हर माह में आने वाली एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होता है । हर माह की एकादशी तिथि का अलग महत्व होता है । ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi), भीमसेनी एकादशी (Bhimseni Ekadashi) या फिर भीम एकादशी के नाम से जाना जाता है । निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) को साल भर की प्रमुख एकादशी तिथियों में से एक मानी जाती है । इस व्रत में अन्न जल खाये-पिए बिना ही व्रत को रखा जाता है इसलिए यह व्रत सभी एकादशियों में सबसे कठिन माना गया है । ज्येष्ठ माह भीषण गर्मी के लिए जाना जाता है, ऐसे में निर्जला उपवास रखना बेहद कठिन होता है ।
भगवान विष्णु को प्रसन्न और उनकी विशेष कृपा पाने के लिए एकादशी तिथि बेहद शुभ होती है । निर्जला एकादशी का व्रत इस बार 18 जून मंगलवार, 2024 को रखा जाएगा और 19 जून 2024 को व्रत का पारण किया जाएगा । कहते हैं कि इस एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु शीघ्र प्रसन्न होते हैं और आपका हर कष्ट दूर करते हैं । इस दिन उपवास रखने से जीवन की सभी समस्याओं का निवारण होने लगता है । इस दिन विधि अनुसार पूजा करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती हैं और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है ।
निर्जला एकादशी से सम्बन्धित पौराणिक कथा के कारण इसे पाण्डव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है । पाण्डवों में दूसरा भाई भीमसेन खाने-पीने का अत्यधिक शौक़ीन था और अपनी भूख को नियन्त्रित करने में असक्षम था, इसी कारण वह एकादशी व्रत को नही कर पाता था । भीम के अलावा बाकि पाण्डव भाई और द्रौपदी साल की सभी एकादशी व्रतों को पूरी श्रद्धा भक्ति से किया करते थे ।
भीमसेन अपनी इस लाचारी और कमजोरी को लेकर परेशान हो गया था । भीमसेन को लगता था कि वह एकादशी व्रत न करके भगवान विष्णु का अनादर कर रहा है । इस दुविधा से उभरने के लिए भीमसेन महर्षि व्यास के पास गया तब महर्षि व्यास ने भीमसेन को साल में एक बार निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) व्रत को करने कि सलाह दी और कहा कि निर्जला एकादशी, साल के सभी चौबीस एकादशियों के ही तुल्य है । इसी पौराणिक कथा के बाद निर्जला एकादशी भीमसेनी एकादशी और पाण्डव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी ।
कब है निर्जला एकादशी व्रत 2024 (Nirjala Ekadashi 2024 Muhurat)
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) तिथि का आरंभ 17 जून सुबह 4:43 पर शुरू हो रही है । वही इसका समापन 18 जून सुबह 06:24 पर होगा । उदया तिथि के अनुसार 18 जून 2024 को निर्जला एकादशी व्रत रखा जाएगा । और इस व्रत का पारण अगले दिन सुबह 19 जून को दान पुण्य करने के साथ ही हो जाएगा ।
शुभ योग में निर्जला एकादशी का व्रत और पारण (Nirjala Ekadashi Vrat-Paran Shubh Yog)
इस बार निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत कई मायनों में खास रहने वाला है । क्योंकि इस दिन कई शुभ योग बनने वाले हैं । इस शुभ योगों में किए पूजा-व्रत का बहुत लाभ मिलता है । निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) के दिन त्रिपुष्कर योग, शिव योग और स्वाति नक्षत्र रहेगा ।
- विष्णु पूजा का मुहूर्त :- सुबह 08.53 – दोपहर 02.07
- त्रिपुष्कर योग (Tripushkar Yog):- 18 जून दोपहर 3 बजकर 56 मिनट से अगले दिन (19 जून) सुबह 5 बजकर 24 मिनट तक
- शिव योग (Shiv Yog):- सुबह से लेकर रात 09 बजकर 39 मिनट तक
- स्वाति नक्षत्र (Swati Nakshatra):- दोपहर 3 बजकर 56 मिनट तक
निर्जला एकादशी का महत्व (Nirjala Ekadashi Importance)
विष्णु पुराण में निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का महत्व बहुत ही खास माना गया है । माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से आपको सभी एकादशी का व्रत करने के समान फल की प्राप्ति होती है । जहाँ साल भर की अन्य एकादशी व्रत में आहार संयम का महत्त्व है । वहीं निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ साथ जल का संयम भी ज़रूरी है ।
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत ज्येष्ठ के महीने में तब रखा जाता है जब प्रचंड गर्मी पड़ती है । इसलिए यह एकादशी धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के साथ जीवन में जल के महत्व, मन को संयम रखना भी सिखाती है और शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करती है । पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वेद व्यास (Ved Vyasa) के कहने पर भीम ने भी इस व्रत को रखा था । इसके बाद से ही इस एकादशी का नाम भीमसेनी एकादशी पड़ा । हिन्दू पंचाग अनुसार वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है । यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है ।
निर्जला एकादशी की पूजा विधि (Nirjala Ekadashi Puja Vidhi)
- निर्जला एकादशी के दिन प्रात: काल उठकर देवी देवताओं के स्मरण से दिन की शुरूआत करें ।
- स्नान के बाद भगवान विष्णु को प्रिय पीले रंग का वस्त्र धारण करें ।
- मंदिर की सफाई करें ।
- चौकी पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को स्थापित करें और विधि-विधान से पूजा करें ।
- भगवान को पीले फूल, फल, हल्दी, चंदन, अक्षत चढ़ाएं और खीर का भोग लगाएं ।
- विष्णु चालीसा का पाठ करें ।
- व्रत के दिन जरूरतमंद को भोजन और वस्त्र का दान करें ।
व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha)
जब वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया था । तब युधिष्ठिर ने कहा – जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिए । भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे राजन् ! इसका वर्णन परम धर्मात्मा व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान् हैं ।
तब वेदव्यास जी कहने लगे- कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी में अन्न खाना वर्जित है । द्वादशी को स्नान करके पवित्र होकर फूलों से भगवान केशव की पूजा करें । फिर पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करें ।
यह सुनकर भीमसेन बोले- परम बुद्धिमान पितामह! मेरी बात सुनिए । राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव, ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि भीमसेन एकादशी को तुम भी न खाया करो परन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जाएगी ।
भीमसेन की बात सुनकर व्यास जी ने कहा- यदि तुम नरक को दूषित समझते हो और तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और तो दोनों पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन नहीं करना ।
भीमसेन बोले महाबुद्धिमान पितामह! मैं आपके सामने सच कहता हूँ । मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता, तो फिर उपवास करके मैं कैसे रह सकता हूँ । मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है । इसलिए महामुनि ! मैं पूरे वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ । जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये । मैं उसका यथोचित रूप से पालन करुँगा ।
व्यास जी ने कहा- भीम! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो । केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल मुख में न डालें, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है । एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है ।
इसके बाद द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे । इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करें । वर्षभर में जितनी एकादशियां होती हैं, उन सबका फल इस निर्जला एकादशी से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है । शंख, चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि ‘यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है ।
कुन्तीनन्दन! निर्जला एकादशी के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं, उन्हें सुनो । उस दिन जल में शयन करने वाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु यानी पानी में खड़ी गाय का दान करना चाहिए, सामान्य गाय या घी से बनी गाय का दान भी किया जा सकता है। इस दिन दक्षिणा और कई तरह की मिठाइयों से ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए । उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं ।
जिन्होंने श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है । निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए । जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है ।
जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है । चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इस कथा को सुनने से भी मिलता है ।
भीमसेन! ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए । उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए । ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है । इसके बाद द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे । जो इस प्रकार पूर्ण रूप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है । यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया ।
निर्जला एकादशी व्रत के लाभ (Nirjala Ekadashi Vrat Benefits)
- यदि आप सालभर किसी कारण एकादशी का व्रत नहीं रखते तो केवल निर्जला एकादशी के व्रत से आपको सभी एकादशी व्रत का फल प्राप्त हो जाता है ।
- निर्जला एकादशी के व्रत से लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है और घर पर धन-धान्य का अभाव नहीं रहता । साथ ही जीवन परेशानियों से मुक्त रहता है ।
- दीर्घायु और मोक्ष प्राप्ति लिए इस व्रत को फलदायी माना जाता है । भीमसेन ने भी मोक्ष प्राप्ति के लिए निर्जला एकादशी का व्रत रखा था ।
दिनभर इन बातों का ध्यान रखें
- पवित्रीकरण के समय जल आचमन के अलावा अगले दिन सूर्योदय तक पानी नहीं पीएं ।
- दिनभर कम बोलें और हो सके तो मौन रहने की कोशिश करें ।
- दिनभर न सोएं ।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें ।
- झूठ न बोलें, गुस्सा और विवाद न करें ।
इन चीजों का लगाएं भोग
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विष्णु जी को पीले रंग की चीजें अत्यंत प्रिय हैं । ऐसे में निर्जला एकादशी पर आप उन्हें केले का भोग जरूर लगाएं । इसके अलावा पीले रंग की मिठाई और मिश्री का भोग लगाना चाहिए ।
- एकादशी पर विष्णु जी को पंचामृत का भोग लगाना चाहिए । इसे भगवान विष्णु के प्रिय भोग में शामिल किया जाता है । माना जाता है कि इसके भोग लगाने से घर में धन वैभव की कभी कमी नहीं होती है ।
- किसी भी उपवास में पंजीरी का खास महत्व होता है । यह भोग के रूप में बेहद शुभ होती है । आप निर्जला एकादशी पर भगवान विष्णु को पंजीरी का भोग जरूर लगाएं । यह उन्हें अति प्रिय है । इससे सभी अशुभ ग्रहों के बुरे प्रभाव से बचा जा सकता है ।
- इस दौरान आप भगवान विष्णु को मखाने की खीर का भोग लगाएं । माना जाता है कि भगवान विष्णु को मखाने की खीर बेहद प्रिय है । इसके भोग लगाने से उनकी असीम कृपा बनी रहती है ।
निर्जला एकादशी पर जल दान क्यों करना चाहिए?
निर्जला एकादशी के दिन आपको जल का दान जरूर करना चाहिए । इसके लिए एक कलश में पानी भर लें और उसे किसी जरूरतमंद या गरीब ब्राह्मण को दान कर दें । निर्जला एकादशी पर जल का दान करने से हर प्रकार की समस्याओं से निजात मिलता है । आर्थिक संकट, गृह क्लेश, रोग आदि से मुक्ति मिल सकती है । जल का दान करने से पितृ दोष और कुंडली के चंद्र दोष से भी मुक्ति मिल सकती है ।

धन्यवाद !
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