दुर्गा सप्तशती का पाठ नवरात्रि के दिनों में सभी भक्तजन माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए करते हैं । वही इस पाठ को करते समय पूरे Durga Saptashati Path Vidhi का ध्यान रखना होता है ।
नवरात्रि के 9 दिनों में Durga Saptashati Path करके भक्त माँ भगवती को प्रसन्न करते हैं । जिससे माँ उनके पापों का नाश कर उनकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करती है । परंतु कभी कभी भूल वश भक्त जन श्री Durga Saptashati Path में गलतियाँ कर देते हैं इसलिए उनकी आराधना पूर्ण नही होती है। इसलिए हम यहां आपको Durga Saptashati Path की सही विधि को बताएंगे । जिससे आप सभी माँ भगवती की उपासना और आराधना पूरे विधि विधान के साथ कर सके, और माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्रप्त कर सके ।
Durga Saptashati Path Vidhi | श्री दुर्गा सप्तशती पाठ विधि
नवरात्री के समय माता को प्रसन्न करने के लिए साधक पूरेभक्ति भाव के साथ पूजन करते हैं जिनसे माता प्रसन्न हो कर उन्हें अद्भुत शक्तियां प्रदान करती हैं । Durga Saptashati Path माॅ को बहुत प्रिय हैं । माना जाता है कि यदि नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ विधि विधान से किया जाए तो माता बहुत प्रसन्न होती हैं । दुर्गा सप्तशती में सात सौ प्रयोग है, जो इस प्रकार से है:-
- मारण के नब्बे,
- मोहन के नब्बे,
- उच्चाटन के दोसौ,
- स्तंभन के दोसौ,
- विद्वेषण के साठ और
- वशीकरण के साठ । इसी कारण इसे सप्तशती कहा जाता है ।
दुर्गा सप्तशती पाठ विधि- (Durga Saptashati Path Vidhi)
- सबसे पहले साधक को स्नान कर शुद्ध हो जाना चाहिए ।
- उसके बाद आसन शुद्धि कर के आसन पर बैठ जाए ।
- माथे पर चंदन अथवा रोली लगा लें ।
- शिखा बाँध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर चार बार आचमन करें ।
- इसके बाद प्राणायाम कर के गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें, फिर पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ इत्यादि मन्त्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर दे /वी को अर्पित करें तथा मंत्रों से संकल्प लें ।
- देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार विधि से पुस्तक की पूजा करें ।
- फिर मूल नवार्ण मन्त्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें । इसके बाद शापोद्धार करना चाहिए ।
- इसके बाद उत्कीलन मन्त्र का जाप किया जाता है । इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है ।
- इसके जप के पश्चात् मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए ।
- तत्पश्चात पूरे ध्यान के साथ माता दुर्गा का स्मरण करते हुए दुर्गा सप्तशती पाठ करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएँ पूरी हो जाती हैं ।
दुर्गा सप्तशती का अर्थ- (Durga Saptashati Ka Arth)
दुर्गा अर्थात दुर्ग शब्द से दुर्गा बना है, दुर्ग – किला, स्तंभ, शप्तशती अर्थात सात सौ– जिस ग्रन्थ को सात सौ श्लोकों में समाहित किया गया हो उसका नाम सप्तशती है ।
महत्व – जो कोई भी इस ग्रन्थ का पाठ करता है “माँ जगदम्बा” की उसके ऊपर असीम कृपा रहती है ।
कथा – “सुरथ और समाधी” नाम के राजा एवं वैश्य का मिलन किसी वन में होता है ,और वे दोनों अपने मन में विचार करते हैं, कि हमलोग राजा एवं सभी संपदाओं से युक्त होते हुए भी अपनों से विरक्त हैं ,किन्तु यहाँ वन में, ऋषि के आश्रम में, सभी जीव प्रसन्नता पूर्वक एक साथ रहते हैं ।
यह आश्चर्य लगता है ,कि क्या कारण है ,जो गाय के साथ सिंह भी निवास करता है, और कोई भय नहीं है, जब हमें अपनों ने परित्याग कर दिए, तो फिर अपनों की याद क्यों आती है । वहाँ ऋषि के द्वारा यह ज्ञात होता है ,कि यह उसी “महामाया” की कृपा है, सो पुनः ये दोनों ”दुर्गा” की आराधना करते हैं ,और “सप्तशती” के बारहवे अध्याय में आशीर्वाद प्राप्त करते हैं ,और अपने परिवार से युक्त भी हो जाते हैं ।
दुर्गा सप्तशती पाठ के अलग-अलग कामनापूर्ति- (Durga Saptashati Path ke Alag Alag Kamanapurti)
- लक्ष्मी, ऐश्वर्य, धन संबंधी प्रयोगों के लिए पीले रंग के आसन का प्रयोग करें ।
- वशीकरण, उच्चाटन आदि प्रयोगों के लिए काले रंग के आसन का प्रयोग करें ।
- बल, शक्ति आदि प्रयोगों के लिए लाल रंग का आसन प्रयोग करें ।
- सात्विक साधनाओं, प्रयोगों के लिए कुश के बने आसन का प्रयोग करें ।
वस्त्र – लक्ष्मी संबंधी प्रयोगों में आप पीले वस्त्रों का ही प्रयोग करें । यदि पीले वस्त्र न हो तो मात्र धोती पहन लें एवं ऊपर शाल लपेट लें । आप चाहे तो धोती को केशर के पानी में भिगोंकर पीला भी रंग सकते हैं ।
हवन करने से- (Havan Karne Se)
- जायफल से कीर्ति और किशमिश से कार्य की सिद्धि होती है ।
- आंवले से सुख और केले से आभूषण की प्राप्ति होती है । इस प्रकार फलों से अर्ध्य देकर यथाविधि हवन करें ।
- खांड, घी, गेंहू, शहद, जौ, तिल, बिल्वपत्र, नारियल, किशमिश और कदंब से हवन करें ।
- गेंहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है ।
- खीर से परिवार, वृद्धि, चम्पा के पुष्पों से धन और सुख की प्राप्ति होती है ।
- आवंले से कीर्ति और केले से पुत्र प्राप्ति होती है ।
- कमल से राज सम्मान और किशमिश से सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है ।
- खांड, घी, नारियल, शहद, जौं और तिल इनसे तथा फलों से होम करने से मनवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है ।
इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है । उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं । नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है ।
दुर्गा सप्तशती पाठ के अध्याय से होने वाली कामनापूर्ति- (Durga Saptashati Path ke se Hone Wali Kamanapurti)
- पहला अध्याय का पाठ – हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए ।
- दूसरा अध्याय का पाठ – मुकदमा झगडा आदि में विजय पाने के लिए ।
- तीसरा अध्याय का पाठ – शत्रु से छुटकारा पाने के लिये ।
- चौथा अध्याय का पाठ – भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिये ।
- पाँचवाँ अध्याय का पाठ – भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिए ।
- छठा अध्याय का पाठ – डर, शक, बाधा ह टाने के लिये ।
- सातवाँ अध्याय का पाठ – हर कामना पूर्ण करने के लिये ।
- आठवाँ अध्याय का पाठ – मिलाप व वशीकरण के लिये ।
- नवाँ अध्याय का पाठ – गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये ।
- दसवाँ अध्याय का पाठ – गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये ।
- ग्यारहवाँ अध्याय का पाठ – व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिये ।
- बारहवाँ अध्याय का पाठ – मान सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिये ।
- तेरहवाँ अध्याय का पाठ – भक्ति प्राप्ति के लिये ।
वैदिक आहुति की सामग्री—
- पहला अध्याय में – एक पान पर देशी घी में भिगोकर 1 कमलगट्टा, 1 सुपारी, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गुग्गुल, शहद यह सब चीजें सुरवा में रखकर खडे होकर आहुति देना चाहिए ।
- दूसरा अध्याय में – पहला अध्याय की सामग्री अनुसार, गुग्गुल विशेष रूप से आहुति दे ।
- तीसरा अध्याय में – पहला अध्याय की सामग्री अनुसार, शहद ।
- चौथा अध्याय में – पहला अध्याय की सामग्री अनुसार, मिश्री व खीर विशेष, चौथे अध्याय के मंत्र संख्या 24 से 27 तक इन 4 मंत्रों की आहुति नहीं करना चाहिए । ऐसा करने से देह नाश होता है । इस कारण इन चार मंत्रों के स्थान पर ओंम नमः चण्डिकायै स्वाहा’ बोलकर आहुति देना तथा मंत्रों का केवल पाठ करना चाहिए इनका पाठ करने से सब प्रकार का भय नष्ट हो जाता है ।
- पाँचवाँ अध्याय में – पहला अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 9 मंत्र कपूर, पुष्प, व ऋतुफल ही दे ।
- छठा अध्याय में – पहला अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 23 भोजपत्र ।
- सातवाँ अध्याय में – पहला अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 10 दो जायफल श्लोक संख्या 19 में सफेद चन्दन श्लोक संख्या 27 में इन्द्र जौं ।
- आठवाँ अध्याय में – पहला अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 54 एवं 62 लाल चंदन ।
- नवाँ अध्याय में – पहला अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या श्लोक संख्या 37 में 1 बेलफल 40 में गन्ना ।
- दसवाँ अध्याय में – पहला अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 5 में समुन्द्र झाग 31 में कत्था ।
- ग्यारहवाँ अध्याय में – पहला अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 2 से 23 तक पुष्प व खीर श्लोक संख्या 29 में गिलोय 31 में भोज पत्र 39 में पीली सरसों 42 में माखन मिश्री 44 में अनार व अनार का फूल श्लोक संख्या 49 में पालक श्लोक संख्या 54 एवं 55 मे फूल चावल और सामग्री ।
- बारहवाँ अध्याय में – पहला अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 10 मे नीबू काटकर रोली लगाकर और पेठा श्लोक संख्या 13 में काली मिर्च श्लोक संख्या 16 में बाल-खाल श्लोक संख्या 18 में कुशा श्लोक संख्या 19 में जायफल और कमल गट्टा श्लोक संख्या 20 में ऋीतु फल, फूल, चावल और चन्दन श्लोक संख्या 21 पर हलवा और पुरी श्लोक संख्या 40 पर कमल गट्टा, मखाने और बादाम श्लोक संख्या 41 पर इत्र, फूल और चावल ।
- तेरहवाँ अध्याय में – पहला अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 27 से 29 तक फल व फूल ।
भक्त जानकारी के अभाव में अपने मन मर्जी के अनुसार आरती उतारता रहता है । जबकि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारने का विधान है- चार बार चरणों पर से, दो बार नाभिे पर से, एक बार मुख पर से, सात बार पूरे शरीर पर से । इस प्रकार चौदह बार आरती की जाती है । जहां तक हो सके विषम संख्या अर्थात 1, 5, 7 बत्तियॉं बनाकर ही आरती की जानी चाहिये ।
दुर्गा सप्तशती पाठ विधि:- (Durga Saptashati Path Vidhi)
साधक स्नान करके पवित्र हो आसन-शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके शुद्ध आसन पर बैठे; साथ में शुद्ध जल, पूजन-सामग्री और श्री दुर्गा सप्तशती की पुस्तक रखे । पुस्तक को अपने सामने काष्ठ आदि के शुद्ध आसन पर विराजमान कर दे । ललाट पर भस्म, चन्दन अथवा रोली लगा ले, शिखा बाँध ले; फिर पूर्वाभिमुख होकर तत्त्व-शुद्धि के लिये चार बार आचमन करे । उस समय अग्रांकित चार मन्त्रों को क्रमशः पढ़े-
ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॥
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॥
तत्पश्चात् प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें; फिर-
ॐ पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसवः ।
उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः ।
तस्यते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम् ॥
इत्यादि मन्त्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर निम्नांकित रूप से संकल्प करें-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ।
ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकायने महामाङ्गल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरान्वितायाम् अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवंगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ सकलशास्त्रश्रुतिस्मृति-पुराणोक्तफलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुकनाम अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो ग्रहकृतराजकृतसर्वविधपीडा- निवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुःपुष्टिधनधान्यसमृद्ध्यर्थं श्रीनवदुर्गाप्रसादेन सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्ट- फलावाप्तिधर्मार्थकाममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्सरं कवचार्गलाकीलकपाठवेदतन्त्रोक्त-रात्रिसूक्तपादेव्यथर्वशीर्षपाठन्यास-विधिसहितनवार्णजपसप्तशतीन्यासध्यानसहित-चरित्रसम्बन्धिविनियोगन्यासध्यानपूर्वकं च “मार्कण्डेय उवाच ॥ सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः ।” इत्याद्यारभ्य “सावर्णिर्भविता मनुः” इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाठं तदन्ते न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं वेदतन्त्रोक्तदेवीसूक्तपाठं रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च करिष्ये ।
इस प्रकार प्रतिज्ञा कर के देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार की विधि से पुस्तक की पूजा करें, योनि मुद्रा का प्रदर्शन कर के भगवती को प्रणाम करें, फिर मूल नवार्ण मन्त्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना कर के उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें । इसके बाद शापोद्धार करना चाहिये । इसके अनेक प्रकार हैं ।
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा ।
इस मन्त्र का आदि और अन्त में सात बार जप करे । यह शापोद्धार मन्त्र कहलाता है । इसके अनन्तर उत्कीलन मन्त्र का जप किया जाता है । इसका जप आदि और अन्तमें इक्कीस-इक्कीस बार होता है । यह मन्त्र इस प्रकार है-
ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा ।
इसके जप के पश्चात् आदि और अन्त में सात-सात बार मृतसंजीवनी विद्या का जप करना चाहिये, जो इस प्रकार है-
ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा ।
मारीचकल्प के अनुसार सप्तशती शापविमोचन का मन्त्र यह है-
ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं ।
इस मन्त्र का आरम्भ में ही एक सौ आठ बार जाप करना चाहिये, पाठ के अन्त में नहीं । अथवा रुद्रयामल महातन्त्र के अन्तर्गत दुर्गाकल्प में कहे हुए चण्डिका-शाप-विमोचन मन्त्रों का आरम्भ में ही पाठ करना चाहिये । वे मन्त्र इस प्रकार हैं-
ॐ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापविमोचनमन्त्रस्य वसिष्ठ-नारदसंवादसामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषयः सर्वैश्वर्यकारिणी श्रीदुर्गा देवता चरित्रत्रयं बीजं ह्री शक्तिः त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तौ मम संकल्पितकार्यसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।
ॐ (ह्रीं) रीं रेतःस्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १ ॥
ॐ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुरसैन्यनाशिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ २ ॥
ॐ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ३ ॥
ॐ क्षुं क्षुधास्वरूपिण्यै देववन्दितायै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ४ ॥
ॐ छां छायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ५ ॥
ॐ शं शक्तिस्वरूपिण्यै धूम्रलोचनघातिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ६ ॥
ॐ तृं तृषास्वरूपिण्यै चण्डमुण्डवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ७ ॥
ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ८ ॥
ॐ जां जातिस्वरूपिण्यै निशुम्भवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ९ ॥
ॐ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १० ॥
ॐ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ११ ॥
ॐ श्रं श्रद्धास्वरूपिण्यै सकलफलदात्र्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १२ ॥
ॐ कां कान्तिस्वरूपिण्यै राजवरप्रदायै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १३ ॥
ॐ मां मातृस्वरूपिण्यै अनर्गलमहिमसहितायै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १४ ॥
ॐ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्यकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १५ ॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिवायै अभेद्यकवचस्वरूपिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १६ ॥
ॐ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फट् स्वाहायै ऋग्वेदस्वरूपिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १७ ॥
ॐ ऐं ह्री क्लीं महाकालीमहालक्ष्मी-
महासरस्वतीस्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादेव्यै नमः ॥ १८ ॥
इत्येवं हि महामन्त्रान् पठित्वा परमेश्वर ।
चण्डीपाठं दिवा रात्रौ कुर्यादेव न संशयः ॥ १९ ॥
एवं मन्त्रं न जानाति चण्डीपाठं करोति यः ।
आत्मानं चैव दातारं क्षीणं कुर्यान्न संशयः ॥ २० ॥
इस प्रकार शापोद्धार करने के अनन्तर अन्तर्मातृका-बहिर्मातृका आदि न्यास करे, फिर श्रीदेवी का ध्यान करके रहस्य में बताये अनुसार नौ कोष्ठोंवाले यन्त्र में महालक्ष्मी आदि का पूजन करे, इसके बाद छः अंगोंसहित दुर्गासप्तशती का पाठ आरम्भ किया जाता है । कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य- ये ही सप्तशती के छः अंग माने गये हैं । इनके क्रम में भी मतभेद हैं ।
चिदम्बरसंहिता में पहले अर्गला फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है । किंतु योगरत्नावली में पाठ का क्रम इससे भिन्न है । उसमें कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक संज्ञा दी गई है । जिस प्रकार सब मन्त्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति का तथा अन्त में कीलक का उच्चारण होता है, उसी प्रकार यहाँ भी पहले कवचरूप बीज का, फिर अर्गलारूपा शक्ति का तथा अन्त में कीलक रूप कीलक का क्रमशः पाठ होना चाहिये । यहाँ इसी क्रम का अनुसरण किया गया है ।
॥ देवी माहात्म्यम् ॥
श्रीचण्डिकाध्यानम्ॐ
बन्धूककुसुमाभासां पञ्चमुण्डाधिवासिनीम् ।
स्फुरच्चन्द्रकलारत्नमुकुटां मुण्डमालिनीम् ॥
त्रिनेत्रां रक्तवसनां पीनोन्नतघटस्तनीम् ।
पुस्तकं चाक्षमालां च वरं चाभयकं क्रमात् ॥
दधतीं संस्मरेन्नित्यमुत्तराम्नायमानिताम् ।
अथवा
या चण्डी मधुकैटभादिदैत्यदलनी या माहिषोन्मूलिनी या धूम्रेक्षणचण्डमुण्डमथनी या रक्तबीजाशनी ।
शक्तिः शुम्भनिशुम्भदैत्यदलनी या सिद्धिदात्री परा सा देवी नवकोटिमूर्तिसहिता मां पातु विश्वेश्वरी ॥

धन्यवाद !
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