॥ Mata Chandraghanta | माता चंद्रघंटा देवी ॥
॥ माँ दुर्गा का तीसरा रूप ॥
नवदेवी के तीसरे शक्ति रूप को माता चंद्रघंटा कहा जाता है । आम जनमानस की शब्दों में इन्हें भगवती चंद्रघंटा ((Chandraghanta))के नाम से भी पुकारा जाता है । माता के माथे पर घंटे की आकार में अर्ध चन्द्र है, जिस कारण इन्हें चंद्रघंटा (Chandraghanta) कहा जाता है । वह शेर पर बैठी संघर्ष के लिए तैयार रहती हैं । माता ने अपने दसो हाथों में दस विभिन्न प्रकार के अस्त्र -शस्त्र धारण किए रहती हैं । और उनका शरीर का रंग स्वर्ण के समान उज्जवल है । उनमें हिम्मत की अभूतपूर्व छवि है । उनकी घंटी की भयानक ध्वनि सभी राक्षसों को डराता है ।
॥ पूजा विधि ॥
Mata Chandraghanta Puja Vidhi
सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाए । फिर उस पर मां चंद्रघंटा की तस्वीर को स्थापित करें । उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटका रखें । तत्पश्चात हाथ में लाल पुष्प लेकर मां चंद्रघंटा को ध्यान करें । और मन ही मन इस मंत्र का उच्चारण करें।
॥ श्लोक ॥
Mata Chandraghanta Shlok
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ॥
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता ।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुत ॥
मंत्र के साथ ही हाथ में लिए पुष्प को मां के तस्वीर पर चढ़ा दे । और उनसे प्रार्थना करें कि आपके सभी मनोकामनाओं को वह पूर्ण करें । इसके बाद प्रसाद अर्पित करें, और मन ही मन मां चंद्रघंटा को याद करें ।
माता चंद्रघंटा पूजा का महत्व :
Mata Chandraghanta Puja Mahatw
माँ चंद्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप, दुख और बाधाएँ विनष्ट हो जाती हैं । इनकी आराधना सदैव ही फलदायी है । माँ भक्तों के कष्ट का निवारण शीघ्र ही करती हैं । इनके उपासना करने से उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है ।
माता चंद्रघंटा की पौराणिक कथा :
Mata Chandraghanta Katha
पौराणिक कथा के मुताबिक, जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा था, तब माता दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार लिया । उस समय राक्षस महिषासुर का भयंकर युद्ध देवताओं से चल रहा था । महिषासुर की इच्छा देवराज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना था वह स्वर्ग लोक पर राज करने की इच्छा से यह युद्ध कर रहा था । जब देवताओं को उसकी इस बात का पता चला तो वे परेशान हो गए और भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने उपस्थित हुए ।
जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने देवताओं की बात सुनी तो क्रोध प्रकट किया और क्रोध आने पर उन तीनों के मुख से ऊर्जा निकली और उसी ऊर्जा से एक देवी अवतरित हुईं । उस देवी को भगवान शंकर ने अपनी त्रिशूल दी, भगवान विष्णु ने अपना चक्र दीया, इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने अपना तेज और तलवार और सिंह प्रदान किया । इसके बाद मां चंद्रघंटा ने राक्षस महिषासुर का वध कर दीया और देवताओं की रक्षा की ।
माता चंद्रघंटा देवी कवच :
Mata Chandraghanta Kawach
रहस्यं श्रणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने ।
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचं सर्वसिद्धि दायकम् ॥ १ ॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोद्धारं बिना होमं ।
स्नान शौचादिकं नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिकम ॥ २ ॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च ।
न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम् ॥ ३ ॥
माँ चंद्रघंटा देवी स्तोत्र :
Mata Chandraghanta Shtotra
!! ध्यान !!
DHYAN
वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम् ।
सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम् ॥ १ ॥
कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम् ।
खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम् ॥ २॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम् ।
मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम् ॥ ३ ॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम् ।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम् ॥ ४ ॥
!! स्तोत्र !!
SHTOTRA
आपद्धद्धयी त्वंहि आधा शक्ति: शुभा पराम् ।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम् ॥ १ ॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम् ।
धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम् ॥ २ ॥
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम् ।
सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम् ॥ ३ ॥
माँ चन्द्रघण्टा की स्तुति :
Mata Chandraghanta Shtuti
नवरात्रि के तीसरे दिन ।
चंद्रघंटा का ध्यान ॥
मस्तक पर है अर्ध चन्द्र ।
मंद मंद मुस्कान ॥ १ ॥
दस हाथों में अस्त्र शस्त्र ।
रखे खडग संग बाण ॥
घंटे के शब्द से ।
हरती दुष्ट के प्राण ॥ २ ॥
सिंह वाहिनी दुर्गा का ।
चमके स्वर्ण शरीर ॥
करती विपदा शान्ति ।
हरे भक्त की पीर ॥ ३ ॥
मधुर वाणी को बोल कर ।
सब को देती ग्यान ॥
जितने देवी देवता ।
सभी करें सम्मान ॥ ४ ॥
अपने शांत स्वभाव से ।
सबका करती ध्यान ॥
भव सागर में फंसा हूँ मैं ।
करो मेरा कल्याण ॥ ५ ॥
नवरात्रों की माँ ।
कृपा कर दो माँ ॥
नवरात्रों की माँ ।
कृपा कर दो माँ ॥ ६ ॥
जय माँ चंद्रघंटा ।
जय माँ चंद्रघंटा ॥ ७ ॥
नवरात्रि के तीसरे दिन ।
चंद्रघंटा का ध्यान ॥
मस्तक पर है अर्ध चन्द्र ।
मंद मंद मुस्कान ॥ ८ ॥
॥ आरती ॥
Aarti
‘जय माँ चन्द्रघण्टा सुख धाम ।
पूर्ण कीजो मेरे काम ॥
चन्द्र समाज तू शीतल दाती ।
चन्द्र तेज किरणों में समाती’ ॥ १ ॥
‘मन की मालक मन भाती हो ।
चन्द्रघण्टा तुम वर दाती हो ॥
सुन्दर भाव को लाने वाली ।
हर संकट में बचाने वाली’ ॥ २ ॥
‘हर बुधवार को तुझे ध्याये ।
श्रद्दा सहित तो विनय सुना ॥
मूर्ति चन्द्र आकार बनाए ।
शीश झुका कहे मन की बाता’ ॥ ३ ॥
‘पूर्ण आस करो जगत दाता ।
कांचीपुर स्थान तुम्हारा ॥
कर्नाटिका में मान तुम्हारा ।
नाम तेरा रटू महारानी’ ॥ ४ ॥
‘भक्त की रक्षा करो भवानी’ ॥ ५ ॥
‘जय माँ चन्द्रघण्टा सुख धाम ।
पूर्ण कीजो मेरे काम ॥
चन्द्र समाज तू शीतल दाती ।
चन्द्र तेज किरणों में समाती’ ॥ १ ॥

धन्यवाद !
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