Madhushravani puja vrat katha in Maithili day 12

Madhushravani puja vrat:- मधुश्रावणी पूजा बारहम दिन क कथा:

Madhushravani puja vrat katha in Maithili day 12:- बाल-बसंत

एक ब्राह्मण क सात पुत्र छेलनि I छोटकी पुतहु छोट घर सं छेलखिन I ओकरा पर हमेशा सासु तमसेल रहैत छलखिन ,कहियो ओकरा निक-निकुत खेबाक लेल नहि दइ छेलखिन I कनियाँ जखन गर्भवती भेलखिन त हुनका नीक-निकुत खेबाक इक्षा होइत छेलनि मुदा मन मरि क रहै पङैत छेलनि I ओ इ बात एक दिन अपना स्वामी क कहलखिन त ओ एकटा उपाय केलैथ I

ओ अपना माँ क कहलखिन जे – हे माय आई हमरा खीर-पूरी खेबाक इक्षा भय रहल एछि I हम खेत पर जा रहल छि अहाँ हमरा कनियाँ संगे खिर-पूरी बाँध पर पठा देब I माय त चंट ओ बेटा क भावना बुझि गेलखिन I कनियाँ क क जीह पर किछु लिख देलखिन आ हाथ में खीर-पूरी दय कहलखिन –जा धरि अहाँ बाँध पर सं घुरी के नहीं आयब ताबत धरि इ जीह पर लिखल रहवाक चाही I

Madhushravani puja vrat katha in Maithili- day 12

कनियाँ खीर-पूरी ल खेत पर गेलैथ आ स्वामी क देलखिन त ओ आधा खा ,आधा कनियाँ क खाई लेल देलखिन त कनियाँ कहलखिन –हम कोना खायब, अहाँ क माय हमरा जीह पर किछु लिख देने छैथ I त ओ कहलैथ इ कतउ नुका क राखि लेब आ जखन माय जीह देख लेत त खा लेब I

कनिया घुरी क खीर-पूरी पीपर गाछ क धोधैर में नुका क राखि देलखिन आ अपना सासू क जीह देखा देलखिन I आ बाद में जखन दोधैर में ताकय लेल गेलखिन त देखलखिन कि कियो सबटा खिर-पूरी खा गेल एछि I ओ दुखी भय गेली आ बजाय लागलि ।

आशा भेल निराशा ,झांझर भेल पलास I
जे मोरा खेलनि खिरया पुरिया ,तिनका पुरनि आस II

ओहि धोधैर में में एकटा गर्भवती नागिन रहैत छल ओ खीर पूरी खा लेने रहा I ओकरा किछु दिन बाद दु टा बच्चा पोया भेलैन ,बाल आ बसंत I दुनू पोया ब्राह्मण क खेत में खेलाइत रहैत छेलैथ I एक दिन किछु बच्चा सब दुनू पोया क माङइ लेल खिहाङ लागलइ I कनियाँ क दया आबि गेल ओ दूनु पोआ क अपना लग पथिया में झापि लेलथि आ जखन बच्चा सब चलि गेल त ओकरा दुनू क छोङि देलखिन I

इ बात बाल,बसंत अपना माय क कहलखिन,त माया कहलखिन जे – जे तोरा पर अतेक उपकार केलकउ तकर तोहूँ उपकार करिहनि I दोसर दिन जखन कनियाँ खेत पर गेलि त बाल ,बसंत हुनका लग गेलखिन आ कहलखिन –हम दुनू वासुकी नाग क बेटा छि काल्हि अहाँ हमर प्राण रक्षा केलहु ताहि सं हम अहाँ पर प्रस्सन छि ,हमरा सब वर मांगू I ताहि पर कनियाँ कहलखिन –हमरा नैहर क आसरा होएय,इहा वर दिय I

दोसर दिन बाल बसंत मनुष्य रूप धरि कनिया क ओतय गेलखिन आ हुनका सासू सं कहलखिन – हम दुनू कनियाँ क भई छि ,हमर सभक जन्म दुइरागमन क बाद भेल ऐछ तें अहाँ हमरा नइ चिन्हैत छि I हम सब बहिन के नैहर लय जेवाक लेल एलियन हं I कनियाँ क इक्षा आ भई क जिद पर सासू कनियाँ क विदा क देलखिन I तीनू बिदा भय गेलैथ आ एकटा बीहाङ सं होइत महल में पहूचँलैथ I ओतय बसुकिनी मनुष्य रूप में हुनकर स्वागत केलखिन I कनियाँ ओहि महल में आराम सं रह लागलि I

बसुकिनी कहलखिन – सुहासिन क काज होइत अछि घर में इजोत रखनइ तें अहाँ नित्य दिन साँझ में दीअठि पर दीप जराउ I कनियाँ नित्य संध्या दीप लेसि दीअठि पर राखि देथिन I जकरा ओ दीअठि बुझैत छेलखिन ओ वासुकीनाग क फन छल I दीप गरम भेला सं वासुकी क चैन पाक लगलैन आ फोंका भय गेलनि,त ओ तमसा क कनियाँ क डसवा लेल उद्दत भेला I बसुकिनी हुनका रोक लागलि – सुहासिन क सुख साधारण नहि छैक I

जखन ओकर जन्म होइत अछि तखने सं बाप क चानि तबए लागौत ऐछ ,कि केहन एकर स्वभाव हेतई ,कहाँ घर-वर हेतई ,कोना अनचिन्हार संग संमय काटत ,सासुर में एकरा सुख होयत कि दुःख,यश होयत कि अपयश ,एही सब चिंता सं बाप सतत चिंतित रहैत ऐछ आ ओकर चानि गरम रहै ऐछ तें एकरा एतय दु र नहि कहिओक नइ त अपना अपयश होयत I काल्हि हम एकरा सासुर विदा क देवई तखन अहाँ क जे फुराय से करब I

दोसर दिन बसुकिनी कनियाँ क नुआ ,गहना ,लहठी ,सार -सामान द दुनू भई संगे सासुर लेल विदा कर लागलि त जाइत काल कनियाँ सं कहलखिन कि राति में सुतए काल इ मंत्र पढि लेब तखन सुतब ।

दीप- दिपहारा जागू हारा मोती मानिक करू धरा I
नाग बढतु , नागिन बढतु ,पाँचो बहिन बिसहरा बढ़थू I

बाल –बसंत भय बढ़तु ,डाढि -खोढि मौसी बढ़थू I
आशावरी पीसी बढ़थू ,सोना -मोना मामा बढ़थू I

राही शब्द लय सूती ,काँसा शब्द लय उठी I
होइत प्रात सोना क कटोरा में दूध -भात खाइ I

साँझ सूती ,प्रात उठी ,पटोर पहिरी ,कचोर ओढ़ी I
ब्रह्मा क देल कोदारी ,विष्णु चाँछल बाट I

भाग रे भाग कीङा –मकोङा ,ताहि बाते अओता I
ईश्वर महादेव ,पङए गरुङ के ठाठ I
आस्तिक आस्तिक आस्तिक II

बासुकी किछु दिन बॉद कनियाँ क डसवा लेल ओकर सासुर एलैथ I कनिया प्रतिदिन बसुकिनी देल मंत्र पढैत छलैथ जाहि सुनि बासुकी क हुनका डसवाक साहस नहि होइत छलनि I तीन राति बासुकी कनियाँ क डसबाक प्रयास केलैथ मुदा मंत्र सुनि ठमकि जाइत छेलैथ चारिम दिन बासुकी तमसा क हुनकर सासू क डसि लेलखिन आ तीन बेर अपन पूंछ पटकि क वापस भय गेला पूंछ पटकला सं घर में घर सोना –चांदी मानिक सब सं भरी गेल आ कनियाँ अपना बर संगे खुशी खुशी रह लागलि II

गोसाँउनि क कथा

मधस्थ एकटा राजा छलैथ जिनका एक सौ एक बेटी छेलनि I सब सं पैघ बेटी क नाम गोसाँउनि छल जे बङ सुन्दर और सुलक्षणी छेली I जखन ओ विवाह क योग्य भेलैथ त राजा विचारलैथ जे अपना बेटी क विवाह ओहन वर सं करि जकरा सौ टा भाय होएन जाहि सं सब बेटी एके घर जाय I सयोग सं नाहर राजा, जिनकर जेठ बेटा रहथिन बैरसी ,क एक सौ पुत्र छेलैन I

गोसाँउनी क विवाह बैरसी आ हुनकर सौ भाइ क विवाह सौ बहिन सं भेलनि I बैरसी क विवाह काल हुनका पाग सं एकटा साँप खसलानि जे बैरसी क पहिल पत्नी महादेव क बेटी लीली छलखिन I राजा मधस्थ क जखन पता चलल कि बैरसी विवाहित छैथ त ओ बैरसी आ लीली क डाबर में फेकवा देलैथ मुदा गोसाउनि क निहोरा पर कि ओ सौतिन संगे रही जेति राजा मानलखिन त मुदा बैरसी क श्राप देलखिन जे यदि ओ डेग पिछू पान क बिङिया,खाईत रहताह ,आ कोस पिछू कोनों तिरिया सं गप्प करैत रहताह त जीता नहि त मरि जयताह I

गोसाउनि क जखन मुह बज्जी होइत रहेंन त बीच में लीली बैस क गप्प कर लगलि जाहि सं गोसाउनि क बङ तामस भेलानि -ओ लीली क कहलखिन –
लीली गे ! तों आङ क झिल्ली ,तार -मसूर सन तोहर केस ।
भाग -भाग गे लीली !हट तों ,तोरा धर्मक छौ नहि लेस ।

दोसर दिन भरि आँगन बालू बिछा जाहि सं लीली नाहि आबि सकै ,बैरसी सं गप्प करय बैसली मुदा फेर लीली बालू पर कंगना सब राखि घर में पैस गेलि आ बैरसी सं गप्प कर लागलि I ओ फेर लीली क दुत्कारलखिन –
कारी गे ! कचनारी ,कारी भाग पसारी ।
कर्म दोष कि मेटतौ ,जानि कियो नहि पौतो ।

द्विरागमन भेला पर गोसाउनि सासुर ऐली ,एतय हुनका सासू तन बड मानथिन मुदा बैरसी हमेशा लीली में लागल रहैत छलैथ ओ सासू क इ बात कहलखिन त सासू कहलखिन जे –
सासू सोहागिनि चिनवार चढि बैसथु ।
साँए सोहागिन नहिरा जा बैसथु ।

चनाइ ओ बैरसी

गोसाउनि क बैरसी सं कखनो भेँट नहि होइन जाहि सं ओ हमेशा दुखी रहैत छलैथ ,हुनका कुनु संतान सेहो नहीं भेलैन I ओ अपन दुःख अपना दिओर चनाइ क कहलखिन I चनाइ एक टा उपाय सोच लेथ I ओ बैरसी क कहलखिन कि जे –अहाँ हमेशा घर बैसल रहैत छि ,कखनो घूमबाक लेल बाहर चलू I ताहि पर बैरसी कहलखिन जे अहाँ त जनैत छि जे हमरा ससुर क श्राप अछि जे ज्यो हमरा डेग पाछू बिरिया आ कोस पाछू तिरिया नहीं भेटत त हम मरि जायब I

त चनाइ कहलखिन अहाँ चलू त हम सब ध्यान राखब I चनाइ यात्रा क तैयारी में लागी गेलैथ I ओ पाँच पाँच कोस पर खेमा खसेलैथ जतए आराम कयल जा सके ,आ गोसाउनि क सिखा देलखिन जे अहाँ प्रतिदिन भेष बदली खेमा में रहब आ संग में पासा राखब I ओतय भाई सं भेट हैत आ ओतहि निसानी रूप में पासा जमीन में गाङी देब I

बैरसी जखन यात्रा में बिदा भेला त चनाइ एक मोटा पान ल लेलनि आ डेग डेग पर बैरसी क बिरिया पान देने जाथि I बैरसी कोस कोस पर जे तिरिया भेटनि टकरा टोकि दैत छेलखिन I जखन ओ पहिल कोस गेला ट हुनका भांग खेबाक मोन भेलनि I ओ चारि सखि क पैन भरैत देखलखिन त हुनका सब के कहलखिन–
बच्ची ! आं पिया गट-गट्ट I
बच्ची ! आं पिया गट-गट्ट I

सखि सब नहि बुझलखिन पहिल सखि कहलखिन
गँहीर कुआँ के निर्मल पानी ओ डोलंन के ठठ् I
हम भरिहें तों पीहें बटोहिया तब मचिहें गट गट्ट II

बैरसी कहलखिन –
नहि बच्ची ! आं पिया गट-गट्ट I

दोसर सखि कहलखिन –
तप्पत चूल्हा ,गरम कराही ,ओ धीबन के ठठ्ठ I
हम छानब तू खयबे बटोहिया ! तब मचिहें गट गट्ट II

बैरसी कहलखिन –
बच्ची ! एही नहि गट गट्ट बच्ची ! आन पिया गट गट I

तेसर कहलखिन –
लाल पलंग पर दरी बिछौना ,ओ तकिया के ठठ्ठ I
हम सुतब तू सुतिहे बटोहिया ! तब मचिहें गट गट्ट I

चारिम सखि बुझि गेलखिन आ कहलखिन –
लाल लछ्छी केर हरियर पत्ती ओ मरीच के ठठ्ठ I
हम पीसी तुं पीबें बटोहिया ,तब मचिहे गट गट्ट II

बैरसी कहलखिन –
हँ बच्ची ! एही कही गट गट्ट II
सब सखि मिली भाँग पीसी क बैरसी क देलखिन आ बैरसी ओ पीबी प्रस्सन भय आगु बढलैथ आ एक कोस बाद देखलखिन जे खङहोरी में एकटा स्त्री सीकी चिरैत छल I

बैरसी ओकरा टोकलखिन –
सीकी चिरैत छथि,डाँ र लिबैत छनि ,डाँर खसैत छनि केश I
एहन धनि ज्यो हमरो रहितथि ,सोने मढवितहूँ भेष II

स्त्री उत्तर देलखिन –
चक चक गोर ,पान मुख शोभनि ,सिर ओंठिया केश I
एहन पिया जो हमरहु रहितथि ,सोने मढबितौंहू भेष II

बैरसी तेसर कोस में एकटा स्त्री के चिपङी पाथैत देखलखिन त कहलखिन –
चिपङी थापय चटा पटी की , लट झिल्काएब केश I
कनखी भाँजए छन छन गोरी ,तोर पिया की बेस II

स्त्री उत्तर देलखिन –
पान खाए मुख फेरए डंटा ,हाथी मारि बनए बलवंता I
सिंह मारि करए शिकार ,ताहि पुरुष के हम बहु आरि II

चारिम कोस पर एक टा दुबर पातर स्त्री क बैरसी टोकलखिन –
सिकिया सन धनि पातरि ,फूल भरि अन्न ना खाय I
जँ छुबनि एक अंग, त लोचन टूटि –फूटि जाए II

स्त्री उत्तर देलखिन –
अमुआ फङए लदा-लदी, डारि लीबि लीबि जाय I
देखू पिया ! निः शंक, सं ऊपर दैब सहाय II

पाँचम कोस में साँझ परी गेल त बैरसी आराम करय लगला I ओतय राउटी क भेष में गोसाउनि एलखिन आ राति भरि बैरसी संग सुख केलैथ आ चनाइ क कह्लानुसार एक टा पासा पलंग तरी गाङि देलखिन I दोसर दिन फेर बैरसी घूम निकलले त एक टा स्त्री क पोखरि में नाहित देखलखिन त हुनका कहलखिन –
गोरी गे !दह गोरी ,दह पैसी कर सस्न्नान I
योवन तोहर कादो लोटाइ छउ ,कर ब्राह्मण के दान II

युवती कहलखिन –
ब्राह्मण रें तों छूौकङा ,बढि के भेल सियान I
लाख रुपैया जकरो उठल ,सेहो ने कयल लेवान II

बैरसी उत्तर देलखिन –
कोङल खेत ,महूआएल बीया ,पहिने खाएल सारिल सुगवा I
जनमए ,फूटए ,पाकल धान ,तब गिरहस्त करए लिवान II

बैरसी आगु बढला त जलखई लेल केरा किन कान्ह पर लटका लेलैथ I दोसर कोस पर एकटा युवती के खत्ता उप्छैत आ माछ मरैत देखलखिन त ओकटा कहलखिन –
खत्ता उप्छल ,खुत्ती उप्छल ,मारल रहू बूआर I
योवन तोहर कादो लोटाइ छउ ,टिकुली क कों श्रृंगार II

युवती कहलखिन –
पगिया तोहर लटपट भरिया ,धोती तोहर छितनार I
कान्ह पर केरा भार छउ ,डोपट कों श्रृंगार II

बैरसी लजा क आगु बढ़ला त तेसर कोस जा केरा खा पानि पीबय लेल पोखरि पर बानर क पानि पिबैत देखलखिन त ओहो बानर जेक पानि पीब लगला से देख युवती कहलखिन –
एक देखू अलवत्त ,पुरुष देखू समर्थ I
मुहँ ल क पानि पीबए ,तकर कि अर्थ II

बैरसी उत्तर देलखिन –
कानल खिजल हे सखि !काजर लागल हत्थ I
मुहँ लय पानि पीबी ,तकर थिक इ अर्थ II

चारिम कोस पर दु सखि गप्प करैत छेलि ,बैरसी क देखि पहिल सखि सं पूछलखिन –
खटियाँ पर सं पटिया देल ,सोलह फोंका तरबा भेल I
हम त पूछि हे सखि ,पंथ चलए से जीवए कोना II

दोसर सखि पुछलखिन –
गुल्ल्लरी सं एक निकलल पांखि ,से हम देखल अपने आँखि I
ताहि बसाते खसल पचास,गुल्लारि खाए से जीवए II

तेसर सखि पुछलखिन-
अरोसीन पड़ोसीन कुटलिन धान, ताहि धमकसँ बहीर भेल कान ।
हे स्वामी हम पुछई छी जे चुड़ा खाएं से जीवन कोना?

चारिम सखी बैरसी दिस देख क कहलखिन
दही काट नहु ओरे ओरे, खैंक गडल तहुँ पोड़े पोड़े ।
पण्डित कहलथुन हृदय बिचारी, एहि चारुमें के सुकुमारी?
बैरसीके एकर उत्तर नई पुरलैन ओ कहलि जे एकर उत्तर हम घुरती काल बिचारी क देब ।

ताबत पाँचम सखी कह बैसलि-
घर जएबें घर -डिंगर होयबे बहूँ सै अएबे सीखि ।
एतबा वचन जैं पहिने कहये , पएबे हमर पिरीति II

पाँचम कोश पर पहिनहि जकाँ बैरसी विश्राम कयलिन आ भेष बदलल गोसाउन संग राति बितौलनि । गोसाउनि पलंगक दोसर पौआ तरमें तोसर पासा  गाड़ि देलनि।तेसर दिन पुनः बैरंसी भोजन -भात कए घुमए निकलला चनाइ पानक मोटा लए संग लागि गेलाह । एक कोश गेला पर बैरसी देखलनि जे एक यवत्ती कदम्बक गाछ पर चढि ओकर ‘फूल तोड़ि रहल अछि ।

बैरसी ओहि युवती के टोकि देलनि-
कदम तोडए कदमावती, कंदमे लत्तर -फूल ।
मोर वियहुआ होइते कदमा ! ऊपर उठबितहूँ छत ॥

युवती गाछहि परसो उत्तर देलकि-
भल से भुलले रे परदेशिया ! जैँ सरदेशिया होय ।
खोपासे जे फूल शोभए, फल चुम्मा होय ॥”

दोसर कोश पर एक जनीके चम्पा तोडैत देखि बैरसी टोकि देलनि-
“कुसुम तोड्ए कुसुमावतो, कुसुम … लत्ते -फत्त ॥
मोर वियहुआ होइते कुसुमा, ऊपर उठवितहँ छत्ता ॥”

युवती गम्भीर भए उत्तर देलक-
“होय चम्पा  केर त्तीन गुन; सुन्दर,सुभग, सुवास ।
एक अबगुन मोहि लागि रही, भमरा न आबे पास ।”

तेसर कोश पर एक कवि-काठी, बेस गोरि नारी युवतीसँ बैरसीके पाला पड़लैन ।
ओ ओकर वर्णन कर्थि आ युवती आओर अधिक वर्णन करेबाक उत्साह देने जाइन॑ ।

बैरसी- “लाल झिंगुर, लाल सिन्दुर, लाल अड़हुल फूल रे ।
ताहूसँ जे लाल देखल गोरीक माथक सिन्दुर रे ॥

युवती- लाल दोहा कहलेँ भला, से ते भेलहु बदरंग रे ।
हरियर दोहा कहिते भला, तब ते लगितौ रंग रे ॥

बैरसी- हरियर  लत्ती, हरियर फत्ती, हरियर भादव धान रे ।
ताहू सै जे हरियर देखल गोरीक मूहंक पान रे ॥

युवती- हरियर दोहा कहलें भला, से ते भेलहु बदरंग रे ॥
कारी दोहा कहितें भला, तब त लगितौ रंग रे ॥

बैरसी- कारी आँजन, कारी भाँजन, कारी भादव मास रे ।
ताहू से जे कारी देखल, गौरी माथक केश रे ।

युवती- कारी दोहा कहले भला, से ते भेलहु बदरांग रे ।
‘पीयर दोहा कहिते भला, तब त लगितौ रंग रे ॥

बैरसी- पीयर बेंग पीयर ढाबुस, पीयर हरदिक रंग रे ।
ताहू से जे पीयर देखल, गोरीक नाक बेसरि रे ।

युवती- पीयर दोहा कहलें भला, से ते भेलहु बदरंग रे ।
ऊँच दोहा कहितें भला, तब त लगितौ रंग रे ॥

बैरसी- ऊँचे आरि ऊँचे धूर, ऊँचे त खरिहान रे ।
ताहू से जे ऊँच देखल, गोरिक भथियान रे ॥

युवती- ऊँच दोहा कहलेँ भला, से ते भेलहु बदरंग रे ।
नीच दोहा. कहितें भला, तब त॒ लगितौ रंग रे ॥

बैरसी- नीच आवर नीच डावर, नीच बीच पोखरि रे ।
ताहू से जे नोच देखल, गौरी आडः पोखरि रे ॥

बैरसीक बढ़ल देखि युवती दोसर दिस टारल-
“नीच दोहा कहलेँ भला, से ते भेलहु बदरंग रे ।
तीत दोहा कहितेँ भला, तब त लगितौर रंग रे ॥”

बैरसी- तीत नीम, तीत करैला, तीत हरदिक पात रे ।
ताहू सँ जें तीत देखलं, गौरी सौतिनक ठोर रे ॥

युवती- तीत दोहा कहलेँ भला, से ते भेलहू बदरंग रे ।
गोल दोहा कहितें भला, तब त लगितो रंग रे ॥

बैरसी- गोल नेबो, गोल अनार, गोल पुरैनिक पात रे ।
ताहू सँ जे गोल देखल, गोरिक  ‘दुनूः दूध रे ॥

युवती- गोल दोहा कहले भला, से ते भेलहुँ बदरंग रे ।
उज्जर दोहां कहितें भला, तब त लगितौ रंग रे ।

बैरसी-‘उज्जर पोठी, उज्जर मारा, उज्ज़र चन्ना माछ रे ।
ताहू सैँ जे उज्जर देखल, गोरी हाथक साँख रे ॥”

चुवती-“उज्जर दोहा कहले” भला, से ते भेलहु बदरंग रे ।
दशम दोहा कहिते भला, तब त लगितौ रंग रे ॥

बैरसी-‘दश दोहा दश फूल, दशः ग्राछक छाँह रे ।
ताहू सँँ जे दशः देखल; गौरी कर बिवाह रे ॥

युवती: गारि सुनि भागल  बैरसी आगू विदा भेला । बैरसी डेग -डेग पर पान आ’ कोस -कोस पर तिरिया सब स सनोरंजन करैत जाथि, तथा प्रत्येक पाँचम कोश पर खीमासे राति कए अज्ञात रूपे गोसाउनि सं सुख -बिलास करैत जाथि । गोसाउनि खुख-विलासक साक्षी पलंगक तरमे गाड़ने जाथि । चारिम पासा पलंग्गक चारू पौआ तर आ एक पासा बीच मे गाड़लनि ।

बैरसी पाँच दित बाटसे बिताए छठम दिन अपन छोट भाइ चनाइक़ संग राजधानी वापस अएलाह । लीली के गोसाउनि नहि सोहाइत रहथि ते हेतु ओ राति कए कतए रहैत छलीह तकर खोज-पुछारी नहि करैत रहथि ।

गोसाउनिक देह फाटब

थोड़े दिनक बाद गोसाउनि के पाँचटा बेटा भेलनि जकर नाम ओधु, कछु महाभाग, श्रीनाग, ओ नागश्री राखल गेल । लीलीक कोनो सन्तान नहि भेलइन किएक त हुनका में  धर्मक लेस नहि छलनि । गोसाउनि धर्मात्मा छलीह ते हेतु ओ भरल-पूरल भेलीह । गोसाउनि चनाइके आसीष देलनि-

“जाहि वन चन्ना चानन होए  ताहि बन होएत पलास ।
चानन सौरभ – सुरभित रहब, जँँ जे बहत बसात ॥”

लीलीकें ई सब सुनि बड़ डाह होइन, आ अपन सासुको कहथि- गे ताँती रानी ! तोहर चनुआ कनुआ बेटा हमरा दुख देत अछि ।लीली बैरसीक कान भरब आरम्भ कए देल | ओ कहलनि जे गोंसॉउनिक पाँचो बेटा चनाइक संग पाप कएलासँ भेलनि अछि। बैरसी सेहों गोसाउनिके नहिं मानैत छलाह आ’ नै हुनका स्मरण छलनि जे हुनका संग कहियों विलास कएल अछि ! बैरसीं एहि बातक जिज्ञासा गोसाउनि से कयला ।

गोसाउतनि  हुनका यात्रामे पाँचो सीमाक सुख-विलासक स्मरण देखाओल आ’ सबूतसे पलंगमे गाडल पाँचों पासा देखाओल । बैरसीकोँ गोसाउनिक सबूत पर विश्वास भ गेलनि ॥। ओ लीलीके बुझएबा लेल दूनू गोटाकों धर्मक परीक्षा: करबा लेल तैयार भेलाह । लीला के मालभोग चाड़र आ’ खेड्हीक दालि और गोसाउनि के चाउर आ पाथरक दालि रनबाक लेल देलनि लीला  गौरबाहि रहथि ।

बिना नियम-निष्ठासँ भानस कएल । ते” हेतु इनकर चाउर आ’ दालि नहि सिझलनि, किन्तु गोसाउनि धर्मात्मा छलीह ।ओ निष्ठास भानस. कएलनि । हुनका लोहाक चाउर आओर पाथरक दालि सुसिद्ध भए गेलनि। लोक सब ई देखि गोसाउनिक धर्मंक प्रशंसा कएलक । ई सुनि गोसाउनिक देह गौरबे फाटि गेलनि ।


परानाम

धन्यवाद !


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