॥ श्री सूर्य चालीसा ॥
सूर्य चालीसा से भगवान सूर्य अति प्रसन्न होते हैं । वह अपने भक्तों के सभी कष्ट को दूर करते हैं और उन्हें सुख, शांति, समृद्धि, धन्य-धान का जीवन प्रदान करते हैं ।
॥ दोहा ॥
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग ।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग ॥
॥ चौपाई ॥
जय सविता जय जयति दिवाकर ।
सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर ॥
भानु पतंग मरीची भास्कर ।
सविता हंस सुनूर विभाकर ॥
विवस्वान आदित्य विकर्तन ।
मार्तण्ड हरिरूप विरोचन ॥
अम्बरमणि खग रवि कहलाते ।
वेद हिरण्यगर्भ कह गाते ॥
सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि ।
मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि ॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर ।
हांकत हय साता चढ़ि रथ पर ॥
मंडल की महिमा अति न्यारी ।
तेज रूप केरी बलिहारी ॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते ।
देखि पुरन्दर लज्जित होते ॥
मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर ।
सविता सूर्य अर्क खग कलिकर ॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै ।
हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै ॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं ।
मस्तक बारह बार नवावैं ॥
चार पदारथ जन सो पावै ।
दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै ॥
नमस्कार को चमत्कार यह ।
विधि हरिहर को कृपासार यह ॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई ।
अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई ॥
बारह नाम उच्चारन करते ।
सहस जनम के पातक टरते ॥
उपाख्यान जो करते तवजन ।
रिपु सों जमलहते सोतेहि छन ॥
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है ।
प्रबल मोह को फंद कटतु है ॥
अर्क शीश को रक्षा करते ।
रवि ललाट पर नित्य बिहरते ॥
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत ।
कर्ण देस पर दिनकर छाजत ॥
भानु नासिका वासकरहुनित ।
भास्कर करत सदा मुखको हित ॥
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे ।
रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे ॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा ।
तिग्म तेजसः कांधे लोभा ॥
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर ।
त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर ॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन ।
भानुमान उरसर्म सुउदरचन ॥
बसत नाभि आदित्य मनोहर ।
कटिमंह, रहत मन मुदभर ॥
जंघा गोपति सविता बासा ।
गुप्त दिवाकर करत हुलासा ॥
विवस्वान पद की रखवारी ।
बाहर बसते नित तम हारी ॥
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै ।
रक्षा कवच विचित्र विचारे ॥
अस जोजन अपने मन माहीं ।
भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै ।
जोजन याको मन मंह जापै ॥
अंधकार जग का जो हरता ।
नव प्रकाश से आनन्द भरता ॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही ।
कोटि बार मैं प्रनवौं ताही ॥
मंद सदृश सुत जग में जाके ।
धर्मराज सम अद्भुत बांके ॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा ।
किया करत सुरमुनि नर सेवा ॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों ।
दूर हटतसो भवके भ्रम सों ॥
परम धन्य सों नर तनधारी ।
हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी ॥
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन ।
मधु वेदांग नाम रवि उदयन ॥
भानु उदय बैसाख गिनावै ।
ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै ॥
यम भादों आश्विन हिमरेता ।
कातिक होत दिवाकर नेता ॥
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं ।
पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं ॥
॥ दोहा ॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य ।
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य ॥

धन्यवाद !
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