Durga Saptashati Siddha Kunjika Stotram in Hindi Lyrics | श्री दुर्गा सप्तशती – सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्

“Siddha Kunjika Stotram” मां दुर्गा की पूजा और भक्ति में महत्वपूर्ण है और इसे अक्सर “दुर्गा सप्तशती” के पाठ के प्रारंभ में पढ़ा जाता है । इस स्तोत्र का महत्व यह है कि यह भक्तों को मां दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तैयार करता है और उन्हें उनकी पूजा को और भी प्रभावी बनाता है ।

“सिद्धकुञ्जिका स्तोत्र” का अर्थ होता है “सिद्धकुञ्जिका मंत्र के स्तोत्र” का, Siddha Kunjika Stotram में मां दुर्गा की महिमा और उनकी शक्ति का वर्णन किया गया है, और यह भक्तों को उनके प्रति भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक्षा करने में मदद करता है ।

इस स्तोत्र का महत्व यह है कि यह भक्तों को उनके दैनिक जीवन में मां दुर्गा की कृपा और समर्थन प्राप्त करने के लिए एक उपाय प्रदान करता है । इसके माध्यम से, भक्त अपने जीवन में शांति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रयास कर सकते हैं और मां दुर्गा की कृपा का आनंद उठा सकते हैं ।

यदि आप “सिद्धकुञ्जिका स्तोत्र” का पाठ करने का विचार कर रहे हैं, तो आप इसे अपने दैनिक पूजा-अराधना का हिस्सा बना सकते हैं और मां दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इसका उपयोग कर सकते हैं । यह स्तोत्र भक्ति, आध्यात्मिक उन्नति, और आशीर्वाद की दिशा में मार्गदर्शन करता है ।

माँ दुर्गा की स्तुति का सर्वश्रेष्ठ साधन Durga Saptashati Siddha Kunjika Stotram है, यहाँ पर दुर्गा सप्तशती पाठ का सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् अध्याय संस्कृत और हिन्दी भाषा में प्रकाशित किया गया है । आप अपनी इच्छानुसार मनपसंद भाषा में श्री दुर्गा सप्तशती पाठ पढ़ सकते हैं, माँ भगवती की आराधना कर सकते हैं ।

॥ सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् ॥

॥ शिव उवाच ॥

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत ॥ 1 ॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥ 2 ॥

कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥ 3 ॥

गोपनीयं प्रयत्‍‌नेनस्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यंस्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत्कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥ 4 ॥

॥ अथ मन्त्रः ॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लींचामुण्डायै विच्चे ॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालयज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ।
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वलहं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥

॥ इति मन्त्रः ॥

नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि ।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥ 1 ॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि ।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे ॥ 2 ॥

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ॥ 3 ॥

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ॥ 4 ॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्‍‌नी वां वीं वूं वागधीश्‍वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥ 5 ॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥ 6 ॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं ।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 7 ॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे ॥ 8 ॥

इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रंमन्त्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यंगोपितं रक्ष पार्वति ॥
यस्तु कुञ्जिकाया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायतेसिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥

॥ इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

॥ ॐ तत्सत् ॥


Durga Saptashati Siddha Kunjika Stotram

श्री दुर्गा सप्तशती – सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्

शिवजी बोले- 

देवी! सुनो । मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र का उपदेश करूँगा, जिस मन्त्र के प्रभाव से देवी का जप (पाठ) सफल होता है ॥ १ ॥ कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी (आवश्यक) नहीं है ॥ २ ॥ केवल कुंजिका के पाठ से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है । (यह कुंजिका) अत्यन्त गुप्त और देवों के लिये भी दुर्लभ है ॥ ३ ॥ 

हे पार्वती! इसे स्वयोनि की भाँति प्रयत्न पूर्वक गुप्त रखना चाहिये । यह उत्तम कुंजिका स्तोत्र केवल पाठ के द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि (आभिचारिक) उद्देश्यों को सिद्ध करता है ॥ ४ ॥ 

मन्त्र — ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥ (मन्त्र में आये बीजों का अर्थ जानना न सम्भव है, न आवश्यक और न वांछनीय । केवल जप पर्याप्त है ।) 

हे रुद्रस्वरूपिणी! तुम्हें नमस्कार । हे मधु दैत्य को मारने वाली । तुम्हें नमस्कार है । कैटभविनाशिनी को नमस्कार । महिषासुर को मारने वाली देवी । तुम्हें नमस्कार है ॥ १ ॥ शुम्भ का हनन करने वाली और निशुम्भ को मारने वाली । तुम्हें नमस्कार है । हे महादेवि! मेरे जपको जाग्रत और सिद्ध करो ॥ २ ॥ ‘ऐकार’ के रूप में सृष्टि स्वरूपिणी, ‘ह्रीं’ के रूप में सृष्टि पालन करने वाली । ‘क्लीं’ के रूप में काम रूपिणी (तथा निखिल ब्रह्माण्ड) की बीज रूपिणी देवी । तुम्हें नमस्कार है ॥ ३ ॥

चामुण्डा के रूप में चण्डविनाशिनी और ‘यैकार’ के रूप में तुम वर देने वाली हो । ‘विच्चे’ रूप में तुम नित्य ही अभय देती हो । (इस प्रकार ‘ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे) तुम इस मन्त्र का स्वरूप हो ॥ ४ ॥ ‘यां थीं थे’ के रूप में धूर्जटी (शिव) की तुम पत्नी हो । ‘वां वीं यूं’ के रूप में तुम वाणी की अधीश्वरी हो । ‘क्रां क्रीं क्रू’ के रूप में कालिका देवी, ‘शांश शृं’ के रूप में मेरा कल्याण करो ॥ ५ ॥

‘ हुं हुं हुंकार’ स्वरूपिणी, ‘जं जं जं’ जम्भनादिनी, ‘भ्रां भ्रीं भ्रं’ के रूप में हे कल्याणकारिणी भैरवी भवानी! तुम्हें बार-बार प्रणाम ॥ ६ ॥ ‘अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दं ऐं वीं हं क्षं विजाग्रं थिजाग्रं’ इन सब को तोड़ो और दीप्त करो, करो स्वाहा ॥ ७ ॥ ‘पां पीं पूं’ के रूपमें तुम पार्वती पूर्णा हो । ‘खां खीं खूं’ के रूप में तुम खेचरी (आकाशचारिणी) अथवा खेचरी मुद्रा हो । ‘सां सी सूं’ स्वरूपिणी सप्तशती देवी के मन्त्र को मेरे लिये सिद्ध करो ॥ ८ ॥

यह कुंजिकास्तोत्र मन्त्र को जगाने के लिये है । इसे भक्ति हीन पुरुष को नहीं देना चाहिये । हे पार्वती! इसे गुप्त रखो । हे देवी! जो बिना कुंजिका के सप्तशती का पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं मिलती जिस प्रकार वन में रोना निरर्थक होता है । 

इस प्रकार श्रीरुद्रयामल के गौरी तन्त्र में शिव-पार्वती संवाद में सिद्धकुंजि का स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ । 


परानाम

धन्यवाद !


Follow Me On:-
instagram
facebook

इन्हें भी पढ़े !

Leave a Comment