“Durga Saptashati Kshama Prarthana” महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक प्रार्थना है जो भक्तों के द्वारा पढ़ी जाती है जब वे मां दुर्गा की पूजा और भक्ति करते हैं । इस प्रार्थना का मुख्य महत्व यह है कि वह भक्तों की क्षमा और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए मां दुर्गा से प्रार्थना करते है ।
दुर्गा सप्तशती क्षमा प्रार्थना आमतौर पर दुर्गा सप्तशती पाठ के अंत में पढ़ी जाती है और इसमें भक्त अपनी अदृष्ट को सुधारने और अपनी गुनाहों के लिए क्षमा प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं । इस प्रार्थना में भक्त अपने कार्यों के लिए क्षमा मांगते हैं और मां दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं ताकि वे धार्मिक और सफल जीवन जी सकें ।
इस प्रार्थना का महत्व यह है कि यह भक्तों को योग्यता देती है कि वे अपने गुनाहों के लिए पश्चाताप करें और देवी की कृपा का प्राप्त करें । यह भक्तों को धार्मिकता, शक्ति, और सफलता की दिशा में मार्गदर्शन करती है और उन्हें अपने जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रोत्साहित करती है ।
माँ दुर्गा की स्तुति का सर्वश्रेष्ठ साधन Durga Saptashati Kshama Prarthana है, यहाँ पर दुर्गा सप्तशती पाठ का क्षमा-प्रार्थना अध्याय संस्कृत और हिन्दी भाषा में प्रकाशित किया गया है । आप अपनी इच्छानुसार मनपसंद भाषा में श्री दुर्गा सप्तशती पाठ पढ़ सकते हैं, माँ भगवती की आराधना कर सकते हैं ।
॥ क्षमा-प्रार्थना ॥
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥ 1 ॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ॥ 2 ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ॥ 3 ॥
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् ।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः ॥ 4 ॥
सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके ।
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरू ॥ 5 ॥
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम् ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ॥ 6 ॥
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे ।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ॥ 7 ॥
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि ॥ 8 ॥
॥ श्रीदुर्गार्पणमस्तु ॥
Durga Saptashati Kshama Prarthana
श्री दुर्गा सप्तशती – क्षमा-प्रार्थना
परमेश्वरि ! मेरे द्वारा रात-दिन सहस्रों अपराध होते रहते हैं । ‘यह मेरा दास है ‘ – यों समझ कर मेरे उन अपराधों को तुम कृपा पूर्वक क्षमा करो ॥ १ ॥ परमेश्वरि ! मैं आवाहन नहीं जानता, विसर्जन करना नहीं जानता तथा पूजा करने का ढंग भी नहीं जानता । क्षमा करो ॥ २ ॥ देवि ! सुरेश्वरि ! मैंने जो मन्त्रहीन, क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है, वह सब आपकी कृपा से पूर्ण हो ॥ ३ ॥
सैकड़ों अपराध कर के भी जो तुम्हारी शरण में जा ‘जगदम्ब कहकर पुकारता है, उसे वह गति प्राप्त होती है, जो ब्रह्मादि देवताओं के लिये भी सुलभ नहीं है ॥ ४ ॥ जगदम्बिके ! मैं अपराधी हूँ, किंतु तुम्हारी शरण में आया हूँ । इस समय दया का पात्र हूँ । तुम जैसा चाहो, वैसा करो ॥ ५ ॥
देवि! परमेश्वरि! अज्ञान से, भूल से अथवा बुद्धि भ्रान्त होने के कारण मैंने जो न्यूनता या अधिकता कर दी हो, वह सब क्षमा करो और प्रसन्न होओ ॥ ६ ॥ सच्चिदानन्दस्वरूपा परमेश्वरि ! जगन्माता कामेश्वरि ! तुम प्रेमपूर्वक मेरी यह पूजा स्वीकार करो और मुझपर प्रसन्न रहो ॥ ७ ॥
देवि ! सुरेश्वरि ! तुम गोपनीय से भी गोपनीय वस्तु की रक्षा करने वाली हो । मेरे निवेदन किये हुए इस जप को ग्रहण करो । तुम्हारी कृपा से मुझे सिद्धि प्राप्त हो ॥ ८ ॥

धन्यवाद !
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