Jitiya Vrat 2023 | जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत कब हैं। जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं कथा।

हमारे देश में हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से लेकर नवमी तिथि तक Jitiya Vrat रखा जाता है और जितिया का पर्व मनाया जाता है । शुद्ध रूप से Jitiya Vrat अष्टमी तिथि को रखा जाता है और इस व्रत का पारण नवमी तिथि के दिन होता है इस प्रकार Jitiya Vrat पर्व तीन दिवसीय हो जाता है ।

जितिया का पहला दिन(Jitiya Vrat First Day): Jitiya Vrat में पहले दिन अर्थात सप्तमी को नहाए खाए होता है अर्थात इस दिन महिलाएं नहाने के बाद भोजन करती हैं और इसी से यह व्रत प्रारंभ हो जाता है ।

जितिया का दूसरा दिन(Jitiya Vrat Second Day): Jitiya Vrat के दूसरे दिन को खुर जितिया कहते हैं और यही दिन इस व्रत का सबसे खास दिन होता है जो की अष्टमी तिथि को पड़ता है । इसी अष्टमी तिथि को बिना जल ग्रहण किए व्रत रखा जाता है अर्थात यह जितिया का निर्जला व्रत उसी दिन रखा जाता है ।

जितिया का तीसरा दिन(Jitiya Vrat Third Day): Jitiya Vrat के तीसरे दिन ब्राह्मण भोजन कराने के बाद इस व्रत का पारण किया जाता है । इसी के साथ यह तीन दिवसीय Jitiya Vrat और पर्व समाप्त हो जाता है ।

जितिया व्रत 2023 तिथि एवं मुहूर्त । (Jitiya Vrat 2023 Date and Time)

नहाए खाए: 5 अक्टूबर 2023, गुरुवार को

निर्जला जितिया व्रत: 6 अक्टूबर 2023, शुक्रवार की सुबह 6:34 से शुरू
अष्टमी तिथि शुरू – 6 अक्टूबर प्रातः 6:34 पर ।

जितिया व्रत पारण: 7 अक्टूबर 2023, शनिवार को सुबह 8:08 पर
अष्टमी तिथि समाप्त – 7 अक्टूबर प्रातः 8:08 पर ।

FestivalDate
Jitiya vrat 20236 अक्टूबर 2023 शुक्रवार
Jitiya vrat also known asjivitputrika vrat / जीवित्पुत्रिका व्रत
नहाए खाए5 अक्टूबर 2023, गुरुवार को
जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत कब हैं ।6 अक्टूबर 2023 शुक्रवार की सुबह 6:34 से शुरू
जितिया व्रत पारण7 अक्टूबर 2023, शनिवार को सुबह 8:08 पर

जितिया व्रत पूजा विधि । (Jitiya Vrat 2023 Puja Vidhi)

  • प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि कर साफ वस्त्र धारण करें ।
  • उसके बाद प्रदोष काल में ही गाय के गोबर से पूजा स्थल को साफ कर ले ।
  • इसी के बाद एक छोटा सा तालाब बनाकर तालाब के पास एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ी कर दें ।
  • फिर जीमूतवाहन की मूर्ति जल के पात्र में स्थापित कर लें । धूप, दीप आदि से आरती करें एवं भोग लगावें । इस दिन बाजरा से मिश्रित पदार्थ भोग में लगायी जाती है ।
  • इसी के बाद मिट्टी तथा गाय के गोबर से चीन और सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है । जिनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है ।
  • फिर व्रत की कथा पढ़ी एवं सुनी जाती है ।
  • मां पार्वती को 16 पेड़ा, 16 दूब की माला, 16 खड़ा चावल, 16 गांठ के धागा, 16 इलायची, 16 खड़ी सुपारी, 16 लौंग, 16 पान और श्रृंगार का सामान अर्पित किया जाता है ।
  • वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए उपवास कर बांस के पात्रों से पूजा की जाती है ।
  • इस व्रत में मातायें सप्तमी खाना व जल ग्रहण करके व्रत की शुरूआत करती हैं और अष्टमी को पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं और नवमी को व्रत का समापन करती है ।

जितिया व्रत पूजा महत्व । (Jitiya Vrat 2023 Puja Mahatva)

जिवितपुत्रिका व्रत या जितिया व्रत सुहागन महिलाएं संतान की प्राप्ति एवं लंबी उम्र के लिए रखती है । इस अवसर पर, माताएँ अपने बच्चों की भलाई के लिए बेहद ही कठिन उपवास रखती हैं ।  जिवितपुत्रिका व्रत या जितिया व्रत बिना जलग्रहण किए किया जाता है । यदि इस व्रत को जल के साथ किया जाए तो इसे खुर जितिया कहा जाता है । यह तीन दिवसीय पर्व है, जो कृष्ण पक्ष के दौरान सातवें दिन से लेकर आश्विन महीने के नौवें दिन तक होता है ।

जितिया व्रत कथा । (Jitiya Vrat Katha)

जितिया व्रत मैं कई कथाएं प्रचलित हैं यहां हम जितिया व्रत से संबंधित तीन प्रमुख कथाओं का उल्लेख कर रहे हैं: 

राजा जीमूत वाहन की कथा ।

प्राचीन समय की बात है । गंधर्व के एक राजकुमार थे जिनका नाम जीमूत वाहन था । जीमूत वाहन बड़े ही उदार और परोपकारी प्रवृत्ति के थे । जब जीमूत वाहन के पिता काफी वृद्ध हो गए तो वानप्रस्थ आश्रम में जाने से पहले उन्होंने जीमूत वाहन को अपना राजपाट सौंप दिया । राजा जीमूत वाहन का मन राजपाट में नहीं लगता था तब उन्होंने निर्णय लिया कि वह अपना राजपाट अपने भाइयों को देकर अपने पिता की सेवा करने जंगल में चले जाएंगे ।

राजा जीमूत वाहन का विवाह मलयवती नमक कन्या से हुआ ।  एक दिन जब वो वन में भ्रमण कर रहे थे तो घूमते घूमते उन्होंने एक वृद्ध महिला को रोते हुए देखा । जब राजा ने वृद्धा से उसके रोने का कारण पूछा तो उस वृद्ध महिला ने बताया कि मैं नागवंशी स्त्री हूं और मेरा एक ही पुत्र है । 

पक्षीराज गरुड़ के सामने सभी नागौ ने यह प्रतिज्ञा की है कि उन्हें भोजन के लिए प्रत्येक दिन एक नाग सौंपी जाएगी । और आज उस प्रतिज्ञा के तहत मेरे पुत्र शंखचूड़  की बलि देने की बारी आई है । यह सुनकर राजा जुमत वाहन ने उस वृद्ध महिला को आश्वासन देते हुए कहा कि डरो मत मैं तुम्हारे पुत्र की रक्षा करूंगा ।

यह आश्वासन देकर राजा जीमूत वाहन वृद्धा के पुत्र की जगह पर खुद ही लाल कपड़े में ढ़क कर पक्षीराज गरुड़ के समक्ष प्रस्तुत हो गए । उसके बाद समय होने पर गरुड़ वहां आएं और लाल कपड़े में ढके जीमूत वाहन को अपने पंजे में दबाकर पहाड़ के शिखर पर उड़ चलें ।

गरुड़ को अपने चंगुल में फंसे प्राणी के चीख सुनाई देकर बड़ा आश्चर्य हुआ तो उन्होंने लाल कपड़ा हटाकर देखा और जीमूत वाहन से उनका परिचय पूछा ।

जमत वाहन ने गरुड़ को सारा किस्सा सुनाया गरुड़ जी जीमूत वाहन की बहादुरी और त्याग को देखकर बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने प्रसन्न होकर जीमूत वाहन को जीवनदान दे दिया साथ ही सभी नागों को भी अभय दान दे दिया ।

इस प्रकार राजा जीमूत वाहन के साहस और हिम्मत ने पूरे नाग जाति की रक्षा की और तभी से अपने पुत्र की सुरक्षा के लिए जिमूत वाहन व्रत का प्रथा शुरू हो गया । हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के प्रदोष काल में पुत्रवती महिलाएं जितवाहन व्रत और पूजा करती हैं ।

दूसरी कथा: महाभारत के युद्ध काल की कथा ।

पौराणिक कथा के अनुसार जब महाभारत का युद्ध हुआ तो अश्वत्थामा नाम का हाथी मारा गया । लेकिन चारों तरफ यह खबर फैल गई कि द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा मारा गया । यह सुनकर अश्वत्थामा के पिता द्रोणाचार्य ने पुत्र शोक में अस्त्र डाल दिए । तब द्रोपदी के भाई धृष्टधुम्न ने उनका वध कर दिया । पिता की मृत्यु के कारण अश्वत्थामा के मन में बदले की लैंव जल रही थी ।

अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए वह रात के अंधेरे में पांडवों के शिविर में जा पहुंचा । उसने पांडव के पांचों पुत्र को सोया हुआ देखकर उन्हें पांडव मान लिया और उनकी हत्या कर दी । परिणाम स्वरूप पांडवो को अत्यधिक क्रोध आ गया । तब भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा से उसकी मणि छीन ली । जिसके बाद अश्वत्थामा पांडवों से क क्रोधित हो गया और उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को जान से मारने के लिए उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया । भगवान श्रीकृष्ण इस बात को भलीभांति जानते थे कि ब्रह्मास्त्र को रोक पाना असंभव है ।

तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल एकत्रित करके उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को दे दिया । जिसके फलस्वरूप बच्चा पुनः जीवित हो गया । यही बच्चा बड़ा होकर राजा परीक्षित बना । उत्तरा के बच्चे के दोबारा जीवित हो जाने के कारण ही इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका व्रत रखा गया । गर्भ में मृत्यु को प्राप्त कर फिर से जीवन मिलने के कारण इसका नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया । तब से ही संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है ।


परानाम

धन्यवाद !


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