तुलसी चालीसा
तुलसी चालीसा का पाठ बड़ा ही फलदाई है । तुलसी को मां लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है । घर में तुलसी का पौधा रखना बहुत ही शुभ माना जाता है । कहा जाता है कि तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है और किसी भी पूजन में तुलसी पत्र ना चढ़ाने से उसका पूर्ण लाभ नहीं मिलता है । कार्तिक माह में तुलसी का पूजन और चालीसा पाठ विशेष फलदाई होता है ।
॥ दोहा ॥
सत्यवती सुखदानी ।
श्री वृन्दा गुन खानी ॥
देहु अमर वर अम्ब ।
महिमा अगम सदा श्रुति गाता ॥
हरी हीँ हेतु कीन्हो तप भारी ॥
तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो ॥
दीन जानी जनि छाडाहू छोहु ॥
दीन्हो श्राप कध पर आनी ॥
होहू विटप तुम जड़ तनु धारी ॥
करहु वास तुहू नीचन धामा ॥
सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला ॥
पुजिहौ आस वचन सत मोरा ॥
तासु भई तुलसी तू बामा ॥
राधे शक्यो प्रेम लखी नाही ॥
नर लोकही तुम जन्महु बाला ॥
शङ्ख चुड नामक शिर ताजा ॥
परम सती गुण रूप अगारी ॥
कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ ॥
असुर जलन्धर नाम पति को ॥
लीन्हा शंकर से संग्राम ॥
मरही न तब हर हरिही पुकारे ॥
कोऊ न सके पतिहि संहारी ॥
वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई ॥
कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा ॥
सुनी उर शोक उपारा ॥
लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी ॥
जलन्धर जस हत्यो अभीता ।
सोई रावन तस हरिही सीता ॥
धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा ॥
होवे तनु पाषाण तुम्हारा ॥
दियो श्राप बिना विचारे ॥
छलन चह्यो जब पार्वती को ॥
जग मह तुलसी विटप अनूपा ॥
नदी गण्डकी बीच ललामा ॥
सब सुख भोगी परम पद पई है ॥
अतिशय उठत शीश उर पीरा ॥
सो सहस्त्र घट अमृत डारत ॥
रोग दोष दुःख भंजनी हारी ॥
तुलसी राधा मंज नाही अन्तर ॥
बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा ॥
लहत मुक्ति जन संशय नाही ॥
तुलसिहि निकट सहसगुण पावत ॥
जो प्रयास ते पूर्व ललामा ॥
तुलसी तरु ग्रह धारी ।
पावही बन्ध्यहु नारी ॥
हार ह्वै परम प्रसन्न ।
ग्रह बसही पूर्णा अत्र ॥
लाही पूर्ण सब काम ।
सहस बसही हरीराम ॥
तुलसी सूत सुखराम ।
धन्यवाद !
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