मां दुर्गा का वेदों में विशेष स्थान है, और उनकी महाशक्ति और उपासना विभिन्न तरीकों से की जाती है । रात्रि सूक्तम एक प्रमुख वेदिक मंत्र है जो मां दुर्गा की पूजा के लिए प्रयुक्त होता है । यह सूक्त उनकी महिमा को व्यक्त करता है और उनकी कृपा और आशीर्वाद को आमंत्रित करने का काम करता है ।
(Vedokta Ratri Suktam) “रात्रि सूक्तम” ऋग्वेद के मण्डल 10, सूक्त 127 में प्राप्त होता है । इस सूक्त में मां दुर्गा को ‘रात्रि’ नाम से संबोधित किया गया है, जो कि रात की प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित हैं । इस सूक्त के माध्यम से उनकी आराधना और महिमा का गान किया जाता है ताकि भक्त उनके दिव्य सामर्थ्य को समझ सकें और उनके आशीर्वाद से लाभान्वित हो सकें ।
(Vedokta Ratri Suktam) रात्रि सूक्तम में मां दुर्गा की शक्तियों, सर्वव्यापितता, और परिपूर्णता का वर्णन किया गया है । यह सूक्त उनके असीम शक्तिस्वरूप की प्रशंसा करता है और उनके सामर्थ्य को स्तुति देता है । यहां पर मां दुर्गा की दिव्यता और उनके बलिदान का संदेश भी समाहित है, जिससे भक्त उनके उत्तम गुणों का अनुसरण कर सकें ।
इस प्रकार, मां दुर्गा का “रात्रि सूक्तम” (Vedokta Ratri Suktam) वेदों में एक महत्वपूर्ण स्तुति है जो उनकी शक्तियों और दिव्यता की महिमा को प्रकट करती है । भक्तों के द्वारा इसे पाठ करके मां दुर्गा की आराधना और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है ।
॥ अथ वेदोक्तं रात्रिसूक्तम् ॥
ॐ रात्रीत्याद्यष्टर्चस्य सूक्तस्य कुशिकः सौभरो रात्रिर्वा ।
भारद्वाजो ऋषिः, रात्रिर्देवता, गायत्री छन्दः, देवीमाहात्म्यपाठे विनियोगः ॥
ॐ रात्री व्यख्यदायती पुरुत्रा देव्यक्षभिः।
विश्वा अधि श्रियोऽधित ॥ १ ॥
ओर्वप्रा अमर्त्यानिवतो देव्युद्वतः ।
ज्योतिषा बाधते तमः ॥ २ ॥
निरु स्वसारमस्कृतोषसं देव्यायती ।
अपेदु हासते तमः ॥ ३ ॥
सा नो अद्य यस्या वयं नि ते यामन्नविक्ष्महि ।
वृक्षे न वसतिं वयः ॥ ४ ॥
नि ग्रामासो अविक्षत नि पद्वन्तो नि पक्षिणः ।
नि श्येनासश्चिदर्थिनः ॥ ५ ॥
यावया वृक्यं वृकं यवय स्तेनमूर्म्ये ।
अथा नः सुतरा भव ॥ ६ ॥
उप मा पेपिशत्तमः कृष्णं व्यक्तमस्थित ।
उष ऋणेव यातय ॥ ७ ॥
उप ते गा इवाकरं वृणीष्व दुहितर्दिवः ।
रात्रि स्तोमं न जिग्युषे ॥ ८ ॥
॥ इति ऋग्वेदोक्तं रात्रिसूक्तं समाप्तं ॥
॥ Vedokta Ratri Suktam Meaning in Hindi | वेदोक्त रात्रिसूक्त ॥
ॐ रात्रि इत्यादि आठ ऋचाओं वाले सूक्तके कुशिक सौभर रात्रि अथवा भारद्वाज ऋषि हैं, रात्रि देवता है, गायत्री छन्द है, देवीमाहात्म्यके पाठ में इसका विनियोग किया जाता है ।
महत्तत्त्वादिरूप व्यापक इन्द्रियों से सब देशों में समस्त वस्तुओंको प्रकाशित करनेवाली ये रात्रि रूपा देवी अपने उत्पन्न किये हुए जगत्के जीवों के शुभाशुभ कर्मों को विशेष रूप से देखती हैं और उनके अनुरूप फलकी व्यवस्था करने के लिये समस्त विभूतियोंको धारण करती हैं ॥ १ ॥
ये देवी अमर हैं और सम्पूर्ण विश्व को, नीचे फैलने वाली लता आदि को तथा ऊपर बढ़ने वाले वृक्षों को भी व्याप्त करके स्थित हैं । इतना ही नहीं, ये ज्ञानमयी ज्योति से जीवों के अज्ञानान्धकारका नाश कर देती हैं ॥ २ ॥
परा चिच्छक्तिरूपा रात्रि देवी आकर अपनी बहिन ब्रह्मविद्यामयी उषा देवी को प्रकट करती हैं, जिससे अविद्यामय अन्धकार स्वत: नष्ट हो जाता है ॥ ३ ॥
वे रात्रि देवी इस समय मुझ पर प्रसन्न हों, जिनके आने पर हम लोग अपने घरों में सुख से सोते हैं-ठीक वैसे ही, जैसे रात्रि के समय पक्षी वृक्षों पर बनाये हुए अपने घोंसलों में सुख पूर्वक शयन करते हैं ॥ ४ ॥
उस करुणामयी रात्रि देवी के अङ्क में सम्पूर्ण ग्रामवासी मनुष्य, पैरों से चलने वाले गाय, घोड़े आदि पशु, पंखों से उड़ने वाले पक्षी एवं पतंग आदि, किसी प्रयोजन से यात्रा करने वाले पथिक और बाज आदि भी सुख पूर्वक सोते हैं ॥ ५ ॥
हे रात्रिमयी चिच्छक्ति! तुम कृपा करके वासनामयी वृकी तथा पापमय वृक को हम से अलग करो । काम आदि तस्कर समुदाय को भी दूर हटाओ । तदनन्तर हमारे लिये सुख पूर्वक तरने योग्य हो जाओ-मोक्षदायिनी एवं कल्याण कारिणी बन जाओ ॥ ६ ॥
हे उषा! हे रात्रि की अधिष्ठात्री देवी! सब ओर फैला हुआ यह अज्ञानमय काला अन्धकार मेरे निकट आ पहुँचा है । तुम इसे ऋणकी भाँति दूर करो-जैसे धन देकर अपने भक्तों के ऋण दूर करती हो उसी प्रकार ज्ञान देकर इस अज्ञान को भी हटा दो ॥ ७ ॥
हे रात्रि देवी! तुम दूध देनेवाली गौ के समान हो । मैं तुम्हारे समीप आकर स्तुति आदि से तुम्हें अपने अनुकूल करता हूँ । परम व्योमस्वरूप परमात्माकी पुत्री ! तुम्हारी कृपा से मैं काम आदि शत्रुओं को जीत चुका हूँ, तुम स्तोम की भाँति मेरे इस हविष्य को भी ग्रहण करो ॥ ८ ॥
॥ वेदोक्त रात्रिसूक्त सम्पूर्ण ॥

धन्यवाद !
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