Durga Keelak Stotram in Hindi Lyrics | श्री दुर्गा सप्तशती- अथ कीलकम् स्तोत्र

मां दुर्गा कीलकम् स्तोत्र (Durga Keelak Stotram) एक प्राचीन हिन्दू स्तोत्र है जो देवी दुर्गा की पूजा के समय पाठ किया जाता है । यह स्तोत्र मां दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने के उद्देश्य से पढ़ा जाता है । Durga Keelak Stotram की रचना तंत्र मंत्र शास्त्र के अनुसार की जाती है और इसमें विभिन्न मंत्रों का उपयोग किया गया है जो मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की शक्तियों का संबोधन करते हैं ।

Durga Keelak Stotram द्वादश श्लोकों में होता है, जिनमें प्रत्येक श्लोक एक विशिष्ट रूप या शक्ति को समर्पित होता है और उस रूप के मंत्रों का प्रयोग किया जाता है । Durga Keelak Stotram उपासकों को भक्ति, शक्ति और समर्पण की भावना के साथ मां दुर्गा की आराधना करने का अवसर प्रदान करता है ।

ऋषियों-मुनियों के द्वारा देवी कवच, अर्गला स्तोत्र, कीलक और तीनों रहस्य को ही दुर्गा सप्तशती के छः अङ्ग को माने गये हैं । इनके पाठ करने के क्रम में भी मतभेद है । अनेकों तन्त्रों के अनुसार सप्तशती के पाठ का क्रम अनेकों प्रकार से उपलब्ध होता है । ऐसे में जो भी बड़े बुजुर्ग कहते हैं या अपने क्षेत्र में जीस क्रम से पहले प्रचलित हो, उसी का अनुसरण करना अच्छा होता है ।

चिदम्बरसंहिता के अनुसार पहले अर्गला फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है । किंतु योगरत्नावली के अनुसार पाठ का क्रम कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक संज्ञा दी गयी है । जिस प्रकार सब मन्त्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति का तथा अन्त में कीलक का उच्चारण होता है, उसी प्रकार हमें पहले कवचरुप बीज का, फिर अर्गलारूपा शक्ति का तथा अन्त में कीलकरूप कीलकम् का क्रमशः पाठ करना चाहिये ।

॥ अथ कीलकम् स्तोत्र

ॐ अस्य श्रीकीलकमन्त्रस्य शिव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीमहासरस्वती देवता, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ॥

॥ ॐ नमश्‍चण्डिकायै ॥

॥ मार्कण्डेय उवाच ॥

ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे ।
श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे ॥ १ ॥

सर्वमेतद्विजानीयान्मन्त्राणामभिकीलकम् ।
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सततं जाप्यतत्परः ॥ २ ॥

सिद्ध्यन्त्युच्चाटनादीनि वस्तूनि सकलान्यपि ।
एतेन स्तुवतां देवी स्तोत्रमात्रेण सिद्ध्यति ॥ ३ ॥

न मन्त्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते ।
विना जाप्येन सिद्ध्येत सर्वमुच्चाटनादिकम् ॥ ४ ॥

समग्राण्यपि सिद्ध्यन्ति लोकशङ्कामिमां हरः ।
कृत्वा निमन्त्रयामास सर्वमेवमिदं शुभम् ॥ ५ ॥

स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः ।
समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावन्नियन्त्रणाम् ॥ ६ ॥

सोऽपि क्षेममवाप्नोति सर्वमेवं न संशयः ।
कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः ॥ ७ ॥

ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति ।
इत्थंरुपेण कीलेन महादेवेन कीलितम् ॥ ८ ॥

यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम् ।
स सिद्धः स गणः सोऽपि गन्धर्वो जायते नरः ॥ ९ ॥

न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते ।
नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात् ॥ १० ॥

ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति ।
ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः ॥ ११ ॥

सौभाग्यादि च यत्किञ्चिद् दृश्यते ललनाजने ।
तत्सर्वं तत्प्रसादेन तेन जाप्यमिदं शुभम् ॥ १२ ॥

शनैस्तु जप्यमानेऽस्मिन् स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः ।
भवत्येव समग्रापि ततः प्रारभ्यमेव तत् ॥ १३ ॥

ऐश्‍वर्यं यत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यसम्पदः ।
शत्रुहानिःपरो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः ॥ १४ ॥

॥ इति देव्याः कीलकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥


Durga Keelak Stotram In Hindi | श्री दुर्गा सप्तशती- अथ कीलकम् स्तोत्र हिन्दी में।

मार्कण्डेय जी कहते हैं – विशुद्ध ज्ञान ही जिनका शरीर है, तीनों वेद ही जिनके तीन दिव्य नेत्र हैं, जो कल्याण प्राप्ति के हेतु हैं तथा अपने मस्तक पर अर्धचन्द्र का मुकुट धारण करते हैं, उन भगवान शिव को नमस्कार है ॥ 1 ॥

मन्त्रों का जो अभिकीलक है अर्थात मन्त्रों की सिद्धि में विघ्न उपस्थित करने वाले शापरूपी कीलक का जो निवारण करने वाला है, उस सप्तशती स्तोत्र को सम्पूर्ण रूप से जानना चाहिये (और जानकर उसकी उपासना करनी चाहिये), यद्यपि सप्तशती के अतिरिक्त अन्य मन्त्रों के जप में भी जो निरन्तर लगा रहता है, वह भी कल्याण का भागी होता है ॥ 2 ॥

उसके भी उच्चाटन आदि कर्म सिद्ध होते हैं तथा उसे भी समस्त दुर्लभ वस्तुओं की प्राप्ति हो जाती है, तथापि जो अन्य मन्त्रों का जप न करके केवल इस सप्तशती नामक स्तोत्र से ही देवी की स्तुति करते हैं, उन्हें स्तुतिमात्र से ही सच्चिदानन्द स्वरूपिणी देवी सिद्ध हो जाती है ॥ 3 ॥

उन्हें अपने कार्य की सिद्धि के लिये मन्त्र, औषधि तथा अन्य किसी साधन के उपयोग की आवश्यकता नहीं रहती। बिना जप के ही उनके उच्चाटन आदि समस्त आभिचारिक कर्म सिद्ध हो जाते हैं ॥ 4 ॥

इतना ही नहीं, उनकी सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुएँ भी सिद्ध होती हैं। लोगों के मन में यह शंका थी कि ‘जब केवल सप्तशती की उपासना से अथवा सप्तशती को छोड़कर अन्य मन्त्रों की उपासना से भी समान रूप से सब कार्य सिद्ध होते हैं, तब इनमें श्रेष्ठ कौन सा साधन है ?’ लोगों की इस शंका को सामने रखकर भगवान शंकर ने अपने पास आये हुए जिज्ञासुओं को समझाया कि यह सप्तशती नामक सम्पूर्ण स्तोत्र ही सर्वश्रेष्ठ एवं कल्याणमय है ॥ 5 ॥

तदनन्तर भगवती चण्डिका के सप्तशती नामक स्तोत्र को महादेव जी ने गुप्त कर दिया। सप्तशती के पाठ से जो पुण्य प्राप्त होता है, उसकी कभी समाप्ति नहीं होती किंतु अन्य मन्त्रों के जप से उत्पन्न पुण्य की समाप्ति हो जाती है। अतः भगवान शिव ने अन्य मन्त्रों की अपेक्षा जो सप्तशती की ही श्रेष्ठता का निर्णय किया, उसे यथार्थ ही जानना चाहिये ॥ 6 ॥

अन्य मन्त्रों का जप करने वाला पुरुष भी यदि सप्तशती के स्तोत्र और जप का अनुष्ठान कर ले तो वह भी पूर्णरूप से ही कल्याण का भागी होता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। जो साधक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी अथवा अष्टमी को एकाग्रचित्त होकर भगवती की सेवा में अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है और फिर उसे प्रसादरुप से ग्रहण करता है, उसी पर भगवती प्रसन्न होती हैं अन्यथा उनकी प्रसन्नता नहीं प्राप्त होती। इस प्रकार सिद्धि के प्रतिबन्धक रूप कील के द्वारा महादेवजी ने इस स्तोत्र को कीलित कर रखा है ॥ 7 – 8 ॥

जो पूर्वोक्त रीति से निष्कीलन करके इस सप्तशती स्तोत्र का प्रतिदिन स्पष्ट उच्चारणपूर्वक पाठ करता है, वह मनुष्य सिद्ध हो जाता है, वही देवी का पार्षद होता है और वही गन्धर्व भी होता है ॥ 9 ॥

सर्वत्र विचरते रहने पर भी इस संसार में उसे कहीं भी भय नहीं होता। वह अपमृत्यु के वश में नहीं पड़ता तथा देह त्यागने के बाद मोक्ष प्राप्त कर लेता है ॥ 10 ॥

अतः कीलन को जान कर उसका परिहार करके ही सप्तशती का पाठ आरम्भ करे। जो ऐसा नहीं करता, उसका नाश हो जाता है। इसलिये कीलक और निष्कीलन का ज्ञान प्राप्त करने पर ही यह स्तोत्र निर्दोष होता है और विद्वान पुरुष इस निर्दोष स्तोत्र का ही पाठ आरम्भ करते हैं ॥ 11 ॥

स्त्रियों में जो कुछ भी सौभाग्य आदि दृष्टिगोचर होता है, वह सब देवी के प्रसाद का ही फल है। अतः इस कल्याणमय स्तोत्र का सदा जप करना चाहिये ॥ 12 ॥

इस स्तोत्र का मन्दस्वर से पाठ करने पर स्वल्प फल की प्राप्ति होती है और उच्चस्वर से पाठ करने पर पूर्ण फल की सिद्धि होती है। अतः उच्चस्वर से ही इसका पाठ आरम्भ करना चाहिये ॥ 13 ॥

जिनके प्रसाद से ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, सम्पत्ति, शत्रुनाश तथा परम मोक्ष की भी सिद्धि होती है, उस कल्याणमयी जगदम्बा की स्तुति  मनुष्य क्यों नहीं करते ? ॥ 14 ॥


परानाम

धन्यवाद !


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