- माँ दुर्गा की पूजा और उपासना: दुर्गा सप्तशती का Upsanhar माँ दुर्गा की पूजा और उपासना के आदर्श प्रतीक के रूप में माना जाता है । इसके माध्यम से व्यक्ति माँ दुर्गा के प्रति अपनी विशेष भक्ति और समर्पण का अभिवादन करता है ।
- साधना का साधना: दुर्गा सप्तशती का उपसंहारः करने से साधक अपनी माँ की आराधना के माध्यम से अपने आत्मा को शुद्ध करने और आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ सकता है ।
- संकटों का निवारण: दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से संकटों का निवारण होता है और व्यक्ति की जीवन में सुख-शांति आती है ।
- स्वास्थ्य और धन की रक्षा: दुर्गा सप्तशती का उपसंहारः करने से व्यक्ति का स्वास्थ्य और धन सुरक्षित रहता है, और उन्हें अधिक सफलता मिलती है ।
- आध्यात्मिक जागरूकता: दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ती है और व्यक्ति का मानव जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं के प्रति जागरूक होने में मदद मिलती है ।
- भक्ति और समर्पण: दुर्गा सप्तशती के उपसंहारः से व्यक्ति अपने मन, वचन, और क्रिया को मां दुर्गा के प्रति समर्पित करता है । यह भक्ति और समर्पण की भावना को बढ़ावा देता है और व्यक्ति को आध्यात्मिक अनुभव की ओर अग्रसर करता है ।
- शक्ति और साहस की वर्द्धना: दुर्गा सप्तशती का उपसंहारः करने वाले व्यक्ति को शक्ति, साहस, और संघर्ष की भावना में वृद्धि होती है । इससे वह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रतिबद्ध रहता है ।
इन सभी कारणों से, दुर्गा सप्तशती का उपसंहार धार्मिक और आध्यात्मिक मामलों में बड़े महत्वपूर्ण होता है, और यह व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति में मदद कर सकता है ।
माँ दुर्गा की स्तुति का सर्वश्रेष्ठ साधन Durga Saptashati Upsanhar है, यहाँ पर दुर्गा सप्तशती पाठ का उपसंहारः अध्याय संस्कृत और हिन्दी भाषा में प्रकाशित किया गया है । आप अपनी इच्छानुसार मनपसंद भाषा में श्री दुर्गा सप्तशती पाठ पढ़ सकते हैं, माँ भगवती की आराधना कर सकते हैं ।
Durga Saptashati Upsanhar
॥ उपसंहारः ॥
इस प्रकार सप्तशती का पाठ पूरा होने पर पहले नवार्णजप करके फिर देवीसूक्त के पाठ का विधान है; अतः यहाँ भी नवार्ण-विधि उद्धृत की जाती है । सब कार्य पहले की ही भाँति होंगे ।
॥ विनियोगः ॥
श्रीगणपतिर्जयति । ॐ अस्य श्रीनवार्णमन्त्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः,
गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांसि, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः,
ऐं बीजम्, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकम्, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।
॥ ऋष्यादिन्यासः ॥
ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः, शिरसि । गायत्र्युष्णिगनुष्टुप्छन्दोभ्यो नमः, मुखे ।
महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः, हृदि ।
ऐं बीजाय नमः, गुह्ये । ह्रीं शक्तये नमः, पादयोः । क्लीं कीलकाय नमः, नाभौ ।
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”- इति मूलेन करौ संशोध्य-
॥ करन्यासः ॥
ॐ ऐं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः । ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
॥ हृदयादिन्यासः ॥
ॐ ऐं हृदयाय नमः । ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा । ॐ क्लीं शिखायै वषट् ।
ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम् । ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट् ।
॥ अक्षरन्यासः ॥
ॐ ऐं नमः, शिखायाम् । ॐ ह्रीं नमः, दक्षिणनेत्रे ।
ॐ क्लीं नमः, वामनेत्रे । ॐ चां नमः, दक्षिणकर्णे ।
ॐ मुं नमः, वामकर्णे । ॐ डां नमः, दक्षिणनासापुटे ।
ॐ यैं नमः, वामनासापुटे । ॐ विं नमः, मुखे । ॐ च्चें नमः, गुह्ये ।
“एवं विन्यस्याष्टवारं मूलेन व्यापकं कुर्यात्”
॥ दिङ्न्यासः ॥
ॐ ऐं प्राच्यै नमः । ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः ।
ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः । ॐ ह्रीं नैर्ऋत्यै नमः ।
ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः । ॐ क्लीं वायव्यै नमः ।
ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः । ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊर्ध्वायै नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः ।
॥ ध्यानम् ॥
खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः
शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम् ।
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम् ॥ 1 ॥
अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम् ।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ॥ 2 ॥
घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम् ।
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-
पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम् ॥ 3 ॥
इस प्रकार न्यास और ध्यान करके मानसिक उपचार से देवी की पूजा करें । फिर १०८ या १००८ बार नवार्णमन्त्र का जप करना चाहिये । जप आरम्भ करने के पहले “ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः” इस मन्त्र से माला की पूजा करके इस प्रकार प्रार्थना करें-
ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि ।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे ।
जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये ॥
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिंदेहि देहि सर्वमन्त्रार्थसाधिनि
साधय साधय सर्वसिद्धिंपरिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा ।
इस प्रकार प्रार्थना करके जप आरम्भ करें । जप पूरा करके उसे भगवती को समर्पित करते हुए कहे-
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान्महेश्वरि ॥
तत्पश्चात् फिर नीचे लिखे अनुसार न्यास करें-
॥ करन्यासः ॥
ॐ ह्रीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । ॐ चं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ डिं मध्यमाभ्यां नमः । ॐ कां अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ यैं कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ ह्रीं चण्डिकायै करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
॥ हृदयादिन्यासः ॥
ॐ खड्गिनी शूलिनी घोरा गदिनी चक्रिणी तथा ।
शङ्खिनी चापिनी बाणभुशुण्डीपरिघायुधा ॥ हृदयाय नमः ।
ॐ शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके ।
घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च ॥ शिरसे स्वाहा ।
ॐ प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च चण्डिके रक्ष दक्षिणे ।
भ्रामणेनात्मशूलस्य उत्तरस्यां तथेश्वरि ॥ शिखायै वषट् ।
ॐ सौम्यानि यानि रूपाणि त्रैलोक्ये विचरन्ति ते ।
यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मांस्तथा भुवम् ॥ कवचाय हुम् ।
ॐ खड्गशूलगदादीनि यानि चास्त्राणि तेऽम्बिके ।
करपल्लवसङ्गीनि तैरस्मान् रक्ष सर्वतः ॥ नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥ अस्त्राय फट् ।
॥ ध्यानम् ॥
ॐ विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां
कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम् ।
हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीं
बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे ॥

धन्यवाद !
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