मधुश्रावणी व्रत कथा | Madhushravani vrat katha in Hindi

मधुश्रावणी व्रत कथा हिंदी

मधुश्रवणी व्रत, हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण एक व्रत है जो श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है । इस व्रत का महत्व इसकी कथा के माध्यम से समझाया जाता है, जिसमें एक पुरानी कथा के आधार पर यह व्रत महत्वपूर्ण होता है ।

मधुश्रवणी व्रत के महत्व में यह सिद्धांत है कि इस व्रत के द्वारा व्रती को भगवान की कृपा प्राप्त होती है और उनकी जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है । यह व्रत स्त्रीयों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है और उनकी समस्याओं का समाधान करने में मदद करता है । इसके अलावा, यह व्रत भक्ति, श्रद्धा और सेवा की महत्वपूर्णता को भी प्रकट करता है ।

Madhushravani vrat katha in Hindi

मधुश्रावणी व्रत कथा:- मधुश्रावणी मुख्य रूप बिहार के मिथिला क्षेत्र में प्रचलित त्योहार है । यह व्रत सावन के कृष्ण पक्ष की पंचमी के दिन से शुरू होता है । इस व्रत में विशेष रुप से माता गौरी एवं भगवान शंकर की पूजा होती है । सावन महीने में मधुश्रावणी के गीत गूंजने लगते हैं ।

सभी शादीशुदा महिलाएं मधुश्रावणी की तैयारी में जुट जाती हैं । इस दिन महिलाएं दुल्हन के रूप में सज धज कर मधुश्रावणी त्यौहार को बहुत ही धूम धाम के साथ मनाती हैं । सावन की कृष्ण पक्ष के पंचमी के दिन से मधुश्रावणी व्रत का शुरुआत होती है ।

मधुश्रावणी व्रत नव विवाहित महिलाएं शादी के पहले साल के सावन महीने में करती हैं । मधुश्रावणी व्रत शादी के पहले सावन को बड़े ही धूमधाम से किया जाता है । नवविवाहित औरतें इस व्रत को 14 दिन तक नमक के बिना भोजन ग्रहण करती हैं ।

इस व्रत में मीठा भोजन खाया जाता है । व्रत के पहले दिन फलों को खाया जाता है । यह पूजा लगातार 14 दिन तक चलती है । इन दिनों मिट्टी और गोबर से बने विशहरा और गौरी- शंकर की विशेष रूप से महिलाएं पूजा करती है और कथाएं सुनती है ।

मधुश्रावणी व्रत कथा | Madhushravani vrat katha

मधुश्रावणी व्रत कथा:-

राजा श्रीकर के यहां एक कन्या का जन्म हुआ ! जन्म के पश्चात राजा ने पंडितों को बुलवाकर उसकी कुंडली दिखवाई । पंडितों ने बताया कि कन्या की कुंडली में कुछ दोष हैं जिस के कारण इन्हें सौतन के तालाब में मिट्टी ढोना पड़ेगा ।

राजा इस बात से बहुत दुखी हुए और कुछ समय बीतने पर परलोक को सिधार गए । इसके बाद राजा श्रीकर के पुत्र चंद्रकर राजा बने । बहन से स्नेह के कारण वह नहीं चाहते थे कि बहन को सौतन के दबाव में जीना पड़े ।

चंद्रकर ने एक घने वन में सुरंग बनवाया जिसमें एक दासी के साथ राजकुमारी के रहने की व्यवस्था करवाई ताकि किसी पुरुष से इनकी मुलाकात ना हो । लेकिन भाग्य को तो कुछ और  मंजूर था । एक दिन सुवर्ण नाम के राजा उस वन में आए और शिकार खेलते हुए उस सुरंग के पास गए ।

राजा को  खूब प्यास लगी थी इसलिए वन में पानी की तलाश में थे । अचानक राजा की नजर चींटियों पर गई जो मुंह में चावल का दाना लिए एक कतार में चल रही थीं । राजा ने चींटियों का पीछा करना शुरू किया तो वे एक सुरंग के अंदर पहुंच गए ।

यहां राजकुमारी से राजा सुवर्ण की मुलाकात हुई और इसके बाद दोनों ने विवाह कर लिया । कुछ समय तक दोनों सुरंग में  साथ रहे । राजा को कुछ दिनों बाद राज्य की याद सताने लगी तो उन्होंने राजकुमारी से अपने राज्य जाने की आज्ञा मांगी । राजकुमारी ने बताया कि सावन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मधुश्रावणी का पर्व होता है ।

उस दिन नवविवाहित कन्याएं ससुराल से आया हुआ अन्न खाती हैं और ससुराल से आए हुए वस्त्र ही धारण करती हैं । इसलिए मधुश्रावणी से पहले आप इन्हें भेज दीजिएगा । राजा ने इस बात को स्वीकार कर लिया और जल्दी ही साथ ले जाने का वादा करते हुए अपनी राजधानी वापस आ गए ।

राजा ने नगर के प्रमुख वस्त्र बनाने वाले को बुलवाया और सुंदर सी चुनरी बनाने का आदेश दे दिया । यह बात राजा की पहली पत्नी को पता चला तो उसने वस्त्र बनाने वाले को स्वर्ण का लालच देकर चुनरी पर छाती लात, झोंटा हाथ लिखने का आदेश दे दिया । इसका मतलब यह था कि तुम्हारी सौतन तुम्हारी छाती पर लात मारेगी और बाल पकड़कर तुम्हे खींचेगी ।

वस्त्र बनाने वाले ने चुनरी को ऐसा लपेट दिया कि राजा यह समझ नहीं पाए कि इस पर कुछ लिखा भी है । राजा ने समय आने पर चुनरी को एक कौए को पहुंचाने के लिए दे दिया । पौराणिक कथाओं में कौए को संदेश वाहक के रूप में बताया गया है ।

कौआ वस्त्र लेकर जा रहा था लेकिन उसकी दृष्टि और भोज पर गई जिसे देखर कौआ सबकुछ भूल गया और चुनरी को छोड़कर जूठन खाने  गया । मधुश्रावणी के दिन वस्त्र और अन्न नहीं पहुंचने से राजकुमारी बहुत नाराज हो गईं । राजकुमारी ने सफेद फूल और सफेद  चंदन लेकर माता पार्वती की पूजा की और देवी से विनती करते हुए प्रार्थना कि जिस दिन राजा से उनकी भेंट हो उनकी आवाज चली जाए ।

दूसरी ओर राजकुमारी के भाई चंद्रकर को जब बहन के विवाह की बात पता चली तो वह नाराज हो गया और बहन को खाने- पीने की चीजें भी भेजना बंद कर दिया । ऐसे में राजकुमारी और उनकी दासी को कई दिनों तक भूखा  रहना पड़ा । इस बीच एक दिन पता चला की पास में तालाब खोदने का काम चल रहा है तो राजकुमारी अपनी दासी के साथ तालाब पर मिट्टी उठाने के लिए चल गई ताकि गुजरे के लिए धन मिल जाए ।

संयोग की बात है कि उस दिन राजा सवर्ण भी वहां तालाब पर आए हुए थे क्योंकि राजा की पहली पत्नी ही उस तालाब को खुदवा रही थी । राजा ने राजकुमारी को पहचान लिया और अपनी भूल के लिए बहुत क्षमा मांगी । राजा अपने साथ राजकुमारी को लेकर महल चले आए और राजकुमारी को रानी का स्थान दे दिया ।

लेकिन राजकुमारी अब बोल ही नहीं सकती थी । राजा को इसका कारण दासी से पता चला तो उन्होंने बताया कि उन्होंने तो चुनरी भेजी थी । राजा ने जब घटना की जांच करवाई तो सारी बातें सामने आ गई और पता चला कि यह सारी उलझन कौए की वजह से हुई है ।

राजा ने चुनरी भी तलाश करवा ली जिस पर बड़ी रानी का भेजा संदेश भी लिखा था । राजा इस बात से बड़ी रानी पर बहुत नाराज हुए और उन्हें मृत्युदंड दिया । अगले वर्ष जब मधुश्रावणी आई तो राजकुमारी ने लाल फूलों और लाल वस्त्र से माता पार्वती का पूजन किया और आवाज लौटाने की प्रार्थना की जिससे राजकुमारी की वाणी फिर से लौट आई । इसके बाद राजा स्वर्ण और राजकुमारी वर्षों तक वैवाहिक जीवन का सुख आनंद भोगते रहे ।


parnam

धन्यवाद !


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