Maa kali kavach के पाठ से उपासक को मां काली की विशेष कृपा और आशीर्वाद मिलता है । Maa kali kavach का पाठ भक्तो को हर मुश्किल और कठिनाई से बचाता है । Maa kali kavach के पाठ करने से एक पॉजिटिव एनर्जी पैदा होती है जो उपासक को जीवन के हर मुस्किल का सामना करने की शक्ति और साहस प्रदान करता है । Maa kali kavach का पाठ करने वाला व्यक्ति हर तरह के जादू, टोने, भूत, प्रेत, के भय से मुक्त हो जाता है ।
॥ Maa kali kavach ॥
कवचं श्रोतुमिच्छामि तां च विद्यां दशाक्षरीम् ।
नाथ त्वत्तो हि सर्वज्ञ भद्रकाल्याश्च साम्प्रतम् ॥
॥ नारायण उवाच ॥
श्रृणु नारद वक्ष्यामि महाविद्यां दशाक्षरीम् ।
गोपनीयं च कवचं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम् ॥
ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहेति च दशाक्षरीम् ।
दुर्वासा हि ददौ राज्ञे पुष्करे सूर्यपर्वणि ॥
दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धि: कृता पुरा ।
पञ्चलक्षजपेनैव पठन् कवचमुत्तमम् ॥
बभूव सिद्धकवचोऽप्ययोध्यामाजगाम स: ।
कृत्स्नां हि पृथिवीं जिग्ये कवचस्य प्रसादत: ॥
॥ नारद उवाच ॥
श्रुता दशाक्षरी विद्या त्रिषु लोकेषु दुर्लभा ।
अधुना श्रोतुमिच्छामि कवचं ब्रूहि मे प्रभो ॥
॥ अथ कवचं ॥
श्रृणु वक्ष्यामि विपे्रन्द्र कवचं परमाद्भुतम् ।
नारायणेन यद् दत्तं कृपया शूलिने पुरा ॥
त्रिपुरस्य वधे घोरे शिवस्य विजयाय च ।
तदेव शूलिना दत्तं पुरा दुर्वाससे मुने ॥
दुर्वाससा च यद् दत्तं सुचन्द्राय महात्मने ।
अतिगुह्यतरं तत्त्वं सर्वमन्त्रौघविग्रहम् ॥
ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा मे पातु मस्तकम् ।
क्लीं कपालं सदा पातु ह्रीं ह्रीं ह्रीमिति लोचने ॥
ह्रीं त्रिलोचने स्वाहा नासिकां मे सदावतु ।
क्लीं कालिके रक्ष रक्ष स्वाहा दन्तं सदावतु ॥
ह्रीं भद्रकालिके स्वाहा पातु मेऽधरयुग्मकम् ।
ह्रीं ह्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा कण्ठं सदावतु ॥
ह्रीं कालिकायै स्वाहा कर्णयुग्मं सदावतु ।
क्रीं क्रीं क्लीं काल्यै स्वाहा स्कन्धं पातु सदा मम ॥
क्रीं भद्रकाल्यै स्वाहा मम वक्ष: सदावतु ।
क्रीं कालिकायै स्वाहा मम नाभिं सदावतु ॥
ह्रीं कालिकायै स्वाहा मम पष्ठं सदावतु ।
रक्त बीजविनाशिन्यै स्वाहा हस्तौ सदावतु ॥
ह्रीं क्लीं मुण्डमालिन्यै स्वाहा पादौ सदावतु ।
ह्रीं चामुण्डायै स्वाहा सर्वाङ्गं मे सदावतु ॥
प्राच्यां पातु महाकाली आगन्ेय्यां रक्त दन्तिका ।
दक्षिणे पातु चामुण्डा नैर्ऋत्यां पातु कालिका ॥
श्यामा च वारुणे पातु वायव्यां पातु चण्डिका ।
उत्तरे विकटास्या च ऐशान्यां साट्टहासिनी ॥
ऊध्र्व पातु लोलजिह्वा मायाद्या पात्वध: सदा ।
जले स्थले चान्तरिक्षे पातु विश्वप्रसू: सदा ॥
इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम् ।
सर्वेषां कवचानां च सारभूतं परात्परम् ॥
सप्तद्वीपेश्वरो राजा सुचन्द्रोऽस्य प्रसादत: ।
कवचस्य प्रसादेन मान्धाता पृथिवीपति: ॥
प्रचेता लोमशश्चैव यत: सिद्धो बभूव ह ।
यतो हि योगिनां श्रेष्ठ: सौभरि: पिप्पलायन: ॥
यदि स्यात् सिद्धकवच: सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् ।
महादानानि सर्वाणि तपांसि च व्रतानि च ॥
निश्चितं कवचस्यास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ॥
इदं कवचमज्ञात्वा भजेत् कलीं जगत्प्रसूम् ।
शतलक्षप्रप्तोऽपिन मन्त्र: सिद्धिदायक: ॥
Maa kali kavach के पाठ की विधि
- Maa kali kavach का पाठ करने के लिए प्रातः काल उठकर शुद्ध जल से स्नान करके साफ-सुथरे और पवित्र वस्त्र धारण करना चाहिए ।
- किसी काली मंदिर में अथवा अपने घर के ही मंदिर में मां काली की मूर्ति अथवा फोटो को रखकर उसे चुनरी चढ़ाए और फिर माता की फूल, कुमकुम, अक्षत आदि सामग्रियों से पूजा करें ।
- इसके बाद माता काली के आगे शुद्ध घी का दिया जलाएं ।
- इतना करने के बाद Maa kali kavach का श्रद्धा भक्ति पूर्वक पाठ करें ।
- पाठ के अंत में माता की आरती करें और अपनी गलतियों और फूलों के लिए माता से क्षमा मांगे ।

धन्यवाद !
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