आदित्यहृदय स्तोत्र- जीवन के सभी कष्टों का होगा निवारण, यदि नियमित रूप से करें इसका पाठ!

आदित्यहृदय स्तोत्र (Aditya Hridaya Stotra) भगवान सूर्य  की स्तुति मंत्र हैं । इसकी उल्लेख वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड मे की गई है । जब राणक्षेत्र मे राम और रावण आमने-सामने थे, तब अगस्त्य ऋषि ने श्री राम को सूर्य देव की स्तुति करने की सलाह दी । आदित्यहृदयम् में कुल 31 श्लोक हैं 

आदित्यहृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करने से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त होता है । तथा हर एक मनोकामना सिद्ध होती है ।

आदित्यहृदय स्तोत्र

Aditya Hridaya Stotra in Sanskrit

 ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥

 दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥

 राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥

 आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥

 सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥

 रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥

 सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥

 पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥

 आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ॥10 ॥

 हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥

 हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥

 व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥

 आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥

 नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥

 नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥

 जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥

 नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥

 ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥

 तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥ 20 ॥

तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥

 नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥

 एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥

 देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥

 एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥

 पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥

 अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥

 एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥

 आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥

 रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥

 अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥ 31 ॥ 


आदित्यहृदय स्तोत्र (Aditya Hridaya Stotra) in Hindi

उधर “श्री रामचन्द्र जी” युद्ध से थक कर चिंता करते हुए रणभूमि में खड़े थे । इतने में ही रावण भी युद्ध के लिये उनके सामने उपस्थित हो गया । ये देखकर अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने को आये थे, वो श्रीरामचंद्र जी के पास जाकर बोले ।

सबके ही हृदय में रमण करने वाला महाबाहो राम ! ये सनातन गोपनीय स्तोत्र को सुनो । वत्स ! इसके जप मात्र से ही तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे । इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है !‘ आदित्य हृदय ‘!

ये परम पवित्र और सम्पूर्ण शत्रुओं को नाश करने वाले है । इसके जाप से सदा ही विजय की प्राप्ति होती है । ये नित्य अक्षय और कल्याणमय स्तोत्र है । सम्पूर्ण मांगलों का भी ये मंगल है । इससे ही सबके पापों का नाश हो जाता है । ये चिन्ता, पाप और शोक को मिटाने वाला तथा आयु को बढ़ाने वाला साधन है ।

भगवान सूर्य अपने अनन्त किरणों से सुशोभित (रश्मिमान्) हैं । ये नित्य उदय होने वाले (समुद्यन्), देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान् के नाम से प्रसिद्ध, प्रभा का विस्तार करने वाले (भास्कर) और संसार के स्वामी (भुवनेश्वर) हैं । तुम इन्हीं का (रश्मिमते नमः, समुद्यते नमः, देवासुरनमस्कृताय नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराय नमः – इन नाम मन्त्रों के द्वारा) पूजन करो ।

सम्पूर्ण देवताओं इन्हीं के स्वरुप हैं । ये तेज की राशि तथा अपने किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले देव हैं । ये ही अपने रश्मियों का प्रसार कर के देवता और असुरों सहित सम्पूर्ण लोकों का पालन करते हैं । ये ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर, वसु, साध्य, अश्विनी कुमार, मरुद्गण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रभा के पुंज देव हैं ।

इन्हीं का नाम आदित्य (अदिति पुत्र), सविता (जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य (सर्वव्यापक), खग (आकाश में विचरने वाले), पूषा (पोषण करने वाले), गभस्तिमान् (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश, भानु (प्रकाशक), हिरण्यरेता (ब्रह्माण्ड के उत्पत्ति की बीज), दिवाकर (रात्रि का अन्धकार दूर कर, दिन में प्रकाश फैलाने वाले), हरिदश्व (दिशाओं में व्यापक, अथवा हरे रंगों के घोड़े वालें), सहस्रार्चि (हजारों किरणों से सुशोभित),

सप्तसप्ति (सात (7) घोड़ों वाले), मरीचिमान् (किरणों से सुशोभित), तिमिरोन्मथन (अन्धकार को नाश करने वाला), शम्भु (कल्याण का उद्गम स्थान), त्वष्टा (भक्तों के दुःख को दूर करने वाले अथवा जगत का संहार करने वाले), मार्तण्डक (ब्रह्माण्ड को जीवन देने वाले), अंशुमान् (किरण धारण करने वाले), हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), शिशिर (स्वभाव से ही सुख देने वाले), तपन (गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर (दिनकर),

रवि (सबभी की स्तुति के पात्र), अग्निगर्भ (अग्नि को अपने गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख (आनन्द स्वरूप एवं व्यापक), शिशिरनाशन (शीत का नाश करने वाले), व्योमनाथ (आकाश के स्वामी), तमोभेदी (अन्धकार का नष्ट करने वाले), ऋग् , यजुः और सामवेद के पारगामी, घनवृष्टि (घनी वृष्टि के कारण), अपां मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विन्ध्यवीथीप्लवंगम (आकाश में तीव्र वेग से चलने वाले), आतपी (धूप उत्पन्न करने वाले),

मण्डली (किरणों के समूह को धारण करने वाले), मृत्यु (मौत का कारण), पिंगल (भूरे रंगों वाले), सर्वतापन (सबको ताप कर देने वाले), कवि (त्रिकालदर्शी), विश्व (सर्वस्वरूप), महातेजस्वी, रक्त (लाल रंग वाले), सर्वभवोद्भव (सबकी उत्पत्ति का कारण), नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन (जगत के रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी तथा द्वादशात्मा (बारह स्वरूपों में अभिव्यक्त) हैं । ये सभी नामों से प्रसिद्ध सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है ।

पूर्वगिरि – उदयाचल तथा पश्चिमगिरि – अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है । ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको सभी का प्रणाम है । आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं । आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुड़े रहते हैं । आपको मेरी बारंबार नमस्कार है । सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान सूर्य ! आपको मेरी बारंबार प्रणाम है । आप अदिति जी के पुत्र होने के कारण आदित्य के नाम से प्रसिद्ध हैं, आपको नमस्कार है ।

उग्र (अभक्तों के लिये भयंकर), वीर (शक्ति से सम्पन्न) और सारंग (शीघ्रगामी) सूर्यदेव को नमस्कार है । कमल के फूलों को विकसित करने वाले प्रचण्ड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है । परात्पर रूप में आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी हैं । सूर आपकी संज्ञा है, ये सूर्यमण्डल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाला अग्नि आपका ही तो स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले, आपको नमस्कार है ।

आप अज्ञानी और अन्धकार के नाशक, जाड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का भी नाश करने वाले हैं, आपके स्वरुप अप्रमेय है। आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, सम्पूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है । आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप ही हरि (अज्ञान का हरण करने वाले) और विश्वकर्मा (संसार की सृष्टि करने वाले) हैं, तम के नाशक, प्रकाश स्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है ।

रघुनन्दन ! ये भगवान सूर्य जी ही सम्पूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि का पालन करते हैं । ये ही अपने किरणों से गर्मी पहुँचाते और वर्षा करते हैं । ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं। ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाला फल हैं ।

(यज्ञ में भाग ग्रहण करने वाले) देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं । सम्पूर्ण लोक में जितनी भी क्रियाएँ होती हैं, उन सबका फल देने में ये ही संपूर्ण समर्थ हैं । राघव ! यदि विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे कभी भी दुःख नहीं भोगना पड़ता ।

इसलिये मैं कहता हूं कि, तुम एकाग्र चित्त होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर की पूजन करो । इस “आदित्य हृदय” का तीन (3) बार जप करने से कोई भी युद्ध में विजय प्राप्त कर सकता है । महाबाहो ! ऐसा करके तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे । यह कह अगस्त्य जी वहां से चले गये ।

उनका यह उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्री रामचन्द्र जी का सभी शोक दूर हो गया । और वे प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्य हृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो कर भगवान सूर्य की ओर देखते हुए उन्हीं का ध्यान कर तीन बार जप किया । ऐसा करके उन्हें बड़ा हर्ष हुआ । फिर परम पराक्रमी श्री रघुनाथ जी ने धनुष को उठाकर रावण की ओर देखा और उत्साहपूर्वक विजय को पाने के लिये आगे बढ़े ।

उन्होंने पूरा प्रयत्न कर रावण का वध करने का निश्चय किया । उस समय देवताओं के मध्य में उपस्थित खडे़ हुए भगवान सूर्य ने प्रसन्नतापूर्वक श्री रामचन्द्र जी की ओर देखा और निशाचरराज रावण के विनाश का समय निकट जान कर हर्षपूर्वक उन्होंने कहा – ‘ हें रघुनन्दन !”अब जल्दी करो “!


परानाम

धन्यवाद !


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