मधुश्रावणी व्रत 2023 | Madhushravani Vrat 2023:- मधुश्रावणी व्रत की तिथि, महत्व, पूजा सामग्री ।

Madhushravani Vrat 2023

मधुश्रावणी व्रत (2023) को खास तौर पर बिहार की मिथिलांचल में मुख्य पर्व रूप से मनाया जाता है । इस व्रत में महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं । इन दिनों सुहागन व्रत रखकर मिट्टी और गोबर के बनी विशहारा और गौरी शंकर की पूजा विशेष रूप से कर कथाएं सुनती हैं । 

यह व्रत नव विवाहित महिलाएं बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं । महिलाएं अपने मायके में 14 दिन तक नमक के बिना बने भोजन को ग्रहण कर इस व्रत को करती हैं । इस साल 2023 में मधुश्रावणी का व्रत 14 दिनों की जगह 44 दिनों तक चलेगा जो कि 7 जुलाई 2023 से 19 अगस्त 2023 तक हैं

इस साल 2023 सावन 59 दिनों का होगा । जो कि 4 जुलाई से शुरू होकर 31 अगस्त तक चलेगा । 18 जुलाई से 16 अगस्त तक सावन अधिकमास रहेगा । जिसे मलमास भी कहा जाता है । दर्शन नया विक्रम संवत 2080 नल 12 की जगह 13 माह का होगा । काल गणना के अनुसार प्रतीक तीसरे वर्ष ऐसी स्थिति बनती है । मलमास के कारण इस साल 2023 में मधुश्रावणी व्रत (2023) डेढ़ महीने तक चलेगा ।

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मधुश्रावणी व्रत 2023

Madhushravani Vrat 2023

FastivalDates 
2023 में मधुश्रावणी व्रत कब है?7th July 2023 to 19th August 2023
MonthShravan

सावन महीने में मधुश्रावणी के गीत गूंजने लगते हैं । सभी शादीशुदा महिलाएं मधुश्रावणी की तैयारी में जुट जाती हैं । इस दिन महिलाएं दुल्हन के रूप में सज धज कर मधुश्रावणी त्यौहार को बहुत ही धूम धाम के साथ मनाती हैं । सावन की कृष्ण पक्ष के पंचमी के दिन से मधुश्रावणी व्रत का शुरुआत होती है । 

मधुश्रावणी का व्रत नव विवाहित महिलाएं शादी के पहले साल के सावन महीने में करती हैं । मधुश्रावणी का व्रत शादी के पहले सावन को बड़े ही धूमधाम से किया जाता है । नवविवाहित औरतें इस व्रत को 14 दिन तक नमक के बिना भोजन ग्रहण करती हैं । इस व्रत में मीठा भोजन खाया जाता है । व्रत के पहले दिन फलों को खाया जाता है । यह पूजा लगातार 14 दिन तक चलती है । इन दिनों मिट्टी और गोबर से बने विशहरा और गौरी- शंकर की विशेष रूप से महिलाएं पूजा करती है और कथाएं सुनती है । 

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10 जुलाई को पहला और 28 अगस्त को अंतिम सोमवार का व्रत

इस साल (2023) सावन का पहला सोमवारी 10 जुलाई को होगा । 

दूसरा सोमवारी 17 जुलाई को होगा । 

तीसरा सोमवारी 24 जुलाई को होगा । 

चौथा सोमवार 31 जुलाई को होगा । 

पांचवा सोमवारी 7 अगस्त को होगा । 

छठा सोमवारी 14 अगस्त को होगा । 

सातवा सोमवारी 21 अगस्त को होगा । 

और अंतिम आठवां सोमवारी 28 अगस्त को होगा ।

मधुश्रावणी व्रत का महत्व | Importance of Madhushravani Vrat 2023

मधुश्रावणी व्रत मुख्य रूप से बिहार के मिथिला क्षेत्र में प्रचलित त्यौहार है । यह व्रत सावन की कृष्ण पक्ष की पंचमी के दिन से शुरू होता है । इस व्रत में मुख्य रूप से महागौरी और भगवान शिव की पूजा की जाती है । यह व्रत नव विवाहित महिलाएं बड़े ही धूमधाम से करती हैं । इस व्रत को महिलाएं अपने पति के लंबी उम्र के लिए रखती हैं । यह व्रत धैर्य और त्याग का प्रतीक है । 

यह 14 दिनों तक चलने वाली व्रत है जिसमें औरतें 14 दिन तक बिना नमक का भोजन ग्रहण करती है और विशहारा, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती है । इन दिनों बुजुर्गों द्वारा कई तरह की कहानियां और कथाएं सुनाई जाती है । इन कहानियों में राजा श्रीकर और विशहरा की कहानियां प्रचलित है ।

मधुश्रावणी व्रत कथा | Madhushravani Vrat Katha

मधुश्रावणी व्रत कथा | Madhushravani vrat katha in Hindi

मां गौरी के गाए जाते हैं गीत

नव विवाहित महिलाएं एक ही साड़ी पहनकर प्रत्येक दिन पूजा करती हैं । इन दिनों फूल लोड़ा जाता है फिर उन्हीं फूलों और पत्तों से औरतें नाग नागिन लहरा की पूजा कर उन पर फूल पत्ते चढ़ाते हैं । पूजा स्थल पर रंगोली बनाई जाती है महिलाएं गीत गाती है कथा पड़ती है और सुनती हैं ।

मिट्टी के बनते हैं गौरी शंकर और विशहरा

पूजा शुरू होने से पहले मां गौरी को हल्दी से बनाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है । मिट्टी से नाग नागिन और उनके 5 बच्चों को भी बनाया जाता है । 14 दिनों तक हर शाम नव विवाहित महिलाएं फूल और पत्ते तोड़ने जाती हैं । और अगले दिन सुबह इन्हीं फूल और पत्तों से पूजा करती है । 

मिथिला लोकगीत

इस पर्व में मैथिली भजन और लोकगीतों की आवाज हर घर से में सुनाई देती है । हर शाम महिलाएं आरती करती हैं और गीत गाती हैं । यह तलवार नव विवाहित महिलाएं पूरी निष्ठा से अपने पति लंबी उम्र के लिए करती हैं । पूजा की आखिरी दिन पति को शामिल किया जाता है । पूजा की आखिरी दिन ससुराल से नए कपड़े, मिठाई, फल आदि आता है । साथ ही बुजुर्ग सफल जीवन का आशीर्वाद देते हैं ।

14 दिनों तक ससुराल से आए अनाज ग्रहण करते हैं ।

यह व्रत नव विवाहित औरतें अपने मायके में मनाती हैं । जिसमें व नमक नहीं खाती और जमीन पर सोती है । शाम में पूजा के बाद ससुराल से आए अनाज को ही ग्रहण करती हैं । पूजा के लिए मिट्टी के बने नाग-नागिन, हाथी, गौरी, शिव की प्रतिमा बनाई जाती है और फिर उनकी पूजा फलो, मिठाइयों और फूलों से की जाती है ।

सभी महिलाएं बैठकर कथाएं सुनती हैं । पूजा की सातवें, आठवें और नौवें दिन प्रसाद के रूप में खीर और रसगुल्ले का वह भगवान को लगाया जाता है ।


परानाम

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