॥ माता शैलपुत्री | Mata Shailpitri ॥
माँ दुर्गा का प्रथम रूप
“मां दुर्गा के पहले स्वरूप को ‘शैलपुत्री’ (Mata Shailpitri) कहा जाता हैं । पुत्री के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर उत्पन्न होने से इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा । नवरात्र पूजन में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है । इनका वाहन वृषभ है । देवी ने दाएँ हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएँ हाथ में कमल सुशोभित है।”
पूजा विधि
सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाए । फिर उस पर मां शैलपुत्री (Shailpitri) की तस्वीर को स्थापित करें । उस चौकी के लाल वस्त्र के ऊपर केशर से ‘शं’ लिखें और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटका रखें । तत्पश्चात हाथ में लाल पुष्प लेकर मां शैलपुत्री को ध्यान करें । और मन ही मन इस मंत्र का उच्चारण करें ।
॥ मंत्र ॥
Mata Shailpitri Mantra
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
ऊं ऐं ह्लीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नमः।
मंत्र के साथ ही हाथ में लिए पुष्प को मां के तस्वीर पर चढ़ा दे । और उनसे प्रार्थना करें कि आपके सभी मनोकामनाओं को वह पूर्ण करें । इसके बाद प्रसाद अर्पित करें, और मन ही मन मां शैलपुत्री को याद करें ।
माता शैलपुत्री पूजा का महत्व :
Mata Shailpitri Mahatw
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार नवरात्रि के पहले दिन विधि विधान से मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । मां शैलपुत्री अत्यंत सरल एवं सौम्य स्वभाव की हैं, और वो जीवन में आने वाली सभी विघ्न बाधाओं का अंत करती है । तथा वैवाहिक जीवन खुशहाल व्यतीत होता है । जिन कन्याओं के विवाह का योग नहीं बन रहा है उन्हें मां शैलपुत्री की विधिवत पूजा करनी चाहिए, इससे जल्द ही उन्हें योग्य वर की प्राप्ति होगी ।
माता शैलपुत्री की पौराणिक कथा :
Mata Shailpitri Katha
पौराणिक कथाओं की माने तो एक बार जब माता सती के पिता राजा दक्ष ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन करवाया । इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी देवताओं और ऋषि मुनियों को आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने अपने दामाद भोलेनाथ को आमंत्रित नहीं किया । माता सती ने भगवान शिव से अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी, माता सती की बार -बार आग्रह करने पर भोलेनाथ ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी ।
जब माता सती यज्ञ में पहुंची तो उन्होंने देखा कि सभी देवी देवताओं और ऋषि मुनि वहां उपस्थित थे । और राजा दक्ष भगवान शिव के बारे में अपशब्द कह रहे थे । पति के इस अपमान को होते देख माता सती सह न सकी और यज्ञ में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए । यह समाचार सुन भगवान शिव ने अपने गणों को भेजकर दक्ष का यज्ञ पूरी तरह से विध्वंस करा दिया । इसके बाद सती ने शैलपुत्री के रूप में अगला जन्म पर्वतराज हिमालय के घर लिया ।
माता शैलपुत्री देवी कवच :
ओमकार:में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी ।
हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी ॥
श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी ।
हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत ॥
फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा ।
माता शैलपुत्री देवी स्तोत्र :
Mata Shailpitri Shtrotra
!! ध्यान !!
वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम् ॥
पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा ।
पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता ॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम् ।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम् ॥
!! स्तोत्र !!
प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम् ।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम् ॥
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम् ।
सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम् ॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन ।
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम् ॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन ।
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम् ॥
माता शैलपुत्री की स्तुति :
Mata Shailpitri Shtuti
जय माँ शैलपुत्री प्रथम,
दक्ष की हो संतान ।
नवरात्री के पहले दिन,
करे आपका ध्यान ॥
अग्नि कुण्ड में जा कूदी,
पति का हुआ अपमान ।
अगले जनम में पा लिया,
शिव के पास स्थान ॥
जय माँ शैलपुत्री,
जय माँ शैलपुत्री ॥
राजा हिमाचल से मिला,
पुत्री बन सम्मान ।
उमा नाम से पा लिया,
देवों का वरदान ॥
सजा है दाये हाथ में,
संहारक त्रिशूल ।
बाए हाथ में ले लिया,
खिला कमल का फूल ॥
जय माँ शैलपुत्री,
जय माँ शैलपुत्री ॥
बैल है वाहन आपका,
जपती हो शिव नाम ।
दर्शन से आनंद मिले,
अम्बे तुम्हे प्रणाम ॥
नवरात्रों की माँ,
कृपा कर दो माँ ।
जय माँ शैलपुत्री,
जय माँ शैलपुत्री ॥
जय माँ शैलपुत्री प्रथम,
दक्ष की हो संतान ।
नवरात्री के पहले दिन,
करे आपका ध्यान ॥
आरती
Mata Shailpitri Aarti
शैलपुत्री माँ बैल असवार ।
करें देवता जय जय कार॥
शिव -शंकर की प्रिय भवानी ।
तेरी महिमा किसी ने न जानी ॥
पार्वती तू उमा कहलावें ।
जो तुझे सुमिरे सो सुख पावें ॥
रिद्धि सिद्धि परवान करें तू ।
दया करें धनवान करें तू ॥
सोमवार को शिव संग प्यारी ।
आरती जिसने तेरी उतारी ॥
उसकी सगरी आस पुजा दो ।
सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो ॥
घी का सुन्दर दीप जला के ।
गोला गरी का भोग लगा के ॥
श्रद्धा भाव से मन्त्र जपायें ।
प्रेम सहित फिर शीश झुकायें ॥
जय गिरराज किशोरी अम्बे ।
शिव मुख चन्द्र चकोरी अम्बे ॥
मनोकामना पूर्ण कर दो ।
चमन सदा सुख सम्पत्ति भर दो ॥

धन्यवाद !
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