Jaya Ekadashi Vrat 2024|जया एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व, व्रत कथा

Jaya Ekadashi Vrat करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है ।

एकादशी व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठतम दर्जा दिया गया है । हर वर्ष में लगभग 24 से 26 एकादशी होती है और प्रत्येक एकादशी का अपना विशेष महत्व होता है । माघ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘जया एकादशी व्रत‘ (Jaya Ekadashi Vrat) के रूप में जाना जाता है । जया एकादशी को अजा एकादशी भी कहते हैं । इस पूजा को पूरे विधि-विधान और वैदिक रिवाजों से करे तो भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है । यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है ।

जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं । जया एकादशी को दक्षिण भारत के कुछ हिंदू समुदायों, विशेष रूप से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्यों में ‘भूमि एकादशी’ और ‘भीष्म एकादशी’ के रूप में भी जाना जाता है । प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियाँ होती हैं । जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है ।

हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि एकादशी व्रत करने वाले के समस्त पापों का नाश हो जाता है । भगवान इस व्रत से प्रसन्न होकर साधक को अनंत आशीर्वाद प्रदान करते हैं । हर माह के कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत रखकर भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करने का विधान हैं ।

जया एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त (Jaya Ekadashi Vrat Ka Shubh Muhurat)

Ekadashi Event
एकादशी तिथि
Date and Timing
तिथि और समय
Kab hai Jaya Ekadashi Vrat 2024
कब हैं जया एकादशी 2024 मे
20 February, 2024, Tuesday
20 फ़रवरी, 2024, मंगलवार
Jaya Ekadashi Vrat starts on
जया एकादशी तिथि आरंभ
08:49 AM on 19 February, 2024
19 फ़रवरी 2024 को सुबह 08:49 बजे
Jaya Ekadashi Vrat ends on
जया एकादशी तिथि समाप्त
09:55 AM on 20 February, 2024
20 फ़रवरी 2024 को सुबह 09:55 बजे
Parana time (Fasting)
पारण (व्रत तोड़ने का) समय
06:55 AM to 09:11 AM 
प्रातः 06:55 से प्रातः 09:11 तक
Parana Tithi, Dwadashi ends on
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय
11:27 AM
11:27 पूर्वाह्न

जया एकादशी व्रत की पूजा विधि:-

जया एकादशी व्रत के दिन सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करें । उसके बाद भगावन श्रीहरि विष्णु का ध्यान करते हुए केले के पेड़ में जल को अर्पित करें । इसके बाद घर के मंदिर में भगवान श्रीहरि विष्णु की प्रतिमा के सामने पूर्व दिशा की तरफ मंहु करके बैठ जाएं और व्रत का संकल्प लें । इसके बाद भगवान श्रीहरि विष्णु को अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व तुलसी, जल आदि को अर्पित करें । पूजा के दौरान विष्णु सहस्त्रनाम स्त्रोत का पाठ भी करें । अंत में भगवान श्रीहरि विष्णु की आरती कर पूजा को समाप्त करें ।

जया एकादशी व्रत का पारणा कैसे करें:-

  • एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि यानि कि एकादशी के अगले दिन शुभ मुहूर्त में करना चाहिए ।
  • सवेरे उठकर स्नान करने के पश्चात पूजन करें और सात्विक भोजन बनाएं ।
  • किसी जरूरत मंद या फिर ब्राह्मण को भोजन करवा कर दान-दक्षिणा देने के पश्चात सम्मानपूर्वक विदा करें ।
  • पारण मुहूर्त में स्वयं भी भोजन ग्रहण करें ।

जया एकादशी का महत्व:-

जया एकादशी के महत्व के बारे में ‘पद्म पुराण’ और ‘भविष्योथारा पुराण’ बताया गया है । जया एकादशी के महत्व के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था, कि यह व्रत करने से ‘ब्रह्म हत्या’ जैसे पाप से भी मुक्ति मिल सकता है । माघ के महीनें में भगवान शिव की पूजा के लिए शुभ होता है इसलिए जया एकादशी भगवान शिव और विष्णु दोनों के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है ।

जया एकादशी की तिथि के दिन क्या करें क्या ना करें?

क्या करें?– जय एकादशी के दिन पवित्र धारा और स्नान का विशेष महत्व है । एकादशी व्रत का पालन करें और जया एकादशी व्रत का कथा करें । इस दिन घर आए किसी भी साधु संत को अन्ना, धन, वस्त्र आदि का दान करें । एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा उपासना करें इस दिन तुलसी पत्र और पंचामृत का प्रयोग अवश्य करें ।

क्या ना करें?– जया एकादशी के दिन व्यक्ति को चावल, पान, बैंगन, गोभी, जौ या पालक  इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए । एकादशी के दिन तामसिक भोजन करना वर्जित होता है । एकादशी व्रत का पालन कर रहे साधकों को किसी अन्य व्यक्ति के बारे में भला बुरा नहीं कहना चाहिए । एकादशी के दिन घर में झाड़ू का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।

क्यों नहीं खाना चाहिए एकादशी के दिन चावल?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता शक्ति की क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया था, और उनका अंश पृथ्वी में समा गया था । बाद में इसी स्थान पर जौ और चावल के रूप में महर्षि मेधा उत्पन्न हुए थे । जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया था, उसे दिन एकादशी की तिथि थी । इसीलिए एकादशी के दिन चावल का सेवन करना वर्जित माना गया है । ऐसा माना जाता है की एकादशी के दिन चावल खाना महर्षी मेधा के मांस और रक्त को सेवन करने के बराबर है । इस कारण चावल और जौ को जीव माना गया है ।

जया एकादशी के दिन करें यह खास उपाय:-

  • इस दिन पीपल के पत्ते से भगवान विष्णु की पूजा करें ।
  • 12 बादाम के दाने पीपल के पत्र पर रखकर भगवान विष्णु को समर्पित करें और इसके उपरांत इन बादाम को काले कपड़े में बांधकर घर में छुपा दे ।
  • इस दिन भगवान विष्णु के मंत्र ओम जगदीश्वराये नमो नमः का श्रद्धा भक्ति पूर्वक जाप करें ।
  • इस दिन जया एकादशी की व्रत कथा को अवश्य सुने ।
  • उपरोक्त सभी उपायों को करने से भगवान विष्णु की कृपा से आपको समस्त आर्थिक संकटों से छुटकारा मिल जाएगा ।

जया एकादशी व्रत कथा:-

एक समय की बात है स्वर्ग में देवताओं के राजा इंद्र राज्य किया करते थे और उनके राज्य में अन्य सभी देवता भी सुख पूर्वक निवास करते थे ।  एक दिन देवराज इंद्र अपनी मनोकामना के अनुसार नंदनवन में विहार कर रहे थे और गंधर्व का गायन चल रहा था ।

गुणगान करने वाले गंधर्व में मालवान नाम का एक गंधर्व था जिसके मधुर गाने को सुनकर पुष्पावती नाम की एक अप्सरा प्रेम और मोह में फस गई । पुष्पावती गंधर्व माल्यवान को अपनी और आकर्षित करने का भरसक प्रयास करने लगे और उसके ऐसा करने से माल्यवान का गायन और सुर ताल खराब होने लगा था । मल्लवान और पुष्पवती के इस आचरण से देवराज इंद्र के महोत्सव का आनंद बिगड़ने लगा ! इस बात को देखकर सभी देवता गन भी काफी नाराज हो गए ।

यह सब अपने नेत्रों के सामने होता देख देवराज इंद्र अत्यंत ही क्रोध में आ गए और माल्यवान एवं पुष्पवती को श्राप दे दिया । देवराज इंद्र के सर आपको पाकर दोनों ही स्वर्ग लोक से मृत्यु लोक में आ गए और अत्यंत ही कष्टप्रद जीवन जीने लगे । देवराज इंद्र के शाप के कारण दोनों ही गंधर्व को पिशाच की तरह जीवन व्यतीत करना पड़ा । अपने इस दुर्दशा को देखकर दोनों ही अत्यंत दुखी थे इसी प्रकार कुछ समय बीता ।

एक बार की बात है जया एकादशी के दिन उन्होंने कुछ भी नहीं खाया था और दिन भर ईश्वर के सामनेअपनी गलती का पश्चाताप कर रहे थे । भूख से व्याकुल होकर दोनों ही एक पेड़ के नीचे बैठकर अपनी पूरी रात गुजारी । अगली सुबह भूख प्यास के कारण उन दोनों की मृत्यु हो गई और जिस दिन उनकी मृत्यु हुई थी उस दिन भगवान विष्णु का जया एकादशी का दिन था । जाने अनजाने में ही उन दोनों ने भगवान विष्णु के इस ब्रत को बिना खाए पिए कर लिया था और इसी के फल से उन दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई और वे पुनः आनंद पूर्वक स्वर्ग लोक में चले गए ।

जब दोनों स्वर्ग लोक में पहुंचे तो उनको देखकर  देवराज इंद्र को अत्यंत ही आश्चर्य हुआ और उन्होंने उनसे शाप से मुक्ति के बारे में पूछा । तब दोनों ने बताया कि जया एकादशी का व्रत करने के कारण ही उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिली है और मोक्ष की प्राप्ति हुई है ।


परानाम

धन्यवाद !


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