अमावस्या (Amavasya) हिन्दू पंचांग के अनुसार माह की ३०वीं और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि है । अमावस्या की तिथि का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व बताया गया है । इस तिथि में चन्द्रमा और सूर्य साथ रहते हैं, वही ‘अमावास्या’ तिथि है । इसे ‘अमावसी’ ‘सिनीवाली’ या ‘दर्श’ के नामों से भी जाना जाता है । कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को कृष्ण पक्ष प्रारम्भ होता है तथा अमावास्या का समाप्त होता है । हर माह की अमावस्या को कोई न कोई पर्व अवश्य मनाया जाता हैं ।
अमावस्या के नामकरण हेतु ‘मत्स्य पुराण’ के 14वें अध्याय में एक कथा बताई गई है, जिसके अनुसार प्राचीन काल में पितरों ने ‘आच्छोद’ नामक एक सरोवर का निर्माण किया था । इन देव पितरों की एक मानसी कन्या थी, जिसका नाम था ‘अच्छोदा’ । अच्छोदा ने एक सहस्त्र दिव्य वर्षों तक कठिन तप किया । अतः उसे वर देने के लिये पितरगण पधारे ।
उनमें से एक अतिशय सुन्दर ‘अमावसु’ नामक पितर को देखकर ‘अच्छोदा’ उन पर अनुरक्त हो गई और अमावसु से प्रणय याचना करने लगी । पर अमावसु इसके लिये तैयार नहीं हुये । अमावसु के धैर्य के कारण उस दिन की तिथि पितरों को अतिशय प्रिय हुई । उस दिन कृष्ण पक्ष की पंचदशी तिथि थी, जो कि तभी से ‘अमावसु’ के नाम पर ‘अमावस्या’ कहलाने लगी ।
वर्ष के मन से उत्तरायण में और माह के मन से शुक्ल पक्ष में देव आत्माएं सक्रिय रहती है वही दक्षिणायन और कृष्ण पक्ष में दैत्य आत्माएं ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं । अमावस्या के दिन भूत – प्रेत, पिशाच, निशाचर, पितृ, जीव – जंतु और दैत्य बहुत ही ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं । इसीलिए इस दिन व्यक्ति के मन मस्तिष्क को धर्म की ओर मोड दिया जाता है ।
धर्म ग्रंथो में चंद्रमा की 16वीं कला को ‘अमा’ कहा गया है । चंदमंडल की ‘अमा’ नाम की महाकाल है, जिसमें चंद्रमा की 16 कलाओं की शक्ति शामिल है । शास्त्रों में अमा के अनेक नाम बताएं गये हैं जैसे कि – अमावस्या, सूर्य – चंद्र संगम, पंचदर्श, अमावासी, अमावसी या अमामासी ।
अमावस्या पर व्रत
चंद्रमा 28 दिनों में पृथ्वी का एक चक्कर पूर्ण करता है । 15 दिनों के चंद्रमा पृथ्वी की दूसरी ओर होता है और भारतवर्ष से उसको नहीं देखा जा सकता है । जिस दिन को चंद्रमा पुर्ण रूप से भारतवर्ष से नहीं दिखाई देता उसे अमावस्या का दिन कहा जाता है ।
अमावस्या को हिन्दू शास्त्रों में महत्वपुर्ण स्थान प्राप्त है और शास्त्रों के अनुसार अमावस्या को पित्रों अर्थार्थ गुज़र गए पूर्वजों का दिन भी मन जाता है । ऐसा कहा जाता है कि अमावस्या के दिन स्नान कर अमावस्या का व्रत करना चाहिये । अमावस्या के दिन ऐसे ही कार्य करने चाहियें, जो परमात्मा के पास में ही बिठाने वाले हो । संध्या हवन, सत्संग, परमात्मा का स्मरण ध्यान कर्म परमात्मा के पास बैठाते हैं ।
इसलिए माह में एक दिन उपवास अवश्य ही करना चाहिये और वह दिन अमावस्या का श्रेष्ठ माना गया हैं, क्योंकि सूर्य और चन्द्रमा ये दोनों ही शक्तिशाली ग्रह हैं और इस दिन सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में आ जाते हैं । इन दोनों ग्रहों के बीच का अंतर 0 डिग्री हो जाता है । चन्द्रमा सुर्य के सामने निस्तेज हो जाता हैं, अर्थात् चन्द्र की किरणें नष्ट साधारणतः हो जाती हैं ।
इसके प्रभाव से पुरे संसार में भयंकर अन्धकार छा जाता है । इस दिन बुरे व्यसनों से दूर रहना चाहिए और हो सके तो गरीब, बेसहारा और जरूतमंद बुज़ुर्गों को भोजन करना चाहिये । अमावस्या को पित्रों का दिन कहा गया है तो इस दिन किसी को भोजन करने से हम एक तरह से अपने पित्रों को भोजन अर्पित कर रहे हैं । ऐसा करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है ।
इस दिन किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं करना चाहिए । हालांकि ये दिन गंगा नदी में पवित्र स्नान, पितृ तर्पण, पितृ पूजा, पिंड दान, और ब्राह्मणों को भोजन आदि कराने के लिए अच्छा माना जाता है । साल में 12 अमावस्या होती है, किन्तु कुछ प्रमुख अमावस्या भी होती है जैसे- सोमवती अमावस्या, भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या, शनी अमावस्या, महालय अमावस्या, हरियाली अमावस्या, दिवाली अमावस्या और कुशग्रहणी अमावस्या ।
सोमवती अमावस्या व्रत – सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं । इस दिन व्रत रखने से चंद्र का दोष दूर होता हैं । सोमवती अमावस्या व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । खास तौर पर महिलाएं इस व्रत को अपने पति के लंबे जीवन के लिए करती हैं ।
भौमवती अमावस्या व्रत- भौम अर्थात मंगल । मंगलवार को पड़ने वाली अमावस्या को भौनवती अमावस्या कहते हैं । इस दिन व्रत रखने से कर्ज का संकट समाप्त हो जाता है ।
मौनी अमावस्या व्रत- यह हिंदू माह के माघ मे आता है । इसे आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण दिन माना गया हैं ।
शनि अमावस्या व्रत- शनिवार को आने वाली अमावस्या को शनि अमावस्या कहते हैं । जो भी व्यक्ति इस दिन व्रत रखता हैं वह शनि दोष से मुक्ति हो जाता है ।
महालय अमावस्या व्रत- महालय अमावस्या को पितृक्ष की सर्वपितृ अमावस्या भी कहते हैं । इस दिन को अन्न दान और तर्पण आदि करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं ।
हरियाली अमावस्या व्रत- श्रावण मास मे हरियाली अमावस्या आती है । इसे महाराष्ट्र में गटारी अमावस्या भी कहते हैं । आंध्र प्रदेश और तेलंगान में चुक्कला अमावस्या एवं उड़ीसा में चितलागी अमावस्या कहते हैं । इस दिन पौधा रोपण करने का महत्व हैं । इस दिन पितरों की शांति हेतु भी अनुष्ठान किया जाता है ।
दिवाली अमावस्या व्रत- कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली अमावस्या कहते हैं । इस अमावस्या के समय दीपोत्सव मनाया जाता है । कहते है कि इस दिन रात सबसे ज्यादा घनी होती है । मूल रूप से ये अमावस्या माता कालीका से जुड़ी हुई है इसीलिए उनकी पूजा का महत्व हैं । इस दिन लक्ष्मी पूजा का भी अत्यंत महत्व है । माना जाता है कि इसी दिन दोनो ही देवीयो का जन्म हुआ था ।
कुशग्रहणी अमावस्या व्रत- कुश एकत्रित करने के कारण ही इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता हैं । पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है । भगवान श्री कृष्ण की आराधना के माह माद्रपद ही है । इस दिन को पिथौरा अमावस्या भी कहा जाता है । पिथौरा अमावस्या को देवी दुर्गा की पूजा की जाती है ।
बाकि के बची अमावस्याएं दान और स्नान के महत्व की हैं । वह जिस भी दिन होता हैं उसी दिन (वार) के नाम से जाना जाता है । मूलतः इनके नाम 12 माह के नामों पर ही आधारित होता हैं ।
अमावस्या का महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अमावस्या का दिन बहुत ही शक्तिशाली माना गया है क्योंकि ये चंद्रमा की पूजा के लिए समर्पित है । इस दिन चंद्रमा अपने अस्त काल में होता है । यदि किसी की जन्म कुंडली में चंद्रमा खराब स्थिति में है तो यह निश्चित रूप से भावनाओं और संवेदनाओं को प्रभावित करता है । कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा को जल चढ़ाने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है ।
अमावास्या के स्वामी ‘पितर’ होते हैं । इस तिथि में चन्द्रमा की सोलहवीं कला जल में प्रविष्ट हो जाती है । चन्द्रमा का वास अमावास्या के दिन औषधियों में रहता है, अतः जल और औषधियों में प्रविष्ट उस अमृत का ग्रहण गाय, बैल, भैंस आदि पशु चारे एवं पानी के द्वारा करते हैं, जिससे वहीं अमृत हमें दूध, घी आदि के रूप में प्राप्त होता है और उसी घृत की आहुति ऋषिगण यज्ञ के माध्यम से पुनः चन्द्रादि देवताओं तक पहुँचाते हैं । वही अमृत फिर बढ़कर पूर्णिमा को चरम सीमा पर पहुँचता है ।
अमावस्या व्रत 2024 की तारीख (Amavasya 2024 List)
1. पौष अमावस्या - 11 जनवरी 2024
पौष अमावस्या तिथि शुरू – 10 जनवरी 2024, रात 08:10
पौष अमावस्या तिथि समाप्त – 11 जनवरी 2024, शाम 05;26
2. माघ अमावस्या - 9 फरवरी 2024
माघ अमावस्या तिथि शुरू – 9 फरवरी 2024, सुबह 08:02
माघ अमावस्या तिथि समाप्त – 10 फरवरी 2024, सुबह 04:28
3. फाल्गुन अमावस्या - 10 मार्च 2024
फाल्गुन अमावस्या तिथि शुरू – 9 मार्च 2024, शाम 06:17
फाल्गुन अमावस्या तिथि समाप्त – 10 मार्च 2024, दोपहर 02:29
4. चैत्र अमावस्या - 8 अप्रैल 2024
चैत्र अमावस्या तिथि शुरू – 8 अप्रैल 2024, प्रात: 03:21
चैत्र अमावस्या तिथि समाप्त – 8 अप्रैल 2024, रात 11:50
5. वैशाख अमावस्या - 7 मई 2024
वैशाख अमावस्या तिथि शुरू – 7 मई 2024, सुबह 11:40
वैशाख अमावस्या तिथि समाप्त – 8 मई 2024, सुबह 08:51
6. ज्येष्ठा अमावस्या - 6 जून 2024
ज्येष्ठा अमावस्या तिथि शुरू – 5 जून 2024, रात 07:54
ज्येष्ठा अमावस्या तिथि समाप्त – 6 जून 2024, शाम 06:07
7. आषाढ़ अमावस्या - 5 जुलाई 2024
आषाढ़ अमावस्या तिथि शुरू – 5 जुलाई 2024, सुबह 04:57
आषाढ़ अमावस्या तिथि समाप्त – 6 जुलाई 2024, सुबह 04:26
8. सावन अमावस्या - 4 अगस्त 2024
सावन अमावस्या तिथि शुरू – 3 अगस्त 2024, दोपहर 03:50
सावन अमावस्या तिथि समाप्त – 4 अगस्त 2024, शाम 04:42
9. भाद्रपद अमावस्या - 2 सितंबर 2024
भाद्रपद अमावस्या तिथि शुरू – 2 सितंबर 2024, सुबह 05:21
भाद्रपद अमावस्या तिथि समाप्त – 3 सितंबर 2024, सुबह 07:24
10. अश्विन अमावस्या - 2 अक्टूबर 2024
अश्विन अमावस्या तिथि शुरू – 1 अक्टूबर 2024, रात 09:39
अश्विन अमावस्या तिथि समाप्त – 2 अक्टूबर 2024, देर रात 12:18
11. कार्तिक अमावस्या - 1 नवंबर 2024
कार्तिक अमावस्या तिथि शुरू – 31 अक्टूबर 2024, दोपहर 03:52
कार्तिक अमावस्या तिथि समाप्त – 1 नवंबर 2024, शाम 06:16
12. मार्गशीर्ष अमावस्या - 1 दिसंबर 2024
मार्गशीर्ष अमावस्या तिथि शुरू – 30 नवंबर 2024, सुबह 10:29
मार्गशीर्ष अमावस्या तिथि समाप्त – 1 दिसंबर 2024, सुबह 11:50

धन्यवाद !
Follow Me On:-
इन्हें भी पढ़े !