शिव तांडव स्तोत्र | Shiv Tandava Stotram

shiv tandav stotram Lyrics in Hindi

शिव तांडव स्तोत्र ब्रह्मांड के सबसे ज्ञानी और सबसे बडे शिव भक्त रावण द्वारा रचित है । जब अपनी शक्ति के अहंकार में रावण ने कैलाश पर्वत को उठाने की कोशिश की थी, तब भगवान शिव ने अपने पांव के अंगूठे से कैलाश को दबा दिया । कैलाश पर्वत तो हिला नहीं पर रावण के हाथ दब गए । इसके पश्चात भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने इस शिव तांडव स्तोत्र को लिखा ।

ये स्तोत्र संस्कृत भाषा में है जो की भगवान शिव के सुंदरता और शक्ति का वर्णन करता है । शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव को बहुत प्रिय है । ये स्तोत्र भगवान शिव की स्तुति करते हुए रचना में बहुत ही उच्च ऊर्जा और सकारात्मक शब्दों का प्रयोग किया गया है । शब्द और लय बहुत ही कठिन हैं । कोई भी शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कर सकता है । यह निश्चित रूप से आपको शाश्वत आनंद और सकारात्मक होने की अनुभूति देगा ।

॥ shiv tandava stotram Lyrics in Sanskrit ॥

॥ शिव तांडव स्तोत्र हिंदी में ॥

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले ।
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ॥
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं ।
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥ १ ॥

जिन्होंने जटारूपी अटवी (वन) से निकलती हुई । गंगा जी के गिरते हुए प्रवाहों से, पवित्र किये गये गले में सर्पो की लटकती हुई विशाल माला को धारण कर, डमरूके डम -डम शब्दों से मण्डित, प्रचण्ड ताण्डव (नृत्य) किया, वे शिवजी हमारे कल्याणका विस्तार करें, हम सबको संपन्नता प्रदान करें । जिन शिव जी की सघन, वनरूपी जटा से प्रवाहित हो माॅ गंगा जी की धाराएं, उनके कंठ को प्रक्षालित करती हैं । जिनके गले में, लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डमरू डम -डम बजा कर, प्रचण्ड ताण्डव कर रहे हैं, वे शिव जी हमारा कल्याण करें ।

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी_ ।
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ॥
धगद्धगद्धगज्जलल्ललाटपट्टपावके ।
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥ २ ॥

जिनका मस्तक जटा रूपी कड़ाह में, वेग से घूमती हुई गंगा की चंचल तरंग -लताओं से सुशोभित हो रहा है । ललाटाग्नि धधक् -धधक् कर जल रही है, शीश पर बाल चन्द्रमा विराजमान हैं, उन (भगवान् शिव) में मेरा निरन्तर अनुराग हो । जिन शिव जी के जटाओं में अतिवेग से विलास पुर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरे इनके शीश पर लहरा रहीं हैं । जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचण्ड ज्वाला धधक -धधक कर प्रज्वलित हो रहीं हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित भगवान शिव जी में मेरा प्रेम प्रतिक्षण बढता रहे । भगवान शिव जी में मेरी भक्ति प्रतिक्षण बढ़ती रहे ।

धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर ।
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ॥
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि ।
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥ ३ ॥

गिरिराज किशोरी (पार्वती) के विलासकाल उपयोगी शिरोभूषण से, समस्त दिशाओंको प्रकाशित होते देख जिनका मन आनन्दित हो रहा है, जिनकी निरन्तर कृपादृष्टि से कठिन आपत्तिका भी निवारण हो जाता है, ऐसे दिगम्बर तत्त्वमें मेरे मन विनोद करे । जो पर्वतराज सुता (पार्वती जी) के विला समय रमणिय कटाक्षों में परम आनन्दित चित्त रहते हैं । जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि एवं प्राणी गण वास करते हैं, तथा जिनके कृपा दृष्टि मात्र से भक्तों की समस्त विपत्तियां दूर हो जाती हैं । ऐसे दिगम्बर शिव जी की आराधना से, मेरा चित्त सर्वदा आन्दित रहे ।

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा ।
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ॥
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे ।
मनो विनोदमद्‍भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥ ४ ॥

जिनके जटा जूटवर्ती भुजंगों का, फणों की मणियों का फैलता हुआ । पिंगल प्रभापुञ्ज दिशा रूपिणी अंगनाओं के, मुख पर कुमकुम राग का अनुलेप कर रहा है । मतवाले हाथीओ के हिलते हुए चमड़ो का उत्तरीय वस्त्र (चादर) धारण करने से स्निग्धवर्ण हुए भूतनाथ में मेरा चित्त अद्भुत विनोद करे । जिनके जटाओं में लिपटे सर्पों के फण की मणियों के प्रकाश, पीले वर्ण प्रभा -समूह रूप केसर के कांति से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और जो गज चर्म से विभूषित हैं । मैं उन शिव जी की भक्ति में ही आन्दित रहूँ । जो सभी प्राणियों का आधार एवं रक्षक हैं ।

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर ।
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ॥
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक ।
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥ ५ ॥

जिनकी चरण पादुकाएँ इन्द्र आदि समस्त देवताओं के (प्रणाम करते समय) मस्तक वर्ती (सिर के ऊपरी) कुसुमों के धूलि से रंजित हो रही हैं । नागराज के हार से बँधी हुई जटावाले भगवान् चन्द्रशेखर मेरे लिये चिरस्थायिनी सम्पत्ति के साधक हों । जिन शिव जी के चरण इन्द्र -विष्णु आदि देवताओं के मस्तक के पुष्पों के धूल से रंजित हैं (जिन्हे देवता गण अपने सर के पुष्प अर्पन करते हैं), जिनकी जटा पर लाल सर्प विराजमान है । वो चन्द्रशेखर हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें ।

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा ।
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ॥
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं ।
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥ ६ ॥

जिसने ललाट -वेदी पर प्रज्वलित हुई, अग्नि के स्फुलिंगों (ज्वाला) के तेज से कामदेव का नष्ट कर डाला था । जिसे इन्द्र नमस्कार किया करते हैं, चन्द्रमा की कला से सुशोभित मुकुट वाला वह उन्नत विशाल ललाट वाला जटिल मस्तक हमारी सम्पत्ति का साधक हो । जिन शिव जी ने इन्द्र आदि देवताओं का गर्व दहन करते हुए । कामदेव को अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया, तथा जो सभी देवों द्वारा पूज्य हैं, तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे मुझे सिद्दि प्रदान करें ।

करालभालपट्टिकाधगद्‍धगद्‍धगज्ज्वलद्_ ।
धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ॥
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक ।
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥ ७ ॥

जिन्होंने अपने विकराल भाल पट्ट पर, धधक -धधक कर जलती हुई अग्नि में प्रचण्ड कामदेव की आहुति दे दी थी । प्रकृति पर चित्रकारी करने में अति चतुर, एकमात्र शिल्पकार भगवान शिव जी में मेरी धारणा लगी रहे । जिनके मस्तक से धधक -धधक करती प्रचण्ड ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया तथा जो शिव प्रकृति पर चित्रकारी करने में अति चतुर है । शिव जी के प्रीति मेरी भक्ति अटल हो ।

नवीनमेघमण्डली निरुद्‍धदुर्धरस्फुरत्_ ।
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ॥
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः ।
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥ ८ ॥

जिनके कण्ठ में नवीन मेघ माला घिरी हुई, अमावस्या की आधी रात के समय फैलते हुए । दुरूह अन्धकार की समान श्यामता अंकित है । जो कि गज चर्म लपेटे हुए है । संसारभार को धारण करनेवाले चन्द्रमा (के सम्पर्क) से मनोहर कान्तिवाले भगवान् शंकर मेरी सम्पत्ति का विस्तार करें। जिनका कण्ठ नवीन मेंघों की घटाओं से परिपूर्ण आमवस्या की रात्रि के सामान काला है । जो कि गज-चर्म, गंगा एवं बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं । तथा जो कि जगत का बोझ धारण करने वाले हैं, वे शिवजी हमे सभी प्रकार की सम्पनता प्रदान करें ।

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा_ ।
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ॥
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं ।
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥ ९ ॥

जिनका कण्ठ देश खिले हुए नील कमल समूह की श्याम प्रभा का अनुकरण करने वाली हरिणी की सी छवि वाले चिह्न से सुशोभित है, तथा जो कामदेव, त्रिपुरा, भव (संसार), दक्ष -यज्ञ, गजासुर, अन्धकासुर और यमराज का भी संहार करने वाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ । जिनका कण्ठ और कन्धा पूर्ण खिले हुए नीलकमल की फैली हुई सुन्दर श्याम प्रभा से सुशोभित है । जो कामदेव और त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दु:खो को काटने वाले, दक्ष यज्ञ विनाशक, गजासुर एवं अन्धकासुर के संहारक हैं, तथा जो मृत्यु को वश में करने वाले हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ ।

अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी_ ।
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् ॥
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं ।
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥ १० ॥

जो अभिमान रहित पार्वती की कला रूप कदम्बमंजरी के मकरन्द स्रोत की बढ़ती हुई माधुरी के पान करने वाले मधुप है । तथा कामदेव, त्रिपुर, भव, दक्ष -यज्ञ, गजासुर, अन्धकासुर और यमराज का भी अन्त करने वाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ । जो कल्यानमय, अविनाशि, समस्त कलाओं के रस का अस्वादन करने वाले हैं । जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं । त्रिपुरासुर, गजासुर, अन्धकासुर के सहांरक, दक्षयज्ञविध्वसंक तथा स्वयं यमराज के लिए भी यम स्वरूप हैं । मैं उन शिव जी को भजता हूँ ।

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्‍भुजङ्गमश्वसद्_ ।
विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ॥
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल_ ।
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः ॥ ११ ॥

जिसके मस्तक पर बड़े वेग के साथ घूमते हुए भुजंग के फुफकारने से ललाट की भयंकर अग्नि क्रमशः धधकती हुई फैल रही है । धीमी -धीमी बजते मृदंग के गम्भीर मंगल घोष के क्रमानुसार जिसका प्रचण्ड ताण्डव हो रहा है । उस भगवान् शंकर की जय हो! अतयंत वेग से भ्रमण कर रहे सर्पों के फूफकारने से क्रमश: ललाट में बढी प्रचंड अग्नि के मध्य मृदंग की मंगलकारी धीमी -धीमी ध्वनि के साथ ताण्डव नृत्य में लीन शिव जी सर्व प्रकारो से सुशोभित हो रहे हैं ।

स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर् ।
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ॥
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः ।
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥ १२ ॥

पत्थर और सुन्दर बिछौनों में, सांप और मोतियों की माला में, बहुमूल्य रत्न तथा मिट्टी के ढेले में, मित्र या शत्रु पक्ष में, तृण या कमल लोचना तरुणी में, प्रजा और पृथ्वी के महाराज में समान भाव रखता हुआ । मैं कब शिव जी को भजूँगा? कठोर पत्थर एवं कोमल शय्या, सर्प एवं मोतियों की मालाओं, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के टुकडों, शत्रु एवं मित्रों, राजा तथा प्रजा, तिनकों तथा कमलों सभी पर समान दृष्टि रखने वाले, शिव को मैं भजता हूँ ।

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् ।
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरस्थमञ्जलिं वहन् ॥
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः ।
शिवेति मन्त्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम् ॥ १३ ॥

सुन्दर ललाटवाले भगवान चन्द्रशेखर में दत्तचित्त हो, अपने कुविचारों को त्यागकर, गंगा जी तटवर्ती निकुंज के भीतर रहता हुआ, सिर पर हाथ जोड़ डबडबायी हुई विह्वल आँखों से शिव मन्त्र का उच्चारण करता हुआ । मैं कब सुखी होऊँगा । कब मैं गंगा जी के कछारगुञ में निवास करता हुआ निष्कपट हो, सिर पर अंजली धारण कर चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिव जी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा ।

इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं ।
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ॥
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं ।
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ॥ १४ ॥

जो मनुष्य इस प्रकार से उक्त उत्तमोत्तम स्तोत्र का नित्य पाठ, स्मरण और वर्णन करता है । वह सदा शुद्ध रहता है और शीघ्र ही सुरगुरु श्री शंकर जी की अच्छी भक्ति प्राप्त कर लेता है । वह विरुद्धगतिको प्राप्त नहीं होता; क्योंकि शिवजीका भक्तिपूर्वक चिन्तन प्राणिवर्गके मोह का नाश करनेवाला है । इस उत्त्मोत्त्म शिव ताण्डव स्त्रोत को नित्य पढने या श्रवण करने मात्र से प्राणि पवित्र हो जाता है, और परमगुरु शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है ।

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः ।
शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ॥
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां ।
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥ १५ ॥

सायंकाल में पूजा समाप्त होने पर रावणके गाये हुए इस शम्भु पूजन सम्बन्धी स्तोत्र का जो पाठ करता है । भगवान् शिव उस मनुष्य को रथ, हाथी, घोड़ों से युक्त सदा स्थिर रहनेवाली अनुकूल सम्पत्ति प्रदान करते हैं । प्रात: शिवपुजन के अंत में इस रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त रथ, गज, घोडा आदि सम्पदा से, सर्वदा युक्त रहता है ।

॥ इति श्री तांडव स्तोत्र स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥


॥ shiv tandava stotram Lyrics in English॥

Jatatavigalajjala pravahapavitasthale ।
Galeavalambya lambitam bhujangatungamalikam ॥
Damad damad damaddama ninadavadamarvayam ।
Chakara chandtandavam tanotu nah shivah shivam ॥ 1 ॥

Jata kata hasambhrama bhramanilimpanirjhari ।
Vilolavichivalarai virajamanamurdhani ॥
Dhagadhagadhagajjva lalalata pattapavake ।
Kishora chandrashekhare ratih pratikshanam mama ॥ 2 ॥

Dharadharendrana ndinivilasabandhubandhura ।
Sphuradigantasantati pramodamanamanase ॥
Krupakatakshadhorani nirudhadurdharapadi ।
Kvachidigambare manovinodametuvastuni ॥ 3 ॥

Jata bhujan gapingala sphuratphanamaniprabha ।
Kadambakunkuma dravapralipta digvadhumukhe ॥
Madandha sindhu rasphuratvagutariyamedure ।
Mano vinodamadbhutam bibhartu bhutabhartari ॥ 4 ॥

Sahasra lochana prabhritya sheshalekhashekhara ।
Prasuna dhulidhorani vidhusaranghripithabhuh ॥
Bhujangaraja malaya nibaddhajatajutaka ।
Shriyai chiraya jayatam chakora bandhushekharah ॥ 5 ॥

Lalata chatvarajvaladhanajnjayasphulingabha ।
Nipitapajnchasayakam namannilimpanayakam ॥
Sudha mayukha lekhaya virajamanashekharam ।
Maha kapali sampade shirojatalamastu nah ॥ 6 ॥

Karala bhala pattikadhagaddhagaddhagajjvala ।
Ddhanajnjaya hutikruta prachandapajnchasayake ॥
Dharadharendra nandini kuchagrachitrapatraka ।
Prakalpanaikashilpini trilochane ratirmama ॥ 7 ॥

Navina megha mandali niruddhadurdharasphurat ।
Kuhu nishithinitamah prabandhabaddhakandharah ॥
Nilimpanirjhari dharastanotu krutti sindhurah ।
Kalanidhanabandhurah shriyam jagaddhurandharah ॥ 8 ॥

Praphulla nila pankaja prapajnchakalimchatha ।
Vdambi kanthakandali raruchi prabaddhakandharam ॥
Smarachchidam purachchhidam bhavachchidam makhachchidam ।
Gajachchidandhakachidam tamamtakachchidam bhaje ॥ 9 ॥

Akharvagarvasarvamangala kalakadambamajnjari ।
Rasapravaha madhuri vijrumbhana madhuvratam ॥
Smarantakam purantakam bhavantakam makhantakam ।
Gajantakandhakantakam tamantakantakam bhaje ॥ 10 ॥

Jayatvadabhravibhrama bhramadbhujangamasafur ।
Dhigdhigdhi nirgamatkarala bhaal havyavat ॥
Dhimiddhimiddhimidhva nanmrudangatungamangala ।
Dhvanikramapravartita prachanda tandavah shivah ॥ 11 ॥

Drushadvichitratalpayor bhujanga mauktikasrajor ।
Garishtharatnaloshthayoh suhrudvipakshapakshayoh ॥
Trushnaravindachakshushoh prajamahimahendrayoh ।
Sama pravartayanmanah kada sadashivam bhajamyaham ॥ 12 ॥

Kada nilimpanirjhari nikujnjakotare vasanh ।
Vimuktadurmatih sada shirah sthamajnjalim vahanh ॥
Vimuktalolalochano lalamabhalalagnakah ।
Shiveti mantramuchcharan sada sukhi bhavamyaham ॥ 13 ॥

Imam hi nityameva muktamuttamottamam stavam ।
Pathansmaran bruvannaro vishuddhimeti santatam ॥
Hare gurau subhaktimashu yati nanyatha gatim ।
Vimohanam hi dehinam sushankarasya chintanam ॥ 14 ॥

Puja vasanasamaye dashavaktragitam ।
Yah shambhupujanaparam pathati pradoshhe ॥
Tasya sthiram rathagajendraturangayuktam ।
Lakshmim sadaiva sumukhim pradadati shambhuh ॥ 15 ॥

॥ Ithi Sri Shiva Tandava Stotram ॥


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परानाम

धन्यवाद !


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