Hariyali Teej 2023 का व्रत सावन माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाएगा । अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार Hariyali Teej का व्रत जुलाई या अगस्त के महीने में आता है । शिव पुराण के अनुसार Hariyali Teej के दिन ही भगवान शिव और मां गौरी का पुनर्मिलन हुआ था । तो आइए इस आर्टिकल के माध्यम से हम जानते हैं कि इस साल 2023 में कब है हरियाली तीज का व्रत, पूजा विधि व मुहूर्त ।
हरियाली तीज मुख्यतः सुहागिन महिलाओं का पर्व है । Hariyali Teej का व्रत करने से विवाहित महिलाओं को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है । साथ ही पति की लंबी उम्र होती है । वही अविवाहित लड़कियों के शीघ्र ही शादी के योग बनते हैं । हिंदुओं में काफी ये पर्व काफी लोकप्रिय है । खास तौर पर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा राज्य में इसे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है ।
सावन माह में जब पूरी धरती हरियाली की चादर ओढ़ लेती है । तब प्रकृति का यह दृश्य अत्यंत ही सुंदर होता है । इसी क्षण का आनंद लेते हुए महिलाएं इस पर्व को मनाती हैं जाहा वे सभी महिलाएं लोकगीत गाती हैं, झूले झुलती हैं, अच्छे पकवान बनाती हैं, सोलह सिंगार करती हैं, नए वस्त्र धारण करती हैं । क्योंकि हरियाली तीज का पर्व सौंदर्य और प्रेम का है इसी दिन भगवान शिव और मां गौरी का पुनर्मिलन हुआ था ।
कब है हरियाली तीज 2023 में, शुभ मुहूर्त कब का हैं (When is the Hariyali Teej festival in 2023)
हिंदू पंचांग के अनुसार हरियाली तीज 2023 में 18 अगस्त को रात 8:02 से शुरू हो रही है या अगले दिन 19 अगस्त 2023 को रात 10:19 तक रहेगी । महिलाएं 19 अगस्त की सुबह से हरियाली तीज का व्रत रख सकती है । जिस का शुभ मुहूर्त सुबह 7:47 से सुबह 9:22 तक रहेगा । इसके अलावा शाम को 6:52 से 7:45 तक भी पूजा के लिए शुभ मुहूर्त है ।
सुबह का मुहूर्त – प्रातः 7:47 से 9:22 तक
दोपहर का मुहूर्त – दोपहर 12:32 से 2:07 तक
शाम का मुहूर्त – शाम 6:52 से रात 7:15 तक
रात का मुहूर्त – प्रातः 20 अगस्त 2023 को 12:10 से 12:55 तक
क्यों मनाई जाती है हरियाली तीज का त्योहार (Why is the festival of Hariyali Teej celebrated?)
शिव पुराण के अनुसार हरियाली तीज के ही दिन भगवान शिव ने मां गौरी की कठोर तपस्या के बाद उन्हें अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया था । यही कारण है कि भगवान शिव के समान पति पाने और सदा सुहागन रहने के लिए हरियाली तीज का त्यौहार मनाया जाता है ।
हरियाली तीज की पूजा विधि (Hariyali Teej Puja Vidhi)
- हरियाली तीज के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि कर ले ।
- लाल रंग की नए कपड़े पहन कर पूजा स्थल को साफ कर ले ।
- भगवान शिव और माता गौरी की मूर्ति बनाएं और पूजा का संकल्प लें ।
- फिर उन्हें लाल कपड़े के आसन पर बिठाए । पूजा की थाल को सुहागन की सभी चीजों को रखकर सजाएं । फिर उसे मां गौरी और भगवान शिव को अर्पित करें ।
- फल, फूल, धूप, दीप, अक्षत, दूर्वा, सिंदूर आदि सभी चीजों से भगवान शिव और माता गौरी की पूजा अर्चना करें और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करें ।
- अंत में तीज की कथा और आरती करें । इस पर्व में महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और अगले दिन भर व्रत का पारण करती हैं ।
हरियाली तीज के महत्व (Hariyali Teej Mahatv)
सनातन धर्म में शास्त्र शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव और मां गौरी का पुनर्मिलन हरियाली तीज के दिन हुआ था । सावन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ही भगवान शिव ने मां गौरी के कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया था । उसी समय से सावन माह के शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को सुहागन महिलाएं हरियाली तीज के रूप में मनाते हैं । इस व्रत को करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है ।
हरियाली तीज की पौराणिक परंपराएं ।
नवविवाहित लड़कियों के लिए विवाह के बाद का यह पहला सावन और सावन मास के सभी त्योहार का विशेष महत्व होता है । सावन का त्यौहार आने पर लड़कियों को उनके ससुराल से पीहर बुला लिया जाता है । जहां लड़कियां अपने इस खास त्योहार की तैयार करती हैं ।
हरियाली तीज से 1 दिन पहले सिंजारा मनाया जाता है । इस दिन नवविवाहित लड़की के ससुराल से उसके लिए नए वस्त्र आभूषण सिंगार का सामान मेहंदी और मिठाई भेजी जाती है ।
ससुराल से आए मेहंदी को महिलाएं अपने हाथों पर लगाती है । पैरों में अलता लगाती है । नए वस्त्र पहनती हैं आभूषण से श्रृंगार करती हैं । फिर अपने से बड़ों का पांव छू कर सुहाग लेती है । फिर पूजा के समय मां गौरी का सोलह सिंगार कर उनकी पूजा करती है ।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नवविवाहित महिलाओं को संकल्प लेना पड़ता है कि ,
- वे अपने पति से कभी भी छल कपट नहीं करेगी ।
- कभी भी अपने पति से झूठ या उनके साथ कोई भी दुर्व्यवहार नहीं करेंगे ।
- सभी अपने पति का सम्मान करेंगे तथा कभी भी दूसरों से उनकी बुराई नहीं करेंगी ।
हरियाली तीज व्रत कथा (Hariyali Teej Vrat Katha)
मान्यताओं के अनुसार इस व्रत भगवान शिव ने मां पार्वती जी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के मकसद से कही थी । भगवान शिव मां पार्वती को कहते हैं । हे गौरी! तुमने अपनी बाल्यावस्था में पर्वतराज हिमालय पर गंगा के तट पर अधोमुखी होकर घोर तपस्या किया था । इस अवधि में तुमने अन्न और जल दोनों का ही त्याग कर केवल हवा का ही सेवन किया था । उस पूरे अवधि को तुमने सिर्फ सूखे पत्ते चबाकर कटा था ।
माघ महीने की शीतलता में तुमने जल में प्रवेश कर तप किया था । वैशाख के महीने में जला देने वाली गर्मी में पंचाग्नि से शरीर को तपाया था और श्रावण की मूसलाधार बारिश में खुले आकाश के नीचे बिना अन्य जल के व्यतीत किया था । तुम्हारी इस कष्टदायक तपस्या को देख कर तुम्हारे पिता बहुत ही दुखी हो जाते थे । तभी एक दिन तुम्हारी तपस्या और पिता की नाराजगी को देखकर महर्षि नारद जी तुम्हारे घर को पधारे ।
तुम्हारे पिता द्वारा महर्षि नारद जी के आने का कारण पूछा:- तब नारद जी ने बोले, ‘हे गिरिराज’! मैं भगवान विष्णु के भेजने पर ही यहां आया हूं, आपकी कन्या की घोर तपस्या को देख भगवान विष्णु प्रसन्न होकर उनसे विवाह करना चाहते हैं, इस बारे में आपकी क्या राय है ।
महर्षि नारद की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले-‘श्रीमान’! यदि स्वयं श्री विष्णु जी ने मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है । यह तो हर पिता की कामना होती है कि उसकी पुत्री सुख संपदा से युक्त अपने पति के घर में लक्ष्मी स्वरूप बनी रहे ।
महर्षि नारद जी तुम्हारे पिता की स्वीकृति पागल श्री हरि विष्णु जी के पास गए और उन्होंने विवाह तय होने का समाचार सुनाया । परंतु जब तुम्हें इससे विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हें दुख का ठिकाना ना रहा । तुम्हें दुखी देखकर तुम्हारी एक सखी ने तुम्हारे दुख का कारण पूछने पर तुमने बताया-कि मैंने सच्चे मन से भगवान शिव का वर्णन किया है, किंतु मेरे पिता मेरा विवाह श्री हरि विष्णु जी के साथ तय कर दिया है । मुझे अपने प्राण त्यागने के अलावा कोई और उपाय नहीं दिख रहा है ।
तुम्हारी सखी तुम्हें समझाते हुए कही, इतनी सी बात के लिए प्राण छोड़ने का कारण ही क्या है? संकट के समय धैर्य से काम लेना चाहिए । तुम्हारी सच्ची में कहां सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो भगवान भी असहाय हैं । मैं तुम्हें धनकोर बन मेरी चलती हूं जो साधना स्थल भी है और वहां तुम्हारे पिता तुम्हें कुछ भी नहीं पाएंगे । मुझे पूर्ण रुप से विश्वास है की ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे ।
तुमने अपनी सखी की बात मान कर घनी बन मे चली गई । तुम्हारे पिता तुम्हें घर में ना देख कर बड़ी चिंतित और दुखी हुए । वह सोचने लगे कि मैंने श्री हरि विष्णु जी से अपनी पुत्री का विवाह तय कर दिया है यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और घर पर पुत्री नहीं मिली तो बहुत अपमान होगा । ऐसा विचार कर पर्वतराज ने चारों ओर तुम्हारी खोज करने लगे ।
उधर तुम्हारे पिता तुम्हारी खोज कर रहे थे, और उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन होने लगी । भाद्रपद तृतीय शुक्ल को हस्त नक्षत्र था । उस दिन तुमने रेत की शीवलिंग का निर्माण कर रात भर मेरी स्थिति में गीत गाती रही और जागरण किया । तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हें दर्शन देते हुए वर मांगने को कहा! तब अपनी तपस्या के फलस्वरुप तुमने मुझे अपने समक्ष पाकर कहा-‘मैं आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूं ।
यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहां आए हैं, तो मुझे अपने अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए । तब मैंने ‘तथास्तु’ कहकर कैलाश पर्वत को लौट गया, प्रातः होते हैं तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सखी सहित व्रत को संपूर्ण किया ।
उसी समय गिरिराज अपने बंधुओं के साथ तुम्हें खोजते हुए वहां आ पहुंचे । तुम्हारे पिता तुम्हारी यह दशा देख अत्यंत दुखी हुए और तुम्हारी इस कठोर तपस्या का कारण पूछने लगे । तब तुमने उनसे कहा- ‘पिताजी मैंने अपने जीवन का अधिकांश वक्त कठोर तपस्या में बिताया है मेरी इस तपस्या के केवल उद्देश्य महादेव को अपने पति रूप में प्राप्त करना है ।
आज मैंने अपनी तरफ से को पूर्ण कर चुकी हूं, चुकी आप मेरा विवाह श्री हरि विष्णु जी से करने का निश्चय कर चुके थे, इसलिए मैं अपने आराध्य की तलाश में घर से निकल गई थी । अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह महादेव से करा दें । पर्वतराज अपनी पुत्री के मोह में आकर तुम्हारी इच्छा को स्वीकार कर ली और वे तुम्हें घर वापस ले आए । कुछ ही समय बाद उन्होंने पूरे विधि विधान के साथ हमारा विवाह किया ।
भगवान शिव जी ने मां पार्वती से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा भाव से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा ।
The festival of Teej is celebrated in three forms- Hariyali Teej, Kajari Teej and Hartalika Teej.
तीज का त्योहार 2023 में कब हैं ! When is the Teej festival in 2023. | दिन Day | तारीख Date |
हरियाली तीज Hariyali Teej | शनिवार Saturday | 19 अगस्त 2023 19th August 2023 |
कजरी तीज Kajari Teej | शनिवार Saturday | 02 सितंबर 2023 02 September 2023 |
हरतालिका तीज Haratalika Teej | सोमवार Monday | 18 सितंबर 2023 18th September 2023 |
FAQ
हरियाली तीज और हरितालिका तीज में क्या अंतर है?
हरियाली तीज और हरितालिका तीज दोनो अलग अलग महीने में मनाया जाता है । हरियाली तीज श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है जबकि हरितालिका तीज भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है ।
हरियाली तीज पर किसकी पूजा की जाती है?
हरियाली तीज पर मां पार्वती और भगवान शिव के पूजा की जाती है ।

धन्यवाद
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