Madhushravani puja:- मधुश्रावणी पूजा – तेसर दिन क कथा :
Madhushravani Puja Day-3:- मधुश्रावणी पूजा कथा के तेसर दिन क कथा मे पृथ्वी क जन्म क कथा और समुद्र मंथन क कथा कहि ।

पृथ्वी क जन्म
ब्रह्मा सब देवता लोकनि के सभा बजा क कहलखिन जे संसार में पाप बड पासरि गेल अछि तें पृथ्वी भागि के रसातल में चलि गेलिह ,हुनका कोनों तरह अनबाक अछि I सब गोटा मिल तखन पृथ्वी के आग्रह केलखिन ऊपर अयबाक लेल I पृथ्वी कहलखिन कि – हम कोना आयब लोक हमर अपमान करैत अछि I लोक हमरा ऊपर रहैतो अछि आ मल -मूत्र सेहो त्याग करैत ऐछ I
ताहि पर देवता सब कहलखिन कि – अहाँ एकर चिंता नहि करू ,जे अहाँ क ऊपर मल -मूत्र करत आ ओकरा देखि लेत ओकरा पाप हेतई I तखन अहाँ क असहज नहि लागत I ज्यों कियो बिना अहाँ सं क्षमा मागने अहाँ पर पैर रखत तकरो पाप हेतई I तखन पृथ्वी रसातल सं ऊपर एलखिन I विष्णु कछुआ क रूप धरि हुनका अपना पीठ पर धेलखिन, पृथ्वी डगमगैईत रहलि ,तँ माइट ताकल गेल I
अगस्त्य मुनि तपस्या करैत छलैथ I हुनका जाँघ तर सं माटि आनल गेल I विष्णु मतस्य रूप धरि भाति अनलैथ त पृथ्वी साटल गेल ,तखनो डोलैत रहलि I तखन विष्णु वराह रूप धरि उत्तर दिश सं पृथ्वी क दबलेथ त पृथ्वी स्थिर भेलखिन तदानोपरांत ब्रह्मा ओहि पर संसार क सृजन कैयलेथ II
समुद्र मंथन
देवता सब अमर होएबाक इक्षा सं समुद्र मंथन क हेतु जाहि में दानव सभक सेहो मदद लेल जाय से विचार -विमर्श लेल सुमेरु पर्वत पर जमा भेला I वासुकी नाग क बजायल गेल ,ओ मंदराचल पर्वत के अपना विशाल शरीर सं लपेटि उखाङि देलखिन आ देवता सब हुनका उठा समुद्र क कात अनलैथ I मंदराचल मथनी आ वासुकी मथैबाला रस्सी ,आब आधार चाही छल जाहि पर मंदराचल घुमता ,ताहि लेल देवता आ दानव क अनुरोध पर कूर्म (कछ्छ्प ) राज तैयार भेला I
समुद्र मंथन आरम्भ भेल नाग क शीश दिस दानव आ पूंछ दिस देवता गण I मंथन सं समुद्र जीव- जंतु पिसाए लागल आ मंदार क गाछ सब टकरा क खस लागल ,पर्वत पर अग्नि प्रज्वलित भय गेल जाहि में सोना- चांदी मूंगा – मोती सब भस्म होबए लागल I सब के व्याकुल देखि इन्द्र वर्षा कर लगला जाहि सं सब भस्म सब धोखरि के समुद्र में जाय लागल I समुद्र क नूनगर जल दूध भई गेल ,जे फेर मथला पर घी भय गेल I
धीरे धीरे समुद्र सं लक्ष्मी, सुरा, उच्चैःश्रवा घोङा निकलल जकरा चन्द्रमा हथिया लेलैथ I तत्पश्च्यात धनवंतरी अमृत लेने प्रगट भेलैथ I तखन विष निकलल जकर थाह सं सब गोटा मूर्छित भए गेला I तखन शिव सबटा विष पीबि गेलैथ आ बेहोश भए गेलैथ I गौरा क निहोरा केला पर सब बिसहारा ,साँप बिरहनी चुट्टी सब मिलि क महादेव क शरीर सं विष निकाललक ,मुदा शिव क अनुरोध पर कनेक विष कंठ में छोङि देलक जाहि सं हुनकर कंठ कारी छनि,आ तहिये सं ओ नीलकंठ कहेला I
अमृत लेल देवता और दानव में झगङा होमय लागल I दानव अमृत में अपन हिस्सा मांग लगला आ देवता सब के इ डर छल ,जे बिना अमृत के दानव सब बहुत बलिष्ठ ऐछ आ कैक बेर देवता सब के परास्त क स्वर्ग सं भगा देने छल त अमृत पी लेला बाद पता ने कि करत इ सोचि विष्णु मोहनि नारी रूप धरि दानव सभक समक्ष प्रगट भेलि I
मोहनि सं मोहित भय हुनका हाथ में अमृत दय असुर देवता सब सं युद्ध करवा लेल चलि गेला I एही बीच मोहनी अमृत सब देवता सब में बाँटी देलखिन I ओहि देवता सब में एक टा असुर राहू ,देवता क रूप धरि अमृत ग्रहण कर लागल त सूर्य आ चंद्रमा हुनका चिन्ह गेलखिन आ विष्णु के कहि देलखिन I यावत् ओकरा कंठ में अमृत जाइ तावत् विष्णु ओकर गरदनि काटि देलखिन I
अमृत क स्पर्श सं ओ मरि नहि सकल ,किन्तु दु भाग में विभक्त भ गेल ,मुंड राहु आ धङ केतु I तहिये सं ओ सूर्य आ चंद्रमा क शत्रु भय गेल I तेँ अखन्हु धरि कहियो कहियो अमावस्या में सूर्य के आ पूर्णिमा में चंद्रमा के निगली जाइत छैथ जाहि सं सूर्यग्रहण आ चंद्रग्रहण होइत अछि I जें ओकर धङ कटल छैक तें सूर्य आ चन्द्रमा फेर बाहर निकलि जैत छैथ I
देवगण केँ अमृत पिऔला क बाद विष्णु अश्त्र- शश्त्र लए दानव सब के युद्ध में परास्त करि पताल भगा देलखिन आ बचल अमृत इन्द्र क जिम्मा राखि विश्वकर्मा के ओकर रखवार बना देलखिन I वासुकी नाग जिनका समुद्र मंथन में अपार कष्ट भेलैन हुनका वरदान देलखिन जे हुनका माय के श्राप नहि लगतनि ,ओ सपरिवार जनमेजय महाराज क सर्प यज्ञ में नहीं जरताह ,हुनकर भगिन आस्तिक मुनि हुनकर रक्षा करथिन II

धन्यवाद !
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