Madhushravani puja:- मधुश्रावणी पूजा – दशम दिन क कथा:
कार्तिक क जन्म
एक बेर महादेव गौरी संग सम्भोग क इक्षा सं निर्जन वन में जा सुगन्धित झाङी में सम्भोग रत भ गेला I कातेक दिन बीत गेल I सब देवता लोकनि के चिंता होमय लागल ,सब ब्रह्मा लग गेला ब्रह्मा कहलैथ –चिंता जुनि करू सब कल्याण होयत मुदा एतबा ध्यान राखल जाएल जे यदि गौरी पेट सं इ संतान होयत त ओ समस्त संसार क नाश कय देत I ते अहाँ सब महादेव क सम्भोग सं निवृत करबाक प्रयास करू I
देवता सब वन में जा हल्ला कर लगला जाहि सं महादेव त सम्भोग सं निवृत भय गेला मुदा हुनकर अंश पृथ्वी पर खासि पङल I गौरी एही सं क्रोधित भय गेली आ सब के श्राप देलखिन जे देवता सब के कहियो सम्भोग सं संतान नहि हेतनि I
महादेव क अंश क पृथ्वी नहि सहन क सकल त ओ ओकरा अग्नि में फेक देलक ,असमर्थ अग्नि ओकरा सरपत वन में I ओतय जा ओ अंश छह मुँह बाला बच्चा भय गेल I ओहि वाटे कृतिका सब जैत छल I ओ सब ओहि कानैत बच्चा क उठा क पोसलक ,ताहि सं बच्चा क नाम कार्तिकेय पङल I
गणेश क जन्म क बाद जखन गौरी क कर्तिकेय क बारे में पता चलल त ओ हुनका अपना लग बजा लेलखिन I देवता लोक हुनकर अभिषेक क हुनका देवता क सेनापति बनेलखिन I कार्तिकेय तारकासुर के मारि इन्द्र क हुनकर राज्य वापस केलखिन I कार्तिकेय क विवाह साठी सं भेलनि II

गणेश क जन्म
देवता लोकनि के विघ्न वाधा सं प्रथम सम्भोग असफल भेला सं गौरी खिन्न आ रुष्ट रह लागलि तँ महादेव हुनका सं हुनकर खिन्नता क कारण पुछलखिन I ताहि पर गौरी कहलखिन –अहाँ
अंतर्यामी छी फेर हमर बात कियाक नई बुछैत छी I स्त्रीगण लेल सब सं पैघ सुख नीक पुरुष संग सम्भोग करब थीक .ओहि में कुनु विघ्न-वाधा होइत छैक त यहि सं बढि क कोनों दुःख नहि I एही दुःख सं स्त्री दिनानुदिन खिन्न आ झक्की स्वभाव क भय जाइत छै I एकटा क सम्भोग में विघ्न दोसर अहाँ क अंश धरती पर खासि पङल I जकर स्वामी त्रिलोकीनाथ ओकरा संतान नहि I आब यहि सं बढि क आर कों दुःख I हम कों उपाय करू से कहू I
महादेव कहलखिन –हे प्रिये !अहाँ निराश नइ होउ I माघ सुदि त्रयोदशी सुपुष्प नामक विष्णु व्रत करू अहाँ क मनोकामना पूर्ण होयत I गौरी प्रसन्न भय अगिला माघ सुपुष्प व्रत नियम पूर्वक कयलानि I व्रत समाप्त क गौरी महादेव संग कैलाश क एक निर्जन स्थान पर सुख विलाश करय लागलि I जखन महादेव क अंश खासबाक समय आयल त विष्णु एक टा बुढ तपस्वी ब्राह्मण क रूप लय हुनका द्वार पर ठाढ भय हाक पाङ लगला –हे परम पिता महादेव आ जग माता गौरी ! हमरा किछु भोजन दय हमर प्राण क रक्षा करू I
हाक सुनि दुनू गोटए धरफडाय उठि दौङला जाहि सं महादेव क अंश पंलग पर खसि पङल I गौरी महादेव ब्राह्मण क सेवा में लागि गेला I तत्क्षण ब्राह्मण अंतर्ध्यान भय गेला आ आकाशवाणी भेल-गौरी अहाँ क व्रत क फल अहाँ क संतान पंलग खेला रहल ऐछ ,जाऊ ह्रदय जुराऊ आ जीवन सफल करू I गौरी घर जा देखलखिन त पलग पर एक टा सुन्दर बालक अपन अगूंठा चुसैत खेलाइत छल I
दुनू गोटा आनंदिंत भय गेला I कैलाश पर महोत्सव भेल जाहि में सब देवता,ऋषि आ हिमालय परिवार सहित सम्मलित भेलैथI बच्चा क नाम गणेश राखल गेल I एही उत्सव में शनि सेहो आयल छेलैथ गौरी क आग्रह पर ओ बच्चा के ओछेपे देखलखिन त गणेश क गरदनि काटि गेल I विष्णु एकटा हाथी क बच्चा क गरदनि जोङि अमृत छिटि हुनका जिआउल I ओहि दिन सं गणेश क मुख हाथी क छैन I गणेश क विवाह दक्षप्रजापति क बेटी पुष्टि सं भेलनि II
गौरी क ननदि
गौरी एक दिन महादेव सं कहलखिन जे – हे महादेव देखैत छिअइ सब हक ननदि अबैत छैथ हमरो सेहेंता होइत अछि जे हमरो ननदि अबितैथ I महादेव कहलखिन गौरी सेहेंता नई करू अहाँ ननदि केर भार नहि सकी सकब I परन्तु गौरी जिद ठानी लेलखिन कि ननदि कि बजायल जाय I तखन महादेव अपना बहिन आशाबरी देवी क बजेलखिन I आशाबरी एलखिन I हुनका पैर में बेमाय फाटल छेलैन I
हँसी –हँसी में एक दिन ओ गौरी क अपना बेमाय में नुका रखलखिन I महादेव जखन घर अएलाह त गौरी क हाँक पारलखिन ,गौरी त ननदि क बेमाय में कानैत बैसल छेली I ज्यो आशाबरी पटकलथिन ,गौरी भट्ट सं खसलखिन I दुनू भई बहिन भभाह क हंस लगला I एकदिन महादेव बहुत रास माछ अनलैथ I गौरी बङ प्रेम सं बनेलखिन आ स्नेह सं अपना ननदि क कहलखिन – अहाँ धि-सुहासिन छि ,पहिने अहाँ खा लिय तखन हम सब खायब I आशाबरी खाय लागलि आ खाईत खाइत सब टा खा गेलखिन I
बेचारी गौरी आशाबरी क परिचर्या सं आब तंग भय गेली आ महादेव क कहलखिन जे –आंब हिनका पठाऊ ,नई त कुनु दिन ई हमरो खा जेति I महादेव कहलखिन –तें हम अहाँ क कहने रहि कि सेहेंता नहि करू अहाँ अपना ननदि क भार नहि उठा सकब ,लेकिन अहाँ क जिद क देलउ आ आब अहाँ एतबे दिन में तंग भय गेलौ ,राखिओं किछ दिन आओर I गौरी नेहोरा करय लागलि त महादेव बहिन आशाबरी क बुझा –सुझा क विदा केलखिन II
गौरी क भगिन
महादेव क एकदिन गौरी कहलखि –हे महादेव ,सब हक भगिन अबैत जाइत ऐछ ,मामी संग हंसी खेल करैत ऐछ । हमरा तकर बर सेहेंता होइत ऐछ I महादेव कहलखि – ननदि क त सेहेंता पुरि गेल आब भगिन क सेहन्ता सेहो पुरि जायत मुदा बाद में हमरा नहि उलाहना देव I गौरी गंगा जल भर गेलि ,खूब जोर सं पुरवा पछवा बह लागल ,एहन कि गौरी क सबटा वस्त्र उङ लागलैन I
गौरी महादेव क कहलखिन –दे खू त इ बसात हमरा बेनग्न क देत I महादेव कहलखिन –इ बसात पुरवा-पछवा अहाँ के भागिन छि I दुनू गोटा अहाँ सं हंसी –मजाक आ धूर्तता क रहल छैथ आ अहाँ क सेहेंता पूरा रहल छैथ I गौरी कहलखिन –जेहिना अहाँ सं कियो पार नहि पावि सकैत अछि तहिना अहाँ क सर-सम्बन्धी सब सं नहीं पाओत हटाऊ अपना भगिन सब के I महादेव इशारा केलखिन त बसात रुकि गेल II
बाचो बीनी
“पुरैनिक पत्ता ,झिलमिल लत्ता ताहि चढ़ी बैसली बिसहरी माता I
हाथ सुपारी खोईंछा पान ,बिसहरी माता करती शुभ कल्याण “II
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