रविवार व्रत कथा | Ravivar vrat katha

 रविवार व्रत कथा हिंदी में 

Ravivar vrat katha in Hindi

रविवार व्रत भगवान सूर्य के लिए किया जाता है । सुख -समृद्धि, धन -संपति, शत्रुओं से रक्षा के लिए रविवार का व्रत सर्वश्रेष्ठ है । यह व्रत कथा सुनने या करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है ।

रविवार व्रत कथा:

एक बुढ़ि औरत थी । वो नियम से प्रति रविवार को सबेरे स्नान आदि कर घर को गोबर से लीप भोजन तैयार कर भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन करती थी । ऐसा व्रत करने से उसका घर अनेक प्रकार के धन धान्य से पूर्ण था । भगवान की कृपा से घर में किसी प्रकार का विघ्न या दुःख नहीं था । सब प्रकार से घर में आनन्द रहता था ।

उस बूढ़ी औरत के सुखों को देखकर उसकी पड़ोसन उससे जलने लगी । बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी । अतः वह अपनी पड़ोसन के गाय का गोबर लाती थी । पड़ोसन ने कुछ सोच कर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया । रविवार को गोबर ना मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी । आंगन ना लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया सूर्य अस्त होने पर बुढ़िया भूखी प्यासी सो गई । इस प्रकार उसने निराहार व्रत किया ।

रात्रि में भगवान ने उसे स्वप्न दिया और भोजन न बनाने तथा लगाने का कारण पूछा । वृद्घा ने गोबर न मिलने का कारण सुनाया तब भगवान ने कहा कि माता हम तुमको ऐसी गौ देते है जिससे सभी इच्छाएं पूर्ण होती है । क्योंकि तुम हमेशा रविवार को गौ के गोबर से लीपकर भोजन बनाकर मेरा भोग लगाकर खुद भोजन करती हो । इससे मैं खुश होकर तुमको वरदान देता हूँ ।

निर्धन को धन और बांझ स्त्रियों को पुत्र देकर दुःखों को दूर करता हूँ तथा अन्त समय में मोक्ष देता हूँ । स्वप्न में ऐसा वरदान देकर भगवान तो अन्तर्दान हो गए और वृद्घा की आँख खुली तो वह देखती है कि आँगन में एक अति सुन्दर गौ और बछड़ा बँधे हुए है ।

वह गाय और बछड़े को देखकर अति प्रसन्न हुई और उसको घर के बाहर बाँध दिया और वहीं खाने को चारा डाल दिया । जब उसकी पड़ोसन बुढ़िया ने घर के बाहर एक अति सुन्दर गौ और बछड़े को देखा तो द्घेष के कारण उसका हृदय जल उठा और उसने देखा कि गाय ने सोने का गोबर किया है । तो वह उस गाय का गोबर ले गई और अपनी गाय का गोबर उसकी जगह रख गई ।

वह नित्यप्रति ऐसा ही करती रही और सीधी -साधी बुढ़िया को इसकी खबर नहीं होने दी । तब सर्वव्यापी ईश्वर ने सोचा कि चालाक पड़ोसन के कर्म से बुढ़िया ठगी जा रही है । तो ईश्वय ने संध्या के समय अपनी माया से बड़े जोर की आँधी चला दी । बुढ़िया ने आँधि के भय से अपनी गौ को भीतर बाँध लिया । प्रातःकाल जब वृद्गा ने देखा कि गौ ने सोने का गोबर दिया तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही और वह प्रतिदिन गऊ को घर के भीतर ही बाँधने लगी ।

उधर पड़ोसन ने देखा कि बुढ़िया गऊ को घर के भीतर बांधने लगी है । और उसका सोने का गोबर उठाने गा दैँव नहीं चलता तो वह ईर्ष्या और डाह से जल उठी और कुछ उपाय न देख पड़ोसन ने उस देश के राजा की सभा में जाकर कहा महाराज मेरे पड़ोस में एक वृद्घा के पास ऐसा गऊ है । जो आप जैसे राजाओं के ही योग्य है, वह नित्य सोने का गोबर देती है । आप उस सोने से प्रजा का पालन करिये । वह वृद्घा इतने सोने का क्या करेगी ।

राजा ने यह बात सुनकर अपने दूतों को वृद्घा के घर से गऊ लाने की आज्ञा दी । वृद्घा प्रातः ईश्वर का भोग लगा भोजन ग्रहण करने जा ही रही थी कि राजा के कर्मचारी गऊ खोलकर ले गये । वृद्घा काफी रोई -चिल्लाई किन्तु कर्मचारियों के समक्ष कोई क्या कहता । उस दिन वृद्घा गऊ के वियोग में भोजन न खा सकी और रात भर रो -रो कर ईश्वर से गऊ को पुनः पाने के लिये प्रार्थना करती रही ।

उधर राजा गऊ को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ लेकिन सुबह जैसे ही वह उठा, सारा महल गोबर से भरा दिखाई देने लगा । राजा यह देख घबरा गया । भगवान ने रात्रि में राजा को स्वप्न में कहा कि हे राजा । गाय वृद्घा को लौटाने में ही तेरा भला है । उसके रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर मैंने उसे गाय दी थी । प्रातः होते ही राजा ने वृद्घा को बुलाकर बहुत से धन के साथ सम्मान सहित गऊ बछड़ा लौटा दिया ।

उसकी पड़ोसिन को बुलाकर उचित दण्ड दिया । इतना करने के बाद राजा के महल से गन्दगी दूर हुई । उसी दिन से राजा ने नगरवासियों को आदेश दिया कि राज्य की तथा अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये रविवार का व्रत रखा करो ।  व्रत करने से नगर के लोग सुखी जीवन व्यतीत करने लगे । कोई भी बीमारी तथा प्रकृति का प्रकोप उस नगर पर नहीं होता था । सारी प्रजा सुख से रहने लगी ।


pranam

धन्यवाद !


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