Mata Kushmanda- माता कुष्मांडा देवी | कथा | कवच | स्तोत्र | स्तुति | आरती

माता कुष्मांडा देवी

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नवदेवी के चौथे शक्ति रूप को माता कुष्माण्डा के स्वरूप में उपासना की जाती है । माता कूष्माण्डा के आठ भुजाएँ हैं । अत: उन्होंने अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता हैं । इनके हाथों में कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है । माता के आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है ।

इनका वाहन सिंह है । सूर्यमण्डल के भीतर लोक में माता कूष्माण्डआ का वास है । सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है । इसीलिए सूर्य की भाँति ही इनका शरीर की कान्ति और प्रभा दैदीप्यमान है । माता के तेज से दसों दिशाएँ आलोकित हैं ।

पूजा विधि

सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाए । फिर उस पर माता कुष्मांडा की तस्वीर को स्थापित करें । उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटका रखें । तत्पश्चात हाथ में लाल पुष्प लेकर माता कुष्मांडा को ध्यान करें । और मन ही मन इस मंत्र का उच्चारण करें ।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ॥
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिरास्मृतमेव च ।
दधाना हस्तपद्‌माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु में ॥

मंत्र के साथ ही हाथ में लिए पुष्प को मां के तस्वीर पर चढ़ा दे । और उनसे प्रार्थना करें कि आपके सभी मनोकामनाओं को वह पूर्ण करें । इसके बाद प्रसाद अर्पित करें, और मन ही मन माता कुष्मांडा को याद करें ।

माता कुष्मांडा पूजा का महत्व:

मां कूष्माण्डा की कृपा से भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उन्हें आयु, यश, बल और आरोग्य कि प्राप्ति होती है । माता कूष्माण्डा अत्यंत सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं । सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्तों को सुगमता से परम पद कि प्राप्ति होती है । यह देवी आधियों-व्याधियों से मुक्ति दिलाती हैं और उसे सुख-समृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं । अंतः इस देवी की उपासना में भक्तों को सदैव सच्चे मन से करना चाहिए ।


माता कुष्मांडा की पौराणिक कथा:

पौराणिक कथा के मुताबित, यह माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब चारों ओर अंधकार था और कोई भी जीव जंतु नहीं थे तो मां दुर्गा के इस शक्ति रूप ने इस अंड यानी ब्रह्मांड की रचना की थी । इसी कारण उन्हें कूष्मांडा कहा गया है । सृष्टि की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें आदिशक्ति नाम से भी संबोधित किया जाता है ।

इनके शक्ति स्वरूप का वर्णन करते हुए शास्त्रों में कहा गया है कि इनकी आठ भुजाएं हैं और ये सिंह की सवार करती हैं । मां कूष्मांडा के सात हाथों में चक्र, गदा, धनुष, कमण्डल, अमृत से भरा हुआ कलश, बाण और कमल का फूल से सुशोभित है तथा आठवें हाथ में जपमाला है जो सभी प्रकार की सिद्धियों से युक्त है ।


माता कुष्मांडा देवी कवच 

 हसरै मे शिर: पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम् ।
हसलकरीं नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम् ॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही उत्तरे तथा ।
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम ।
दिग्दिध सर्वत्रैव कूं बीजं सर्वदावतु ॥

माता कुष्मांडा देवी स्तोत्र 

!! ध्यान !!

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्र गदा जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिण रत्‍‌नकुण्डल मण्डिताम्।
प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कूचाम्।
कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥

!! स्त्रोत !!

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम् ।
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम् ॥
जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम् ।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम् ॥
त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दु:ख शोक निवारिणाम् ।
परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम् ॥

माता कूष्माण्डा स्तुति

चौथा जब नवरात्र हो,
कुष्मांडा को ध्याते ।
जिसने रचा ब्रह्माण्ड यह,
पूजन है करवाते ॥

आद्यशक्ति कहते जिन्हें,
अष्टभुजी है रूप ।
इस शक्ति के तेज से
कहीं छाव कही धुप ॥

कुम्हड़े की बलि करती है
तांत्रिक से स्वीकार ।
पेठे से भी रीझती
सात्विक करे विचार ॥
क्रोधित जब हो जाए यह
उल्टा करे व्यवहार ।
उसको रखती दूर माँ,
पीड़ा देती अपार ॥
सूर्य चन्द्र की रौशनी
यह जग में फैलाए ।
शरणागती मैं आया
तू ही राह दिखाए ॥
नवरात्रों की माँ
कृपा करदो माँ ।
नवरात्रों की माँ
कृपा करदो माँ ॥
जय माँ कुष्मांडा मैया ।
जय माँ कुष्मांडा मैया ॥
चौथा जब नवरात्र हो,
कुष्मांडा को ध्याते ।
जिसने रचा ब्रह्माण्ड यह,
पूजन है करवाते ॥

आरती

‘कूष्माण्डा जय जग सुखदानी ।
मुझ पर दया करो महारानी ।
पिङ्गला ज्वालामुखी निराली ।
शाकम्बरी माँ भोली भाली’ ॥

‘लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे ।
भीमा पर्वत पर है डेरा ।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा’ ॥

‘सबकी सुनती हो जगदम्बे ।
सुख पहुँचती हो माँ अम्बे।
तेरे दर्शन का मैं प्यासा ।
पूर्ण कर दो मेरी आशा’ ॥

‘माँ के मन में ममता भारी ।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी ।
तेरे दर पर किया है डेरा ।
दूर करो माँ संकट मेरा’ ॥

‘मेरे कारज पूरे कर दो ।
मेरे तुम भंडारे भर दो ।
तेरा दास तुझे ही ध्याए ।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए’ ॥


परानाम

धन्यवाद !


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