शनिवार व्रत कथा | Shanivar Vrat Katha

शनिवार व्रत कथा हिंदी में

शनि ग्रह को अन्य ग्रहों से अलग इसलिए माना जाता है क्योंकि इसका प्रभाव जीवन में कठिनाइयों को आने की संभावना बढ़ा देता है । लेकिन शनि ग्रह के उपाय और शनिवार के व्रत से इसके दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है ।

शनिवार का व्रत भगवान शनिदेव की पूजा एवं अराधना का एक महत्वपूर्ण तरीका है । शनिवार का दिन उनके समर्पित होता है और विशेष रूप से उनके व्रत करने से शनि ग्रह के दुष्प्रभाव को दूर करने में मदद मिलती है ।

शनिवार व्रत करने से व्यक्ति की जिंदगी में उपयादित संशोधन होता है और उसकी मानसिक शक्ति मजबूत होती है । इस व्रत के माध्यम से भक्त भगवान शनिदेव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं ।

शनिवार व्रत का महत्व उसकी धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के साथ- साथ उसके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के प्रति भक्त की श्रद्धा को दर्शाता है । यह व्रत उन लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण होता है जो शनि ग्रह के दुष्प्रभावों से पीड़ित हैं ।

Shanivar Vrat Katha in Hindi

शनिवार व्रत कथा कुछ इस तरह है की जब ब्रह्मांड के सभी नवग्रहों के बीच विवाद हो गया था । वह सब यह जानना चाहते थे कि उनमें से सबसे बड़ा कौन है । जिसके लिए वह देवराज इंद्र के पास गए । इंद्र ने उन्हें राजा विक्रमादित्य के पास जाने के लिए कहा । यह सभी नवग्रह राजा विक्रमादित्य के पास अपनी समस्या लेकर गए ।

राजा विक्रमादित्य जानते थे कि अगर वह इन नवग्रहों में से किसी एक को छोटा बताएंगे तो वह कुपित हो जाएगा । लेकिन वह अन्याय नहीं करना चाहते थे । इस समस्या का हल निकालने के लिए राजा विक्रमादित्य ने नव धातुओं से नौ सिंहासन बनाया और हर एक सिंहासन के सामने एक-एक ग्रह को खड़ा कर दिया ।

ऐसे में शनिदेव को राजा विक्रमादित्य ने अंतिम स्थान दे दिया जिसकी वजह से शनिदेव गुस्सा हो गए और उन्हें  राजा विक्रमादित्य को चेतावनी देकर चले गए । धीरे धीरे राजा विक्रमादित्य की कुंडली में साढ़ेसाती का प्रकोप बढ़ने लग गया । एक दिन घोड़े का सौदागर बनकर शनिदेव राजा के पास गए ।

कई घोड़ों में राजा विक्रमादित्य को एक घोड़ा पसंद आया । जैसे ही वह उस घोड़े पर बैठे वैसे ही वह घोड़ा उन्हें जंगल में लेकर चला गया । जंगल में राजा विक्रमादित्य कहीं खो गए और भटकते- भटकते नए देश में चले गए । यहां राजा को एक सेठ मिला । राजा के आने से सेठ का सामान बिकना शुरू हो गया जिससे सेठ बहुत खुश हो गया । वह राजा को भोजन करवाने ले गया ।

सेठ के घर में एक खूंटी थी जिस पर हार लटका हुआ था । राजा ने देखा कि वह खूंटी उस हार को निगल रही है । जैसे ही राजा ने अपना खाना खत्म किया वैसे ही वह खूंटी ने हार को पूरा निगल लिया । जब सेठ को वह हार नहीं मिला तब उसने राजा विक्रमादित्य को अपने राजा के पास कैद करवा दिया ।

सेठ के राजा ने राजा विक्रमादित्य को दोषी बताया और उनके हाथ काट दिए । जिसके बाद राजा विक्रमादित्य को एक तेली अपने घर ले गया और उन्हें बैल हांकने का काम दे दिया । धीरे- धीरे करके साढ़े सात साल पूरे हो गए और शनि की महादशा भी समाप्त हो गई । साढ़े साती पूरे होने के बाद राजा विक्रमादित्य ने एक राग छेड़ा जिसके बाद राज्य की राजकुमारी ने राजा से शादी करने के लिए प्रण लिया ।

राजकुमारी को खूब समझाया गया लेकिन वह किसी की बात नहीं मानी और राजा विक्रमादित्य से उसकी शादी हो गई । रात में जब राजा विक्रमादित्य सो रहे थे तब उनके सपने में शनिदेव आए । शनिदेव ने कहा कि तुमने मुझे सबसे छोटा ठहराया था अब देखो मेरा ताप और‌ प्रकोप ।

राजा विक्रमादित्य ने शनिदेव से माफी मांगी और शनिवार व्रत कथा की जिसके बाद शनिदेव ने उन्हें माफ कर दिया । सुबह तक सबको राजा और शनि देव की बात पता चल गई थी जिसकी वजह से व्यापारी उनसे माफी मांगने लगा । व्यापारी ने राजा को वापस अपने घर आने का निमंत्रण दिया ।

जैसे ही राजा ने खाना खाना शुरू किया वैसे ही खूंटी ने हार उगल दिया । जिसकी वजह से सब को यह पता चल गया कि राजा विक्रमादित्य ने चोरी नहीं की थी । व्यापारी ने अपनी बेटी की शादी राजा विक्रमादित्य से करवाई जिसके बाद राजा विक्रमादित्य अपनी दोनों रानियों के साथ उज्जैन वापस आ गए । और हर शनिवार को शनिवार व्रत कथा अपने पुरे परीवार के साथ सुनता और काहता था ।


parnam

धन्यवाद !


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