Mata Brahmacharini- माता ब्रह्माचारिणी | कवच | स्तोत्र | स्तुति | आरती

॥ माता ब्रह्माचारिणी | Mata Brahmacharini ॥

॥ माँ दुर्गा का द्वितीय रूप ॥

मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप को ‘ब्रह्मचारिणी’ कहा जाता है । माता ब्रह्माचारिणी के नाम से ही उनकी शक्तियों की महिमा का पता चलता है । ब्रह्म का अर्थ ‘तपस्या’ होता है, और चारिणी का अर्थ ‘आचरण करने वाली’ । अर्थात तप का आचरण करने वाली शक्ति को हम नमन करते हैं । माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है । इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है ।

माता के इस स्वरूप की पूजा करने से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, संयम, सदाचार आदि की वृद्धि होती है । जीवन के कठिन से कठिन समय में भी इंसान अपने कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता है । देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि एवं विजय की प्राप्ति होती है ।

॥ पूजा विधि ॥

Puja Vidhi

मां ब्रह्मचारी की पूजा करते समय हाथ में लाल फूल को ले । और मां का ध्यान करें ।
प्रार्थना करते हुए मन ही मन मंत्रों का उच्चारण करें ।

॥ श्लोक ॥

या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥

 दधाना करपदमाभ्याम् -अक्षमालाकमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥

इसके पश्चात मां को पंचामृत स्नान कराएं । फिर सफेद फूल, अक्षत, कुमकुम, सिंदूर अर्पित करें । साथ ही साथ मंत्रों का उच्चारण करें । फिर मां को प्रसाद एवं पान सुपारी भेंट करें । धी व कपूर जलाकर देवी की आरती करें, फिर क्षमा प्रार्थना कर सभी में प्रसाद बांट दें । एैसा करने से देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि एवं विजय की प्राप्ति होती है । कठिन समय में भी इंसान अपने कर्तव्य पथ से कभी भी विचलित नहीं होता है । माता ब्रह्माचारिणी के पूजा करने से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, संयम, सदाचार आदि की वृद्धि होने लगती है ।

माता ब्रह्माचारिणी पूजा का महत्व :

Mata Brahmacharini Mahatw

माँ दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों को अनन्त फल देने वाला है । इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम आदि की वृद्धि होती है । जीवन के कठिन से कठिन समय में भी इंसान अपने कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता है । देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि एवं विजय की प्राप्ति होती है ।

माता ब्रह्माचारिणी की पौराणिक कथा :

Mata Brahmacharini Katha

पौराणिक कथाओं की माने तो अपने पूर्व जन्म में जब हिमालय की पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं । तब इन्होंने नारद के उपदेश से भगवान शंकर जी को प्राप्त करने के लिए कठिन से कठिन तपस्या की थी । इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से सुशोभित किया गया ।

इन्होंने एक हज़ार वर्ष तक केवल फल खाकर व्यतीत किए, और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्भर रहीं । उपवास के समय आकाश के नीचे वर्षा, शरद और धूप के विकट कष्ट सहे, इसके बाद केवल ज़मीन पर टूट कर गिरे बेल पत्रों को खा कर तीन हज़ार वर्ष तक भगवान शंकर जी की आराधना करती रहीं । कई हज़ार वर्षों तक वे निर्जल और निराहार रह कर व्रत करती रहीं । बाद में पत्तों को भी खाना छोड़ दीया, जिसके कारण उनका नाम अपर्णा भी पड़ा । इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का पूर्वजन्म का शरीर एकदम क्षीण हो गया था ।

उनकी दशा देख उनकी माता मैना देवी दुखी हो गयीं । उन्होंने उस कठिन तपस्या विरत करने के लिए उन्हें आवाज़ दी “उमा, अरे नहीं” । तब से देवी ब्रह्मचारिणी का पूर्वजन्म मे एक और नाम उमा पड़ गया था । उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया था । देवता, ॠषि, सिद्धगण, मुनि सभी ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे ।

अन्त में पितामह ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी के सहयोग से उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा – हे देवी । आज तक किसी ने इस प्रकार की ऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी । तुम्हारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगी । भगवान शिव जी तुम्हें पति रूप में तुम्हें प्राप्त होंगे । अब तुम तपस्या से विरत होकर घर को लौट जाओ ।

माता ब्रह्मचारिणी देवी कवच :

Mata Brahmacharini Kawach

त्रिपुरा में हृदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी ।
अर्पणासदापातुनेत्रोअर्धरोचकपोलो ॥

पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमहेश्वरी ।
षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो ॥

अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी ॥

माता ब्रह्मचारिणी स्तोत्र :

Mata Brahmacharini Shtrotra

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम् ।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम् ॥

शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी ।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम् ॥

माता ब्रह्मचारिणी स्तुति :

Mata Brahmacharini Shtrotra

जय माँ ब्रह्मचारिणी ।
ब्रह्मा को दिया ग्यान ॥
नवरात्री के दुसरे दिनम ।
सारे करते ध्यान ॥

शिव को पाने के लिए ।
किया है तप भारी ॥
ॐ नम: शिवाय जाप कर ।
शिव की बनी वो प्यारी ॥

भक्ति में था कर लिया ।
कांटे जैसा शरीर ॥
फलाहार ही ग्रहण कर ।
सदा रही गंभीर ॥

बेलपत्र भी चबाये थे ।
मन में अटल विश्वास ॥
जल से भरा कमंडल ही ।
रखा था अपने पास ॥

रूद्राक्ष की माला से ।
करूँ आपका जाप ॥
माया विषय में फंस रहा ।
सारे काटो पाप ॥

नवरात्रों की माँ ।
कृपा करदो माँ ॥
नवरात्रों की माँ ।
कृपा करदो माँ ॥

जय ब्रह्मचारिणी माँ ।
जय ब्रह्मचारिणी माँ ॥
जय ब्रह्मचारिणी माँ ।
जय ब्रह्मचारिणी माँ ॥

॥ आरती ॥

Aarti

जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता ।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता ।

ब्रह्मा जी के मन भाती हो ।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो ।

ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा ।
जिसको जपे सकल संसारा ।

जय गायत्री वेद की माता ।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता ।

कमी कोई रहने न पाए ।
कोई भी दुख सहने न पाए ।

उसकी विरति रहे ठिकाने ।
जो ​तेरी महिमा को जाने ।

रुद्राक्ष की माला ले कर ।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर ।

आलस छोड़ करे गुणगाना ।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना ।

ब्रह्माचारिणी तेरो नाम ।
पूर्ण करो सब मेरे काम ।

भक्त तेरे चरणों का पुजारी ।
रखना लाज मेरी महतारी ।


परानाम

धन्यवाद !


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