उत्तम गुणों मे वृद्धि की ओर निरन्तर बढ़ता रहता है ।


धन्यवाद !

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