The Essence of Madhushravani Vrat 2024 Rituals, Cultural, Traditions, Dates, Timings and Importance | श्रावण मास का मधुश्रावणी व्रत बिहार के मिथिला क्षेत्र की सुहागिनों का पारंपरिक परंपराएँ

Madhushravani Vrat Puja 2024 me Kab Hai?

उत्तर बिहार के मिथिलांचल का लोकपर्व श्रावण मास के कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि से शुरू होकर शुक्ल पक्ष तृतीया को संपन्न होने वाला मधुश्रावणी व्रत (Madhushravani Vart Puja) इस साल 25 जुलाई 2024 से 07 अगस्त 2024 तक हैं । मधुश्रावणी का व्रत बहुत धूमधाम से मनाया जाता है । 13 से 15 दिन तक मनाया जाने वाला यह पर्व अधिकमास या मलमास की वजह से इस में अधिक दिनों की वृद्धि हो जाती है । इस साल श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि 25 जुलाई 2024 से शुरू है ।

मधुश्रावणी पूजा (Madhushravani Puja) पर्व के दौरान मैथिली भजन और लोकगीतों की आवाज हर घर पर सुनने को मिलती है । हर घर में देवी पूजन होता है । शाम को आरती होती है और गीत गाए जाते हैं । यह त्यौहार नव विवाहित महिलाओं का पर्व होता है किंतु सभी सौभाग्यवति स्त्रियों के लिए इसका महत्व है । व्रत के आखिरी दिन में पति के साथ मिलकर नव विवाहिता अपने बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेती हैं ।

मधुश्रावणी पूजा व्रत (Madhushravani Puja) महिलाएं अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत के रुप में मनाती हैं । पूजा के लिए नाग-नागिन, गौरी, शिव की मूर्तियां बनाई जाती हैं और फिर इनके पूजन के लिए फूल, मिठाइयां और फलों को भोग स्वरुप रखा जाता है । पूजा के लिए रोज नए पुष्पों का उपयोग किया जाता है । मधुश्रावणी की कथा सुनते हुए पूजन होता है । पूजन के आठवें और नौवें दिन प्रसाद के रूप में भगवान को प्रसाद के रूप में कुछ स्थानों पर रसगुल्लों का भोग लगाया जाता है । मधुश्रावणी में ससुराल और मायका दोनों की भूमिका बेहद खास होती है । वहीं नवविवाहिता के भाई की भी भूमिका बेहद अहम होती है ।

मधुश्रावणी पूजा (Madhushravani Puja) का महत्व मैथिल नवविवाहिता के दाम्पत्य जीवन में विशेष स्थान रखता है । मिथिला में प्रचलित पारंपरिक पर्व मधुश्रावणी के लिए विशेष रूप से चुने जानेवाले फूल-पत्तियों के बीच कांटां की चुभन विवाहित युवतियों को जीवन में आसन्न विघ्न बाधाओं का पूर्वाभास भी कराती है । इसके साथ ही नवविवाहिता को जलती बाती (टेमी) से घुटने सहित दोनों पांवों के ऊपरी भाग को दागकर उसे औरस पुत्रों की माता होने के योग्य बताये जाने की प्रथा वर्षों से चली आ रही हैं ।

मैथिल ब्राह्मण में अग्नि को साक्षी रखकर युवक-युवतियों के परिणय-सूत्र में बांधने की सदियों से प्रथा चली आ रही है जो अवध रूप से आज भी बदस्तूर जारी है । भू-मंडलीकरण के मौजूदा दौर में भी मिथिला समाज में मधुश्रावणी जैसी अनोखे पारंपरिक वैवाहिक अनुष्ठान को अक्षुण्ण रखा है । 

मिथिला की नवविहातिएं 25 जुलाई 2024 से 07 अगस्त 2024 यानी 14 दिनों तक इस पर्व को संपन्न करने की विधि में लगी रहती है । इस अवधि में ससुराल से आये अरबा चावल, रंग बिरंगे कपड़े और आभूषण का ही वे सेवन करती हैं ।

FastivalDates 
2024 में मधुश्रावणी व्रत कब है?
When is Madhushravani Vrat in 2024?
26 जुलाई 2024
26th July 2024
महीना
Month
श्रावण मास
Shravan
मधुश्रावणी पूजा 2024 प्रारंभ तिथि
Madhushravani Puja 2024 Start Date
26 जुलाई 2024
26th July 2024
मधुश्रावणी पूजा 2024 अंतिम तिथि
Madhushravani Puja 2024 Last Date
07 अगस्त 2024
07th August 2024

इस दौरान पंचमी तिथि से मधुश्रावणी पूजा तक रोजाना नवविवाहिता महिलाएं सोलह श्रृंगार करके एक टोली बनाकर एक साथ शाम को घर से बाहर निकलती है । अपने आसपास के इलाके में फूल तोड़ती है । जिसे एक पवित्र स्थल जैसे मंदिर स्कूल बाग बगीचे इत्यादि जगहों पर इकट्ठा किया जाता है । वहां पर डालियों में रंगोलियां बनाकर लोक गीत गाते हुए घर लाया जाता है और अगले सुबह पूजा-अर्चना में वे लग जाती हैं ।

मधुश्रावणी पूजा कथा के पाठ के दौरान मैना पंचमी, मंगला गौरी, पृथ्वी जन्म, सती क कथा, शिव विवाह, गंगा कथा, बिहुला कथा और बाल बसंत कथा सहित 15 खंड में किया गया है । मधुश्रावणी पूजा के दिन यदि पति वहां उपस्थित हों तो वे अपनी पत्नी को सिंदूरदान भी करते हैं । वहीं पति के लंबी उम्र के लिए किए जाने वाले यह व्रत धैर्य और त्याग का प्रतीक है ।

इस पर्व में लड़कियां रहती तो अपने मायके में है, लेकिन मायके का एक दाना भी नहीं खाती । इनके सभी सामग्रियों की पूर्ति इनके ससुराल वाले मायके में आकर करते हैं । इस दौरान नवविवाहिता नीचे जमीन पर सोया करती है । खाने की बात करें तो अरवा चावल, सेंधा नमक जैसे पवित्र चीजों का जलपान किया करती है ।

विषहरा का करते हैं पूजा (Vishahara ki Puja)

नव विवाहिता महिलाएं इसमें विषहरा की पूजा करते हैं । जो कि नाग देवता होते हैं । नैना के पत्ते पर भी विषहर लिखाता है । प्रतिदिन सुबह उठकर पहले विषहर का पूजा करते हैं । उनका प्रिय भोजन लावा दूध है । उनको लावा दूध चढ़ाते हैं फिर विषहरा की कथा करते हैं । उसके बाद शाम में जितने भी फूल होते हैं उसे पेड़ों से तोड़कर डालियों में रखते हैं । इन फूलों को पवित्र स्थल पर जाकर मधुश्रावणी पूजा गीत गाते हुए, उसे डालियों में रंगोली बनाते हैं । फिर अगले दिन प्रातः काल उसी फूल को विशहरा पर चढ़ाकर पूजा किया जाता है । इस पर्व को नवविवाहिता ही कर सकती है ।

मधुश्रावणी पूजा व्रत विधि महत्व (Madhushravani Puja Vidhi Mahatw )

परंपराओं के अनुसार इस व्रत का बेहद विशेष महत्व रहता है । मधुश्रावणी व्रत पूजा के दौरान महिलाएं प्रतिदिन बगीचों से फूल-पत्तियां चुनती हैं और विषहरा यानी सांपों और शिव-पार्वती की पूजा करती हैं । मधुश्रावणी पूजा के लिए मिट्टी का नाग-नागिन, हाथी, गौरी, शिव की प्रतिमा बनायी जाती है । 15 दिनों की इस पूजा के दौरान नवविवाहितों को नाग देवता की कहानी सुनाई जाती है, जबकि बाकी दिनों में सावित्री, सत्यवान, शंकर-पावर्ती, राम-सीता, राधा-कृष्ण जैसे देवताओं की कहानियां सुनाई जाती हैं ।

माता गौरी और भगवान शिव की करते है आराधना (Mata Gauri or Bagawan Shiv Puja)

मघुश्रावणी व्रत पूजा में माता गौरी और भगवान शिव की आराधना करने की मान्यता है । मिथिला समाज की नवविवाहिता अरवा भोजन ग्रहण कर पूजन करती हैं. एक दिन पहले नहाय-खाय का अनुष्ठान किया जाता है । मधुश्रावणी पूजा व्रत पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है ।

ससुराल से आये अनाज को ही करती हैं ग्रहण (Sasural se aaye Anaj)

मघुश्रावणी व्रत पूजा के बाद ससुराल से आया भोजन नवविवाहिता ग्रहण करती हैं । मघुश्रावणी व्रत पूजा के लिए मिट्टी का नाग-नागिन, हाथी, गौरी, शिव की प्रतिमा बनायी जाती है । फिर मौसमी फल, मिठाई, तरह-तरह के फूल को चढ़ाया जाता है । आठवें और नौवें दिन प्रसाद के रूप में खीर रसगुल्ला का भोग लगाया जाता है । प्रतिदिन संध्या में नवविवाहिता आरती सुहागन गीत, कोहबर गीत गाकर भोले शंकर को पसंद करती हैं ।

नवविवाहिता के भाई का रहता है बड़ा योगदान

मान्यता के अनुसार इस व्रत में नवविवाहिता के भाई का बहुत ही बड़ा योगदान रहता है । प्रत्येक दिन पूजा समाप्ति के बाद भाई अपनी बहन को हाथ पकड़कर उठाता है । मधुश्रावणी पूजा जीवन में सिर्फ एक बार शादी के पहले सावन को किया जाता है । मघुश्रावणी व्रत पूजा नवविवाहित महिलाएं करती है । नवविवाहित औरतें नमक के बिना 13 से 14 दिन भोजन ग्रहण करती है । मघुश्रावणी व्रत में अनाज, मीठा भोजन लिया जाता है । अनुष्ठान के दौरान नवविवाहिता एक ही साड़ी का इस्तेमाल करती हैं, वो भी जो ससुराल से आया होता है और आखरी दिन में नवविवाहित महिला कम से कम 5 सुहागन स्त्रियों के साथ बैठकर एक साथ खाती हैं ।


परानाम

धन्यवाद !


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