भगवान श्री राम ने भी किया था विजया एकादशी का व्रत और पाई थी लंका पर विजय।
Vijaya Ekadashi 2023:- हिंदू मान्यताओं के अनुसार वैदिक शास्त्रों में एकादशी तिथि को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है । ऐसा माना गया है कि एकादशी व्रत रखने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी संकट टल जाते हैं । यह तिथि समस्त संसार के पालन करता भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित किया गया है । श्रीहरि के शरीर से एकादशी का जन्म हुआ है यही वजह है कि एकादशी व्रत साल में आने वाले सभी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ और उत्तम फल देने वाला माना गया है ।
पूरी साल में 24 एकादशी तिथि आती है, तथा प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में एक-एक एकादशी की तिथि आती है । इन 24 एकादशी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है और प्रत्येक एकादशी अपने विशेष महत्व के लिए भी जाने जाते हैं । हिंदू पंचांग के अनुसार फागुन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी 16 फरवरी 2023 को आने वाली है । इस एकादशी को विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) के नाम से जाना जाता है । इस एकादशी व्रत का वर्णन पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में किया गया है ।
विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi 2023) के व्रत को सच्चे मन एवं विधि पूर्वक करने से प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त होती है । यह एकादशी विजया (Vijaya Ekadashi) प्रदान करने वाली है अर्थात विजया एकादशी करने से मनुष्य को जीवन में विजया की प्राप्ति होती है । पुराणों में कहा गया है कि विजय एकादशी (Vijaya Ekadashi 2023) का व्रत करने से दुश्मनों से छुटकारा मिल जाता है और कितने भी कठिन परिस्थिति में भी जीत हासिल हो जाती है ।
विजया एकादशी 2023 तिथि एवं पूजा की शुभ मुहूर्त (Vijaya Ekadashi 2023 Date and Muhurta)
पंचांग के अनुसार, फागुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि दिन बुधवार, 16 फरवरी को सुबह 5:32 मिनट पर शुरू हो रहा है, और दिन गुरुवार, 17 फरवरी को रात्रि 2:49 मिनट पर समाप्त हो रहा है । उदय तिथि के अनुसार विजय एकादशी व्रत 16 फरवरी को है । विजय एकादशी पर गोधूलि मुहूर्त सुबह 6:45 से सुबह 7:08 तक होगा । वही पारण का समय दिन गुरुवार, 17 फरवरी को सुबह 6:31 से शुरू होकर 8:35 पर समाप्त हो जाएगा ।
विजया एकादशी व्रत का महत्व (Vijaya Ekadashi 2023 Varat ka Mahatva)
विजया एकादशी के व्रत करने से भगवान श्री हरिविष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते है । शत्रुओं पर विजय की प्राप्ति होती है और सभी पाप नष्ट हो जाते हैं । यदि आपको किसी कार्य में विशेष सफलता प्राप्त करनी है तो आपको विजया एकादशी का व्रत करना चाहिए । यह व्रत सफलता प्राप्ति का सबसे उत्तम साधन है ।
महाभारत काल में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं इस व्रत के बारे में युधिष्ठिर को बताया था, उन्होंने विजया एकादशी के व्रत को मोक्ष प्राप्ति के लिए भी एक उत्तम साधन बताया है । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीराम ने भी विजया एकादशी का व्रत रखा था ताकि वो युद्ध में रावण को परास्त कर सके ।
विजया एकादशी पूजा की विधि (Vijaya Ekadashi 2023 Puja Vidhi)
- 16 फरवरी 2023 को विजया एकादशी का व्रत है । इसी से 1 दिन पहले व्रत करने वाले को सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए और ब्रम्हचर्य का भी पालन करना चाहिए ।
- विजय एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर अपने व्रत पूजा का संकल्प ले ।
- पूजा करने के लिए स्वच्छ स्थान पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या फोटो को स्थापित करें और भगवान विष्णु के समक्ष घी का दीपक जलाएं ।
- चंदन फूल अबीर और रोली आदि को अर्पित करें तथा फलों और पकवानों का भोग लगाएं । भगवान विष्णु को कुमकुम का तिलक लगाएं और पूजा अर्चना करें ।
- भगवान श्री हरि विष्णु के भोग में तुलसी पत्ता का भोग लगाएं । तुलसी पत्ता के बिना भगवान विष्णु का भोग स्वीकार नहीं होता है ।
- पूजा विधि संपन्न करने के बाद भगवान की कथा करें और फिर आरती करें उसके पश्चात प्रसाद वितरण करें । जिन्होंने भी व्रत रखा है वह फलाहार कर सकते हैं ।
- इस दिन रात को भोजन और मंत्रों का जाप करना चाहिए । अगले दिन सुबह फिर भगवान विष्णु की पूजा करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दान आदि देकर विदा करें ।
- इस दिन अपने आचरण पर खास नियंत्रण रखें, हो सके तो क्रोध करने से बचें और घर में किसी भी सदस्य ने अगर एकादशी का व्रत किया है तो इस दिन अन्य सदस्यों को भी चावल का सेवन नहीं करना चाहिए ।
विजय एकादशी 2023 व्रत कथा (Vijaya Ekadashi 2023 Varat Katha)
यह बात तब की है जब महाभारत के समय श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को यह कथा सुनाया था । जब युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण से जया एकादशी का महत्व सुनकर आनंद विभोर हो रहे थे । तभी युधिष्ठिर ने कहा “हे माधव” फागुन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महत्व है आपसे मैं जानना चाहता हूं अतः कृपया करके इस विषय में जो कथा है वह सुनाइए ।
युधिष्ठिर द्वारा अनुनय पूर्वक प्रश्न किए जाने पर श्री कृष्ण जी कहते हैं “हे युधिष्ठिर” फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है । इस एकादशी का व्रत करने वाला सदैव विजय रहता है । मैं तुम्हें इस व्रत का कथा सुनाता हूं । आज तक इस व्रत की कथा मैंने किसी को भी नहीं सुनाई है । तुम से पूर्व केवल देवर्षि नारद ही इस कथा को ब्रह्मा जी से सुन पाए हैं ।
त्रेतायुग की बात है, श्री रामचंद्र जी जो विष्णु के अंश अवतार थे अपनी पत्नी सीता के हरण के पश्चात उन्हें ढूंढते हुए सागर तट पर जा पहुंचे । सागर के तट पर भगवान का परम भक्त जटायु नामक पक्षी रहता था । उस पक्षी ने बताया कि सीता माता को सागर पार लंका नगरी का राजा रावण हरण कर ले गया है और माता सीता इस समय अशोक वाटिका में है । पक्षीराज जटायु के द्वारा माता सीता का पता जानकर श्री रामचंद्र जी अपनी वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण की तैयारी करने लगे, परंतु सागर के जल जीवो से भरे दुर्गम मार्ग से होकर लंका पहुंचना संभव नहीं था ।
क्योंकि भगवान श्री राम इस अवतार में मर्यादा पुरुषोत्तम मानव रूप में दुनिया के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते थे । अतः वे इस समस्या का समाधान भी मानव के रूप में है ढूंढना चाहते थे । जब उन्हें सागर पार करने का कोई भी मार्ग नहीं मिल रहा था, तब उन्होंने लक्ष्मण जी से पूछा कि हे लक्ष्मण इस सागर को पार करने का कोई उपाय मुझे सूझ नहीं रहा अगर तुम्हारे पास कोई उपाय है तो बताओ ।
श्री रामचंद्र की बात सुनकर लक्ष्मण जी बोले प्रभु आपसे तो कोई भी बात शिपिंग नहीं है, आप तू स्वयं ही सर्वज्ञाता है फिर भी आपने पूछा है तो मैं कहूंगा कि यहां से आधा योजन दूर परम ज्ञानी वकदाल्भ्य मुनि का निवास है हमें उनसे ही इसका हल पूछना लेना चाहिए ।
भगवान श्री राम लक्ष्मण जी की बात से सहमत होकर बकदाल्भ्य मुनि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें प्रणाम करके अपना प्रश्न उनके सामने रख दिया । मुनिवर ने कहा हे राम आप अपनी समस्त सेना के साथ फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखें, इस एकादशी के व्रत के करने से आप निश्चय ही समुद्र को पार कर रावण को पराजित कर देंगे । मुनिवर के बताए विधि के अनुसार श्री रामचंद्र जी ने उस तिथि के आने पर अपनी सेना समेत एकादशी का व्रत रखा और सागर पर पुल का निर्माण किया भीर लंका पर चढ़ाई की राम और रावण का भीषण युद्ध हुआ जिसके उपरांत रावण मारा गया ।

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