Tantroktam Ratri Suktam in Hindi Lyrics | श्री दुर्गा सप्तशती- तन्त्रोक्तं रात्रिसूक्तम्

“Tantroktam Ratri Suktam” एक प्रमुख वेदिक मंत्र है जो मां दुर्गा की पूजा और उपासना में प्रयुक्त होता है । यह सूक्त तंत्र शास्त्र के अनुसार रचित है और मां दुर्गा के महिमा, शक्तियों और आशीर्वाद को प्रकट करने का काम करता है । “तंत्रोक्तम रात्रि सूक्तम” में मां दुर्गा को ‘रात्रि’ नाम से संबोधित किया गया है, जो कि रात्रि की प्रतिनिधि के रूप में प्रतिष्ठित हैं । यह सूक्त मां दुर्गा की शक्तियों, सामर्थ्य के आदान-प्रदान को व्यक्त करता है और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए आह्वान करता है ।

“Tantroktam Ratri Suktam” के पाठ से भक्त को मां दुर्गा की महिमा, दिव्यता और शक्तियों का विचार करने में मदद मिलती है । यह सूक्त उन्हें उनके दिव्य स्वरूप के प्रति अधिक आदर और समर्पण में प्रेरित करता है और उनके सामर्थ्य में विश्वास को बढ़ावा देता है । Tantroktam Ratri Suktam के इस पाठ से भक्त की आत्मा में साहस और संजीवनी शक्तियाँ जागृत होती हैं । यह सूक्त उन्हें अपने जीवन में सफलता, सुख-शांति, और समृद्धि प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है ।

॥ अथ तन्त्रोक्तं रात्रिसूक्तम् ॥

ॐ विश्‍वेश्‍वरीं जगद्धात्रीं स्थितिसंहारकारिणीम् ।
निद्रां भगवतीं विष्णोरतुलां तेजसः प्रभुः ॥ १ ॥

॥ ब्रह्मोवाच ॥

त्वं स्वाहा त्वं स्वधा त्वं हि वषट्कारः स्वरात्मिका ।
सुधा त्वमक्षरे नित्ये त्रिधा मात्रात्मिका स्थिता ॥ २ ॥

अर्धमात्रास्थिता नित्या यानुच्चार्या विशेषतः ।
त्वमेव सन्ध्या सावित्री त्वं देवि जननी परा ॥ ३ ॥

त्वयैतद्धार्यते विश्‍वं त्वयैतत्सृज्यते जगत् ।
त्वयैतत्पाल्यते देवि त्वमत्स्यन्ते च सर्वदा ॥ ४ ॥

विसृष्टौ सृष्टिरुपा त्वं स्थितिरूपा च पालने ।
तथा संहृतिरूपान्ते जगतोऽस्य जगन्मये ॥ ५ ॥

महाविद्या महामाया महामेधा महास्मृतिः ।

महामोहा च भवती महादेवी महासुरी ॥ ६ ॥

प्रकृतिस्त्वं च सर्वस्य गुणत्रयविभाविनी ।
कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्‍च दारुणा ॥ ७ ॥

त्वं श्रीस्त्वमीश्‍वरी त्वं ह्रीस्त्वं बुद्धिर्बोधलक्षणा ।
लज्जा पुष्टिस्तथा तुष्टिस्त्वं शान्तिः क्षान्तिरेव च ॥ ८ ॥

खड्गिनी शूलिनी घोरा गदिनी चक्रिणी तथा ।
शङ्खिनी चापिनी बाणभुशुण्डीपरिघायुधा ॥ ९ ॥

सौम्या सौम्यतराशेषसौम्येभ्यस्त्वतिसुन्दरी ।
परापराणां परमा त्वमेव परमेश्‍वरी ॥ १० ॥

यच्च किञ्चित् क्वचिद्वस्तु सदसद्वाखिलात्मिके ।
तस्य सर्वस्य या शक्तिः सा त्वं किं स्तूयसे तदा ॥ ११ ॥

यया त्वया जगत्स्रष्टा जगत्पात्यत्ति यो जगत् ।
सोऽपि निद्रावशं नीतः कस्त्वां स्तोतुमिहेश्‍वरः ॥ १२ ॥

विष्णुः शरीरग्रहणमहमीशान एव च ।
कारितास्ते यतोऽतस्त्वां कः स्तोतुं शक्तिमान् भवेत् ॥ १३ ॥

सा त्वमित्थं प्रभावैः स्वैरुदारैर्देवि संस्तुता ।
मोहयैतौ दुराधर्षावसुरौ मधुकैटभौ ॥ १४ ॥

प्रबोधं च जगत्स्वामी नीयतामच्युतो लघु ।
बोधश्‍च क्रियतामस्य हन्तुमेतौ महासुरौ ॥ १५ ॥

इति रात्रिसूक्तम्


॥ Tantroktam Ratri Suktam Meaning in Hindi | अथ तन्त्रोक्तं रात्रिसूक्तम् ॥

जो इस विश्व की अधीश्वरी, जगत्को धारण करने वाली, संसार का पालन और संहार करने वाली तथा तेज:स्वरूप भगवान् विष्णुकी अनुपम शक्ति हैं, उन्हीं भगवती निद्रादेवीकी भगवान् ब्रह्मा स्तुति करने लगे ।

ब्रह्मा जी ने कहा- देवि! तुम्हीं स्वाहा, तुम्ही स्वधा और तुम्ही वषट्कार हो । स्वर भी तुम्हारे ही स्वरूप हैं । तुम्ही जीवनदायिनी सुधा हो । नित्य अक्षर प्रणवमें अकार, उकार, मकार-इन तीन मात्राओं के रूप में तुम्हीं स्थित हो तथा इन तीन मात्राओं के अतिरिक्त जो विन्दुरूपा नित्य अर्धमात्रा है, जिसका विशेष रूप से उच्चारण नहीं किया जा सकता, वह भी तुम्ही हो ।

देवि! तुम्हीं संध्या, सावित्री तथा परम जननी हो । देवि! तुम्हीं इस विश्व-ब्रह्माण्ड को धारण करती हो । तुमसे ही इस जगत्की सृष्टि होती है । तुम्हीं से इसका पालन होता है और सदा तुम्ही कल्पके अन्त में सबको अपना ग्रास बना लेती हो । जगन्मयी देवि! इस जगत्की उत्पत्ति के समय तुम सृष्टि रूपा हो, पालन काल में स्थितिरूपा हो तथा कल्पान्त के समय संहाररूप धारण करने वाली हो । तुम्ही महाविद्या, महामाया, महामेधा, महास्मृति, महामोहरूपा, महादेवी और महासुरी हो ।

तुम्हीं तीनों गुणों को उत्पन्न करने वाली सबकी प्रकृति हो । भयंकर कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि भी तुम्ही हो । तुम्हीं श्री, तुम्ही ईश्वरी, तुम्ही ह्री और तुम्ही बोधस्वरूपा बुद्धि हो । लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शान्ति और क्षमा भी तुम्ही हो । तुम खड्गधारिणी, शूलधारिणी, घोररूपा तथा गदा, चक्र, शङ्ख और धनुष धारण करने वाली हो । बाण, भुशुण्डी और परिघ-ये भी तुम्हारे अस्त्र हैं । तुम सौम्य और सौम्यतर हो-इतना ही नहीं, जितने भी सौम्य एवं सुन्दर पदार्थ हैं, उन सबकी अपेक्षा तुम अत्यधिक सुन्दरी हो। पर और अपर- सबसे परे रहनेवाली परमेश्वरी तुम्हीं हो।

सर्वस्वरूपे देवि! कहीं भी सत्-असत्-रूप जो कुछ वस्तुएँ हैं और उन सबकी जो शक्ति है, वह तुम्ही हो । ऐसी अवस्था में तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? जो इस जगत् की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं, उन भगवान् को भी जब तुमने निद्राके अधीन कर दिया है, तब तुम्हारी स्तुति करनेमें यहाँ कौन समर्थ हो सकता है ? मुझको, भगवान् शंकर को तथा भगवान् विष्णु को भी तुमने ही शरीर धारण कराया है;

अतः तुम्हारी स्तुति करनेकी शक्ति किस में है ? देवि! तुम तो अपने इन उदार प्रभावों से ही प्रशंसित हो । ये जो दोनों दुर्धर्ष असुर मधु और कैटभ हैं, इनको मोह में डाल दो और जगदीश्वर भगवान् विष्णु को शीघ्र ही जगा दो । साथ ही इनके भीतर इन दोनों महान् असुरों को मार डालने की बुद्धि उत्पन्न कर दो ।

॥ तन्त्रोक्त रात्रिसूक्त सम्पूर्ण ॥


परानाम

धन्यवाद !


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